




नोएडा अथॉरिटी ने हाल ही में एक बड़ा और सख्त प्रशासनिक कदम उठाया है। अथॉरिटी के CEO लोकेश एम ने आदेश जारी करते हुए साफ कर दिया है कि अब 1 से 5 लाख रुपये तक की लागत वाले कार्यों पर रोक रहेगी। इतना ही नहीं, 5 लाख से लेकर 2 करोड़ रुपये तक के कार्यों के लिए सीईओ की अनुमति अनिवार्य होगी। इस निर्णय ने विकास कार्यों की मौजूदा प्रणाली में बड़ा बदलाव ला दिया है और इसका सीधा असर नोएडा के विभिन्न प्रोजेक्ट्स और ठेकेदारों पर पड़ने वाला है।
सूत्रों के मुताबिक, लंबे समय से यह देखा जा रहा था कि अथॉरिटी के अंतर्गत छोटे-छोटे कार्यों की आड़ में कई अनियमितताएं हो रही थीं। कई बार छोटे ठेकों को बिना किसी बड़े स्तर की जांच या अनुमति के पास कर दिया जाता था, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते थे। इस नए आदेश का उद्देश्य भ्रष्टाचार पर रोक लगाना, पारदर्शिता सुनिश्चित करना और अनावश्यक खर्चों पर अंकुश लगाना है।
सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब 1 से 5 लाख रुपये तक के कार्य बिल्कुल नहीं होंगे। आमतौर पर इस दायरे में मरम्मत, छोटे निर्माण कार्य, पार्कों की देखभाल और सामुदायिक जरूरतों से जुड़े प्रोजेक्ट्स आते थे। इस श्रेणी में भ्रष्टाचार की आशंका सबसे अधिक रहती थी क्योंकि कम राशि होने के कारण इन कार्यों पर गहन जांच नहीं होती थी।
अब से 5 लाख से 2 करोड़ रुपये तक के सभी कार्यों के लिए सीधे CEO की अनुमति लेनी होगी। इसका मतलब है कि अब अधिकारी स्तर पर मनमानी या तत्कालिक स्वीकृति संभव नहीं होगी। हर प्रोजेक्ट को CEO की जांच और मंजूरी से गुजरना होगा। इससे बड़े पैमाने पर जवाबदेही तय होगी।
इस फैसले से ठेकेदारों पर सीधा असर पड़ेगा। पहले छोटे-छोटे कार्य आसानी से पास हो जाते थे, लेकिन अब न केवल कार्यों की संख्या कम होगी बल्कि प्रक्रिया भी लंबी और कड़ी हो जाएगी। स्थानीय निकायों को भी विकास योजनाओं में देरी का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि अब हर प्रस्ताव CEO के सामने पेश करना होगा।
जनता पर प्रभाव
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सकारात्मक असर:
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जनता को पारदर्शी और उच्च गुणवत्ता वाले कार्य देखने को मिल सकते हैं।
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अनावश्यक खर्चों और फर्जी कामों पर रोक लगेगी।
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बड़े प्रोजेक्ट्स पर फोकस बढ़ेगा।
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नकारात्मक असर:
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छोटे-छोटे मरम्मत और रखरखाव के कार्य प्रभावित हो सकते हैं।
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समय पर पार्कों, सड़कों और नालियों की मरम्मत न होने से लोगों को परेशानी हो सकती है।
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हाल के वर्षों में नोएडा अथॉरिटी पर पारदर्शिता को लेकर कई सवाल उठे हैं। कई प्रोजेक्ट्स में भ्रष्टाचार और देरी के आरोप लगे हैं। CEO का यह फैसला अथॉरिटी की छवि सुधारने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
शहरी विकास विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय यदि सही तरीके से लागू हुआ तो नोएडा में गुड गवर्नेंस (अच्छे प्रशासन) की मिसाल कायम हो सकती है। हालांकि, इसके साथ ही यह भी जरूरी होगा कि छोटे लेकिन जरूरी कार्यों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जाए ताकि आम जनता को परेशानियों का सामना न करना पड़े।
नोएडा अथॉरिटी के CEO लोकेश एम का यह बड़ा फैसला विकास कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में उठाया गया एक सख्त कदम है। अब छोटे-छोटे कामों में मनमानी नहीं हो पाएगी और बड़े प्रोजेक्ट्स पर उच्च स्तर की अनुमति मिलेगी। हालांकि, जनता की बुनियादी जरूरतें जैसे मरम्मत और रखरखाव प्रभावित न हों, इसके लिए अथॉरिटी को जल्द ही एक स्पष्ट नीति भी बनानी होगी।