




उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आधारित फिल्म ‘अजेय’ हाल ही में सिनेमाघरों में रिलीज हुई, लेकिन दर्शकों और समीक्षकों दोनों ने इसे नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। फिल्म पर्दे पर दर्शकों को बांधने में नाकाम रही और अब यह चर्चा का विषय बनी हुई है कि आखिर क्यों यह फिल्म जनता और आलोचकों दोनों के बीच सफल नहीं हो सकी।
फिल्म की नाकामी केवल बॉक्स ऑफिस तक सीमित नहीं रही। सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में इसकी डॉयलॉगबाजी और आलोचना लगातार जारी है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और विधायक भी रहे दूर
सूत्रों के अनुसार, भाजपा के चार विधायक भी फिल्म देखने नहीं गए। न तो किसी ने सार्वजनिक तौर पर फिल्म देखते हुए फोटो साझा की। राजनीतिक विशेषज्ञ इसे इसलिए गंभीर मान रहे हैं क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि फिल्म बनवाने वालों ने पार्टी के सदस्यों को फिल्म देखने के लिए निर्देशित करना भूल गए।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस हिसाब से यह सरकार सिनेमा हॉल में गिरी हुई मानी जाएगी, जबकि सामान्यतः किसी सरकार की लोकप्रियता और प्रदर्शन का आकलन संसद सदन में ही किया जाता है।
सिनेमा आलोचकों का विश्लेषण
सिनेमाई विशेषज्ञों के अनुसार, फिल्म की नाकामी का मुख्य कारण यह है कि दर्शक सच्ची भावनाओं और वास्तविक घटनाओं पर आधारित फिल्में देखना चाहते हैं, लेकिन ‘अजेय’ कथानक और प्रस्तुति के स्तर पर इन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी।
विशेष रूप से:
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फिल्म मानवीय संवेदनाओं से कोसों दूर प्रतीत हुई।
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कथानक में प्रमुख घटनाओं और व्यक्तित्व का वास्तविक प्रतिबिंब नहीं दिखा।
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संवाद और पटकथा दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने में असफल रही।
इसके कारण दर्शकों ने फिल्म को सार्वजनिक रूप से नकार दिया, और इसकी खराब समीक्षा सोशल मीडिया और समीक्षात्मक प्लेटफार्मों पर भी सामने आई।
वोटरों और भविष्य की राजनीति पर असर
राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि फिल्म की नाकामी केवल सिनेमा तक सीमित नहीं है। इसे आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में राजनीतिक संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि दर्शकों ने फिल्म को खारिज करके एक संकेतात्मक संदेश दिया है। फिल्म के माध्यम से यदि जनता को प्रभावित करने का प्रयास किया गया, तो वह प्रयास सफल नहीं हुआ।
कुछ राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि:
“‘24 के बाद एक बार फिर मतदाता ‘27 में दुबारा इन्हें नकार सकते हैं, और उनके अहंकार का भूत उतार सकते हैं।’
इसका अर्थ यह है कि जनता केवल स्क्रीन पर दिखाए गए व्यक्तित्व के आधार पर नहीं बल्कि सच्ची नीतियों और प्रशासनिक निर्णयों के आधार पर नेताओं का आकलन करती है।
फिल्म निर्माता और प्रचार की भूमिका
फिल्म निर्माण में लगे लोगों का मानना है कि फिल्म का प्रचार और वितरक रणनीति भी फिल्म की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, ‘अजेय’ के मामले में:
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प्रचार अपेक्षित स्तर पर नहीं था।
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फिल्म का कथानक और प्रस्तुति दर्शकों के भावनात्मक स्तर से नहीं जुड़ पाया।
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राजनीतिक समर्थन भी अपेक्षित रूप से सामने नहीं आया।
इसके चलते बॉक्स ऑफिस पर फिल्म का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा।
सिनेमा और राजनीति का संगम
‘अजेय’ का मामला इस बात का उदाहरण है कि राजनीति और सिनेमा का संगम हमेशा सफल नहीं होता। दर्शक केवल नायक या नेता के व्यक्तित्व पर नहीं बल्कि कहानी की वास्तविकता, भावनात्मक प्रस्तुति और पटकथा की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देते हैं।
सिनेमाई विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भविष्य में राजनीतिक फिल्में बनाई जाती हैं, तो निर्माताओं को चाहिए कि वे यथार्थवादी घटनाओं और सच्ची भावनाओं को केंद्र में रखें। केवल नायक की छवि को बढ़ावा देने वाली फिल्में दर्शकों को प्रभावित नहीं कर पातीं।