




बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संस्थापक लालू प्रसाद यादव द्वारा चुनावी टिकट बांटे जाने के बाद, उनके बेटे और पार्टी के प्रमुख चेहरा तेजस्वी यादव ने हस्तक्षेप करते हुए इस फैसले को पलट दिया। इस घटनाक्रम ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले INDIA गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर जारी तनातनी को और तेज कर दिया है।
जानकारी के अनुसार, लालू प्रसाद यादव ने पटना में कुछ नेताओं को पार्टी सिंबल देकर उम्मीदवार घोषित कर दिया था। हालांकि, सीटों पर गठबंधन के स्तर पर अंतिम सहमति नहीं बनी थी। ऐसे में तेजस्वी यादव, जो सीट बंटवारे की बातचीत में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, ने हस्तक्षेप कर कुछ सीटों पर टिकट वितरण को वापस लेने का आदेश दिया।
सूत्रों के मुताबिक, कुछ नेताओं को कहा गया कि वे RJD द्वारा दिया गया चुनाव चिन्ह लौटा दें क्योंकि सीट उन सहयोगी दलों को दी जा सकती है।
तेजस्वी यादव की दिल्ली से पटना वापसी के तुरंत बाद पार्टी के भीतर बैठकों का दौर शुरू हो गया। उन्होंने स्पष्ट किया कि INDIA गठबंधन में सीटों का वितरण पारदर्शिता और आपसी सहमति से होगा। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा:
“अभी टिकट वितरण की कोई अंतिम सूची नहीं बनी है। बिना सीटों के फाइनल हुए कोई उम्मीदवार घोषित न किया जाए।”
इस बयान से साफ है कि तेजस्वी यादव गठबंधन धर्म निभाने के पक्षधर हैं और बिना गठबंधन दलों की सहमति के टिकट बंटवारे को सही नहीं मानते।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस और वाम दलों ने RJD की इस जल्दबाजी पर नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि RJD का यह कदम गठबंधन की एकता के खिलाफ है।
एक कांग्रेस नेता ने कहा:
“अगर सीटों का एकतरफा बंटवारा होगा तो कांग्रेस को भी अपना रास्ता अलग करना पड़ेगा। गठबंधन का मकसद सबको सम्मान देना है।”
बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से RJD सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते 130 से अधिक सीटों की मांग कर रही है। वहीं, कांग्रेस 60 से अधिक सीटों पर दावेदारी कर रही है। वाम दल भी कम से कम 20 सीटें चाहते हैं। इस बीच कुछ छोटे दलों की भी अपनी-अपनी मांगें हैं।
यह मतभेद ही सीट बंटवारे को लेकर देरी का मुख्य कारण है।
RJD के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि लालू यादव अब सक्रिय राजनीति में कम सक्रिय हैं, लेकिन उनकी छवि और प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। हालांकि, मौजूदा चुनावों की रणनीति तेजस्वी यादव के हाथों में है और पार्टी का एक बड़ा वर्ग उनके नेतृत्व को स्वीकार करता है।
ऐसे में लालू यादव द्वारा टिकट वितरण की पहल को “पुरानी शैली की राजनीति” के रूप में देखा जा रहा है, जो आज की गठबंधन आधारित राजनीति में व्यवहारिक नहीं मानी जाती।
गठबंधन में जारी तनाव के बीच एनडीए खेमे से खबर आ रही है कि वह असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में लाने के लिए सक्रिय हो गया है। BJP और JDU कई पूर्व विधायक और वरिष्ठ नेताओं से संपर्क में हैं।
यह रणनीति NDA के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, खासकर तब जब विपक्षी खेमे में असंतोष फैले।
बिहार की राजनीति में सीट बंटवारा हमेशा से जटिल मुद्दा रहा है। हालांकि RJD और तेजस्वी यादव की लोकप्रियता इस चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है, लेकिन गठबंधन में संतुलन बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है। तेजस्वी यादव का हस्तक्षेप और टिकट वापसी का फैसला दिखाता है कि वह आधुनिक, संयमित और सहयोगी नेतृत्व के पक्षधर हैं।