




तेलंगाना की बहुचर्चित और विवादास्पद कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना (Kaleshwaram Lift Irrigation Project – KLIP) में घोटाले और भ्रष्टाचार की जांच के तहत एक और बड़ा कदम सामने आया है। तेलंगाना विजिलेंस आयोग ने उन अभियंताओं की संपत्तियों को जब्त करने के लिए सिंचाई विभाग द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिन पर परियोजना में कार्य करते हुए आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के गंभीर आरोप हैं।
यह फैसला राज्य सरकार की भ्रष्टाचार के विरुद्ध नीति को दर्शाता है और उन सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कठोर संदेश भी देता है, जो सार्वजनिक धन के दुरुपयोग में संलिप्त पाए जाते हैं।
तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू की गई यह परियोजना भारत की सबसे बड़ी लिफ्ट सिंचाई योजनाओं में से एक है। इसका उद्देश्य गोदावरी नदी से पानी उठाकर राज्य के कई जिलों तक सिंचाई सुविधा पहुँचाना था। इस परियोजना की अनुमानित लागत ₹1 लाख करोड़ से अधिक बताई गई है।
हालाँकि शुरुआत में इस परियोजना को राज्य की कृषि समृद्धि के लिए एक वरदान बताया गया, परंतु इसके निर्माण में भ्रष्टाचार, गुणवत्ता में अनियमितता, तकनीकी खामियाँ और अत्यधिक खर्च को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं।
विजिलेंस एवं प्रवर्तन निदेशालय (Vigilance & Enforcement) ने KLIP में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमितताओं और गैरकानूनी ठेका प्रक्रियाओं का खुलासा किया। जांच रिपोर्ट में यह सामने आया कि:
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17 वरिष्ठ अभियंताओं ने अपनी आय से कई गुना अधिक संपत्ति अर्जित की।
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परियोजना निर्माण कार्य में संलग्न ठेकेदारों से सांठगांठ, गुणवत्ता में समझौता और अनुचित भुगतान किए गए।
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अभियंताओं ने संपत्तियाँ अपने नाम के अलावा परिजनों के नाम पर भी खरीद रखी थीं, जिसे बेनामी संपत्ति के तौर पर देखा जा रहा है।
सिंचाई विभाग ने विजिलेंस रिपोर्ट के आधार पर संपत्ति जब्ती का प्रस्ताव विजिलेंस आयोग को भेजा था। अब आयोग ने इस प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी है, जिसके तहत:
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अभियुक्त अभियंताओं की चल एवं अचल संपत्तियों को तत्काल प्रभाव से सील या जब्त (freeze) किया जाएगा।
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संपत्ति जब्ती की कार्रवाई के लिए ACB (Anti-Corruption Bureau) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) से समन्वय किया जाएगा।
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मामले की गहराई से जांच कर CBI को सौंपने की संभावना भी व्यक्त की गई है।
इस मंजूरी के बाद संबंधित विभागों को अब कोर्ट से विधिवत आदेश लेकर संपत्तियों की जब्ती की प्रक्रिया प्रारंभ करनी होगी।
इस फैसले के बाद तेलंगाना की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि यह भ्रष्टाचार केवल अभियंताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक संरक्षण भी रहा है।
एक विपक्षी विधायक ने कहा:
“यह तो केवल ‘छोटे खिलाड़ियों’ को पकड़ने की कोशिश है, असली मास्टरमाइंड्स पर सरकार कब कार्रवाई करेगी?”
वहीं, सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता ने कहा:
“यह कार्रवाई हमारे ‘शून्य सहनशीलता’ की नीति का प्रमाण है। हम किसी को नहीं बख्शेंगे।”
संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया आसान नहीं होती। इसके लिए संबंधित अधिकारियों को कई कानूनी औपचारिकताओं से गुजरना होता है, जैसे कि:
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संपत्ति का सत्यापन और मूल्यांकन
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कोर्ट से जब्ती की अनुमति प्राप्त करना
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साक्ष्यों की प्रमाणिकता सुनिश्चित करना
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अभियुक्तों द्वारा संभावित कानूनी चुनौती देना
इन सबके बीच, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि किसी निर्दोष अधिकारी को अनावश्यक रूप से निशाना न बनाया जाए।
तेलंगाना की जनता अब यह देख रही है कि विजिलेंस आयोग की सिफारिशों पर वास्तविक और ठोस कार्रवाई होती है या नहीं। यदि इन अभियंताओं पर लगे आरोप सही सिद्ध होते हैं और संपत्तियाँ राज्य सरकार के अधीन आती हैं, तो यह भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक मिसाल बन सकती है।
इसके साथ ही सरकार पर यह भी दबाव है कि वह इस जांच को केवल अभियंताओं तक सीमित न रखे, बल्कि अगर उच्च स्तर पर भी संलिप्तता रही है, तो उसे भी सामने लाया जाए।
कालेश्वरम परियोजना में कथित भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति का मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। विजिलेंस आयोग द्वारा संपत्ति जब्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी देना, इस मामले में एक एतिहासिक कदम माना जा रहा है।