




सीएल सैनी | फतेहपुर | समाचार वाणी न्यूज़
फतेहपुर जिले का राधानगर थाना क्षेत्र इन दिनों गहरे संकट से गुजर रहा है। क्षेत्र की जनता खुलेआम कह रही है कि “राधानगर अब कारखासों का इलाका बन चुका है।” यहां दो कारखासों की जुगलबंदी ने पूरे इलाके का माहौल बिगाड़कर रख दिया है। सत्ता और संरक्षण की छत्रछाया में पल रहे इन दोनों की करतूतों ने ऐसा तंत्र खड़ा कर दिया है, जिसमें आमजन की गाढ़ी कमाई पर खुलेआम डाका डाला जा रहा है।
सूत्रों की मानें तो कारखासों की यह जोड़ी संगठित रूप से अपना नेटवर्क चला रही है। इनके लिए काम करने वाले दलाल हर गली, हर मोहल्ले और हर गांव में सक्रिय हैं। आम नागरिकों को ठगना, वसूली करना और उनकी जेब काटना इनका रोज़ का धंधा बन चुका है। हालत यह है कि गरीब, किसान, मजदूर और छोटे व्यापारी सबसे ज्यादा इनके शिकंजे में फंसे हुए हैं। क्षेत्र की जनता मानो मजबूरी में जी रही है।
राधानगर में अवैध वसूली और जबरन वर्चस्व का आलम यह है कि लोग अपने हक से वंचित हो रहे हैं। गांवों से लेकर कस्बों तक हर जगह दलालों का जाल फैला हुआ है। ये दलाल कारखासों के इशारे पर आम नागरिकों को परेशान करते हैं और उनसे जबरन पैसा वसूलते हैं। हर गली में अवैध कारोबार और काले धंधों की गंध महसूस की जा सकती है।
लोगों का कहना है कि यह जुगलबंदी किसी बड़े संरक्षण के बिना संभव नहीं हो सकती। यही वजह है कि शिकायतें दर्ज होने के बावजूद कार्रवाई का कोई नामोनिशान नहीं है। प्रशासन की कलम कारखासों के रसूख के आगे थम जाती है और पीड़ित जनता की आवाज दबा दी जाती है। यह स्थिति केवल राधानगर के आम लोगों की परेशानी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करती है।
जनता खुले तौर पर सवाल उठा रही है कि आखिर कब तक कारखास अपनी लूट-खसोट जारी रखेंगे? कब तक लोग इनके दलालों के जाल में फंसकर अपने हक से वंचित होते रहेंगे? और कब तक प्रशासन मूकदर्शक बना रहेगा? लोग कहते हैं कि उनकी गाढ़ी कमाई पर जो डाका डाला जा रहा है, वह सीधा उनके जीवन यापन पर असर डाल रहा है।
यह मामला केवल कारखासों की करतूत तक सीमित नहीं है। यह सीधे-सीधे प्रशासन और सिस्टम की परीक्षा है। यदि समय रहते इन कारखासों की जुगलबंदी पर नकेल नहीं कसी गई तो राधानगर क्षेत्र की जनता का जीना दूभर हो जाएगा। लोग यह मानने लगे हैं कि कानून और व्यवस्था केवल कागज़ों में सिमटकर रह गई है, जबकि जमीनी हकीकत पूरी तरह इसके उलट है।
राधानगर क्षेत्र की यह स्थिति लोकतंत्र और प्रशासनिक व्यवस्था दोनों पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है। जनता अब सिर्फ यही उम्मीद लगाए बैठी है कि कोई कड़ा कदम उठाया जाएगा, जिससे कारखासों की जुगलबंदी टूटे और क्षेत्र में शांति व न्याय की बहाली हो सके। वरना जनता की आवाज दबती रहेगी और उनकी गाढ़ी कमाई पर डाका पड़ता रहेगा।