




भारत उत्सवों और परंपराओं की धरती है। यहां हर पर्व का अपना महत्व और धार्मिक विश्वास जुड़ा हुआ है। नवरात्रि का पर्व पूरे देश में आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में से आठवां दिन यानी महाअष्टमी सबसे पावन और विशेष माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के अष्टम स्वरूप महागौरी की पूजा होती है और कन्या पूजन का विशेष महत्व रहता है।
महाअष्टमी का महत्व
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, महाअष्टमी का दिन शक्ति की उपासना का दिन है। इसे महापर्व इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन साधक मां दुर्गा के विविध रूपों की आराधना कर उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं। मान्यता है कि महाअष्टमी पर मां दुर्गा की पूजा करने से सारे कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस दिन व्रत रखने और श्रद्धा से देवी का ध्यान करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। महाअष्टमी को असुर शक्तियों के विनाश और देवी शक्ति की विजय का प्रतीक माना जाता है।
पूजा-विधि
महाअष्टमी की पूजा सुबह स्नान और संकल्प के साथ शुरू होती है।
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सबसे पहले घर या पूजा स्थल को साफ-सुथरा कर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है।
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कलश स्थापना और दुर्गा सप्तशती के पाठ का आयोजन किया जाता है।
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मां को लाल फूल, चुनरी, हलवा-पूरी, चना और नारियल का भोग लगाया जाता है।
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विशेष रूप से इस दिन हवन और दुर्गा चालीसा का पाठ करने की परंपरा है।
कन्या पूजन का महत्व
महाअष्टमी की सबसे प्रमुख परंपरा कन्या पूजन है। इस दिन 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप मानकर पूजते हैं। उन्हें आमंत्रित कर उनके पांव धोए जाते हैं और तिलक कर विशेष भोजन (हलवा, पूड़ी, चना) खिलाया जाता है। पूजा के बाद कन्याओं को उपहार, वस्त्र या दक्षिणा देकर विदा किया जाता है। मान्यता है कि कन्या पूजन से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
धार्मिक मान्यता
शास्त्रों में वर्णन है कि नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों के दुख दूर करती हैं। महाअष्टमी के दिन देवी महिषासुर मर्दिनी का विशेष स्मरण किया जाता है।
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यह दिन देवी और शक्ति के मिलन का प्रतीक है।
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मान्यता है कि इस दिन उपासक अपने जीवन से नकारात्मकता और बुराई को समाप्त कर सकारात्मकता की ओर अग्रसर होते हैं।
भारत में महाअष्टमी का उत्सव
देश के अलग-अलग हिस्सों में महाअष्टमी को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है।
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उत्तर भारत में इसे कन्या पूजन और दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ मनाया जाता है।
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पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा पंडालों में भव्य आयोजन होते हैं, जहां देवी की प्रतिमाओं की स्थापना और विशेष अर्चना की जाती है।
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दक्षिण भारत में इस दिन विशेष भोग और दीप प्रज्वलन की परंपरा है।
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पश्चिम बंगाल में महाअष्टमी पर ‘अंजलि’ का आयोजन होता है, जहां हजारों भक्त मिलकर मां दुर्गा की आराधना करते हैं।
हवन और भोग की परंपरा
महाअष्टमी पर हवन का विशेष महत्व है। भक्त मंत्रोच्चारण के साथ हवन करते हैं और देवी से परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं। हवन में घी, जौ, तिल और लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। भोग में हलवा, पूरी, काले चने और नारियल का प्रसाद प्रमुख होता है।
आध्यात्मिक लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाअष्टमी के व्रत और पूजा से कई आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। मन की शांति और आत्मबल में वृद्धि होती है। जीवन से नकारात्मकता और भय दूर होता है। परिवार में सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य का आगमन होता है।
आधुनिक संदर्भ में महाअष्टमी
आज के समय में भी महाअष्टमी का महत्व कम नहीं हुआ है। बदलती जीवनशैली के बावजूद लोग इस दिन पूरे उत्साह और आस्था से देवी की पूजा करते हैं। स्कूलों, कार्यालयों और सामाजिक संस्थाओं में कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है।
महिलाएं घरों में व्रत रखती हैं और बच्चे पूजा-अर्चना में शामिल होकर त्योहार का आनंद उठाते हैं।
महाअष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि नारी शक्ति और देवी ऊर्जा का उत्सव है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्त्री शक्ति ही जीवन का आधार है। पूजा-विधि, कन्या पूजन और भक्ति भाव से की गई अर्चना से मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।