




सड़कों पर गड्ढों और खुले मैनहोल के कारण होने वाले हादसों पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति की जान इन असुरक्षित परिस्थितियों के कारण जाती है, तो नगर निगम को मृतक के परिवार को 6 लाख रुपये तक का मुआवजा देना अनिवार्य होगा। यह निर्णय न केवल प्रभावित परिवारों के लिए राहत प्रदान करता है बल्कि सरकारी एजेंसियों और नगर निगमों के लिए भी एक चेतावनी की तरह है।
हाईकोर्ट ने कहा कि सड़कों और मैनहोल की सुरक्षा सुनिश्चित करना नगर निगम की जिम्मेदारी है। अगर वे इस जिम्मेदारी में लापरवाही बरतते हैं और किसी की जान चली जाती है, तो न केवल नागरिकों की सुरक्षा खतरे में रहती है बल्कि नगर निगम कानूनी रूप से जवाबदेह भी होगा। यह आदेश स्थानीय प्रशासन और नगर निगमों के लिए एक महत्वपूर्ण वेक‑अप कॉल के रूप में देखा जा रहा है।
कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया कि केवल हादसे के बाद सुधार करना पर्याप्त नहीं है। नगर निगमों को नियमित निरीक्षण, गड्ढों और मैनहोल की मरम्मत, और समय पर चेतावनी संकेत लगाने की जिम्मेदारी है। इसके अलावा, सड़क पर आने वाले पैदल यात्री और वाहन चालक सुरक्षित रहें, इसके लिए भी आवश्यक उपाय करना अनिवार्य है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सड़क सुरक्षा के लिहाज से मील का पत्थर साबित हो सकता है। लंबे समय से मुंबई और आसपास के शहरों में सड़कें और खुले मैनहोल लोगों की जान के लिए खतरा बने हुए थे। कई बार छोटे‑छोटे हादसे ही बड़े नुकसान में बदल जाते हैं। हाईकोर्ट का यह निर्णय यह सुनिश्चित करेगा कि नगर निगम सड़कों और मैनहोल की मरम्मत में नियमितता और जवाबदेही बनाए रखे।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि लंबे समय से शहरों में गड्ढों और खुले मैनहोल की वजह से होने वाली मौतों और दुर्घटनाओं पर कोई ठोस कानूनी कार्रवाई नहीं होती थी। अब हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार और नगर निगमें नागरिकों की जान की सुरक्षा के लिए गंभीर कदम उठाएँ।
इस फैसले के बाद नगर निगमों को अपने शहरों की सड़कों का पूरा निरीक्षण करना होगा। खस्ताहाल सड़कों, गड्ढों और खुले मैनहोल की सूची तैयार कर उन्हें तुरंत दुरुस्त करना अनिवार्य होगा। इसके साथ ही, किसी भी दुर्घटना की स्थिति में प्रभावित परिवार को समय पर मुआवजा और कानूनी सहायता प्रदान करना भी नगर निगम की जिम्मेदारी होगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले से न केवल मुंबई बल्कि पूरे महाराष्ट्र और देश के अन्य नगर निगमों को भी संदेश मिलेगा कि नागरिकों की सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सड़क सुरक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ेगी और प्रशासनिक लापरवाही कम होगी।