




मध्य पूर्व के लंबे समय से चले आ रहे गाजा संघर्ष को खत्म करने के लिए अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक शांति प्रस्ताव पेश किया था, जिसे ‘ट्रंप प्लान’ के नाम से जाना जाता है। यह योजना इजरायल और फिलिस्तीन के बीच स्थायी शांति स्थापित करने के लिए बनाई गई थी, लेकिन इसे लेकर विभिन्न मतभेद और विवाद भी पैदा हुए। इस रिपोर्ट में हम ट्रंप प्लान के मुख्य बिंदुओं, इसके राजनीतिक प्रभाव और विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
ट्रंप प्लान, जिसे आधिकारिक रूप से ‘पीस टू प्रॉस्पेरिटी’ योजना कहा जाता है, जनवरी 2020 में अमेरिकी प्रशासन द्वारा पेश किया गया था। इसका उद्देश्य इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति स्थापित करना था। इस योजना में गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के लिए नई सीमाओं का प्रस्ताव रखा गया, साथ ही यह कहा गया कि फिलिस्तीन को राज्य के रूप में मान्यता दी जाएगी, लेकिन कई शर्तों के साथ।
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भूमि विन्यास: योजना में वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियों को मान्यता दी गई और गाजा पट्टी के कुछ हिस्सों को फिलिस्तीन के नियंत्रण में रखा गया। इसके तहत फिलिस्तीन को एक सीमित और घेरा हुआ राज्य प्रस्तावित किया गया।
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जेरूसलम का दर्जा: जेरूसलम को इजरायल की राजधानी माना गया, जबकि फिलिस्तीन को पूर्वी जेरूसलम में अपनी राजधानी स्थापित करने की अनुमति दी गई। यह प्रस्ताव विवादास्पद रहा क्योंकि दोनों पक्ष जेरूसलम को अपनी राजधानी बनाना चाहते हैं।
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सुरक्षा प्रावधान: इजरायल की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई, और फिलिस्तीनी सुरक्षा बलों पर कठोर नियंत्रण की बात कही गई।
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आर्थिक सहायता: इस योजना में फिलिस्तीन के आर्थिक विकास के लिए अरब देशों सहित कई अंतरराष्ट्रीय साझेदारों से सहायता जुटाने की बात कही गई।
ट्रंप प्लान को फिलिस्तीनी पक्ष और कई अंतरराष्ट्रीय समुदायों द्वारा व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा।
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फिलिस्तीनी प्रतिक्रिया: फिलिस्तीनी नेताओं ने इस योजना को एकतरफा और उनके अधिकारों के विरुद्ध बताया। उनका कहना था कि यह योजना उनकी राष्ट्रीय आकांक्षाओं को दरकिनार करती है और उन्हें छोटा-सा राज्य देने की कोशिश है।
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय: कई देशों और संयुक्त राष्ट्र ने इस योजना पर चिंता जताई और कहा कि यह बुनियादी मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ है।
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इजरायल पक्ष: इजरायल सरकार ने योजना का स्वागत किया और इसे एक ऐतिहासिक अवसर बताया, लेकिन इसके भीतर भी कुछ विवाद और असहमति पाई गई।
इस योजना ने गाजा और पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र में तनाव को बढ़ाया। फिलिस्तीनी जनता में असंतोष और विरोध प्रदर्शन हुए, जिससे हिंसा की घटनाएं भी बढ़ीं।
साथ ही, यह योजना क्षेत्रीय शांति की दिशा में एक बड़ी बाधा बन गई, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच विश्वास का अभाव और गहरा हो गया।
संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और कई अन्य वैश्विक संस्थानों ने शांति प्रक्रिया के लिए संयम और संवाद की अपील की। उनका मानना है कि बिना दोनों पक्षों की सहमति के कोई भी योजना स्थायी समाधान नहीं दे सकती।
भविष्य में, गाजा संकट का समाधान तभी संभव है जब इजरायल और फिलिस्तीन दोनों मिलकर वार्ता करें और एक न्यायसंगत समझौते तक पहुंचें। ट्रंप प्लान के बावजूद यह स्पष्ट हो गया है कि शांति प्रक्रिया जटिल और संवेदनशील है।
डोनाल्ड ट्रंप का गाजा शांति प्रस्ताव एक महत्वाकांक्षी लेकिन विवादित योजना थी, जिसने मध्य पूर्व के जटिल राजनीतिक परिदृश्य को और पेचीदा बना दिया। हालांकि यह शांति की दिशा में एक प्रयास था, लेकिन दोनों पक्षों के बीच गहरा मतभेद और अंतरराष्ट्रीय विवाद इसे सफल होने से रोकते हैं।
इसलिए, गाजा और पूरे क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए संतुलित, न्यायसंगत और व्यापक सहमति वाली योजना की आवश्यकता है, जो सभी पक्षों के हितों और आकांक्षाओं का सम्मान करे।