




भारत के समृद्ध जैव विविधता स्थलों में अग्रणी काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान ने अब एक नई उपलब्धि हासिल की है। हाल ही में संपन्न हुए एक विशेष सर्वेक्षण में उद्यान में मौजूद 283 देसी कीट और मकड़ी प्रजातियों की पहचान की गई है। यह सर्वेक्षण न केवल जैव विविधता की गहराई को दर्शाता है, बल्कि बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य में कीट संरक्षण की आवश्यकता पर भी जोर देता है।
काजीरंगा को अब तक मुख्यतः एक सींग वाले गैंडों, बाघों, और हाथियों के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन अब पहली बार सूक्ष्म जीवों, विशेषकर कीट-पतंगों और मकड़ियों, पर वैज्ञानिक ध्यान केंद्रित किया गया।
असम वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह सर्वेक्षण जुलाई से अगस्त 2025 के बीच किया गया, जिसमें कीट विज्ञानियों, जीवविज्ञानियों और स्थानीय संरक्षणकर्ताओं ने मिलकर काम किया।
इस अध्ययन के अनुसार, काजीरंगा में पाए गए 283 प्रजातियों में शामिल हैं:
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रंग-बिरंगी तितलियाँ
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विविध प्रकार के बीटल्स (गुबरैलों)
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चमकते हुए ड्रैगनफ्लाइज़
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अनोखी संरचना वाली मॉथ्स
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स्थानीय और दुर्लभ मकड़ियाँ, जो जैविक कीट नियंत्रण में सहायक होती हैं
वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा:
“यह सर्वेक्षण काजीरंगा की पारिस्थितिकी की गहराई और संतुलन को दिखाता है। इन छोटे जीवों के बिना यह इकोसिस्टम अधूरा है।”
अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन इन सूक्ष्म प्रजातियों के अस्तित्व पर सीधा प्रभाव डाल रहा है।
वन अधिकारियों के अनुसार, जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है और वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो रहा है, कई कीट प्रजातियाँ या तो प्रवास कर रही हैं या उनका प्रजनन चक्र बाधित हो रहा है।
“अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो कई प्रजातियाँ हमेशा के लिए विलुप्त हो सकती हैं,” — एक पर्यावरण वैज्ञानिक ने बताया।
मकड़ियों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, लेकिन वे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वे न केवल कीटों की आबादी नियंत्रित करती हैं, बल्कि कई पौधों के परागण में भी अप्रत्यक्ष रूप से सहायक हैं।
काजीरंगा में दर्ज 40+ मकड़ी प्रजातियाँ, जिनमें कुछ स्थान-विशेष (एंडेमिक) भी हैं, दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र माइक्रो-फौना का सुरक्षित आश्रय स्थल है।
यह सर्वेक्षण भारत के जैव विविधता मानचित्र में काजीरंगा की भूमिका को और प्रबल करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि:
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इन प्रजातियों का डेटा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की निगरानी में सहायक होगा
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पारिस्थितिक असंतुलन की पहचान करने में मदद करेगा
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और स्थानीय संरक्षण रणनीतियाँ बनाने में मार्गदर्शन करेगा
सर्वेक्षण में स्थानीय बस्तियों, विशेष रूप से युवाओं और विद्यार्थियों को शामिल किया गया। इससे उन्हें न केवल प्रशिक्षण मिला, बल्कि उन्होंने पारंपरिक ज्ञान और भूमि की समझ को साझा किया।
“पहली बार हमें महसूस हुआ कि छोटे कीट भी उतने ही जरूरी हैं जितना गैंडा या बाघ,” — एक स्थानीय छात्रा ने बताया।
असम वन विभाग अब इस डेटा को आधार बनाकर:
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कीटों के लिए विशेष संरक्षण क्षेत्र निर्धारित करने
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मॉनसून और गर्मी के मौसम में कीट व्यवहार की निगरानी
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और जनसामान्य में कीट संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की योजना बना रहा है।
काजीरंगा में कीट और मकड़ियों की 283 देसी प्रजातियों का दस्तावेजीकरण केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने की दिशा में बड़ा कदम है।
यह सर्वेक्षण दर्शाता है कि जब हम ‘जैव विविधता’ की बात करते हैं, तो केवल बड़े जानवर नहीं, बल्कि प्रत्येक जीव, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो — हमारी धरती के संतुलन में बराबर का योगदान देता है।