




पर्यावरण कार्यकर्ता और सामाजिक अभियंता डॉ. सोनम वांगचुक की हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई को 15 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया। यह याचिका उनकी पत्नी डॉ. गीता अंजुमो ने दायर की है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980 के तहत वांगचुक की हिरासत को मनमाना और लोकतांत्रिक असहमति दबाने के प्रयास के रूप में बताया गया है।
यह मामला लद्दाख के लेह में 24 सितंबर को हुई हिंसा के बाद सामने आया, जिसमें चार लोगों की मौत और कई घायल हुए थे। हिंसा के सिलसिले में कई विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया।
गीता अंजुमो की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि वांगचुक की हिरासत एकतरफा, मनमानी और बिना उचित कारण के की गई है। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि हिरासत का मकसद शांतिपूर्ण विरोध को दबाना है, जो कि संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
याचिका में यह भी आरोप है कि हिरासत के आदेश और कारणों को उचित रूप से उपलब्ध नहीं कराया गया। हिरासत के कारणों को छुपाकर प्रशासन ने निष्पक्षता की प्रक्रिया को दरकिनार किया है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इसे 15 अक्टूबर तक स्थगित कर दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए हिरासत के कारणों की जानकारी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हिरासत के औचित्य और आधार को यथाशीघ्र स्पष्ट करना आवश्यक है ताकि किसी भी तरह की मनमानी से बचा जा सके।
डॉ. सोनम वांगचुक को 26 सितंबर 2025 को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था। लद्दाख में हुई हिंसक घटनाओं के बाद प्रशासन ने सुरक्षा के मद्देनजर यह कदम उठाया। वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद से उनके परिवार और समर्थकों ने इसे गलत और मनमाना बताया है।
वांगचुक एक जाने-माने पर्यावरणविद् और समाज सुधारक हैं, जिनके आंदोलन और विचार लद्दाख में लोकप्रिय हैं। उनकी हिरासत ने विवादों को और गहरा कर दिया है।
यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम और संविधान के मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन का महत्वपूर्ण परीक्षण है।
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याचिका में यह कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम का इस्तेमाल मनमाने ढंग से और असहमत आवाज़ों को दबाने के लिए किया जा रहा है।
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हिरासत के आदेश के बिना कारण बताने के संविधान के अधिकारों का उल्लंघन है।
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कोर्ट को यह सुनिश्चित करना है कि हिरासत के आदेश कानून के अनुरूप हों और मानवाधिकारों की रक्षा हो।
सोनम वांगचुक की हिरासत के विरोध में कई राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई है। उनका मानना है कि यह गिरफ्तारी लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और इससे शांतिपूर्ण विरोध को दबाया जा रहा है।
वहीं सरकार का कहना है कि यह कदम क्षेत्र की शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक था।
15 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर गहन विचार करेगा। यदि कोर्ट ने हिरासत को मनमाना पाया, तो वांगचुक को तत्काल रिहा किया जा सकता है। वहीं अगर हिरासत के औचित्य स्थापित होते हैं, तो मामला लंबित रह सकता है।