




बीड।
कहते हैं कि अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं होती। यह पंक्ति महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले दादासाहेब भगत पर पूरी तरह फिट बैठती है। एक समय था जब वे इंफोसिस में चपरासी के पद पर काम करते थे, लेकिन आज वे अपनी मेहनत, लगन और सोच की बदौलत उन लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं जिनके पास संसाधन नहीं, मगर सपने बड़े हैं। उनकी कहानी आज पूरे देश में प्रेरणा का विषय बन चुकी है — इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके जज़्बे को सलाम किया है।
दादासाहेब भगत की सफलता की कहानी किसी फिल्म की पटकथा जैसी लगती है, लेकिन यह पूरी तरह सच्ची है। वे बीड जिले के एक साधारण परिवार से आते हैं। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, इसलिए 10वीं के बाद आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सके। जीवन की परिस्थितियों ने उन्हें जल्द ही नौकरी की तलाश में धकेल दिया। इसी दौरान उन्हें इंफोसिस कंपनी में चपरासी की नौकरी मिली — जहां उनका काम था फाइलें पहुंचाना, ऑफिस की सफाई करना और चाय-पानी देना।
लेकिन दादासाहेब ने कभी इस काम को अपनी पहचान नहीं बनने दिया। उन्होंने हर छोटे काम को सीखने का अवसर समझा। जब उनके आसपास के लोग कंप्यूटर और तकनीकी बातों में व्यस्त रहते, तब वे ध्यान से देखते, सीखते और नोट्स बनाते। वे ऑफिस के बाद घंटों कंप्यूटर लैब में अभ्यास करते और यूट्यूब व ऑनलाइन कोर्स से खुद को टेक्निकल स्किल्स सिखाते रहे।
धीरे-धीरे उन्होंने बेसिक प्रोग्रामिंग, नेटवर्किंग और कंप्यूटर हार्डवेयर की गहरी समझ हासिल कर ली। उनके इस जुनून ने ऑफिस में सभी को हैरान कर दिया। इंफोसिस के कई अधिकारी उनकी मेहनत से प्रभावित हुए और उन्होंने दादासाहेब को अपनी टीम में अस्थायी तकनीकी सहायता के रूप में शामिल किया। यही से शुरू हुआ उनके जीवन का असली मोड़।
कभी चपरासी की डेस्क से काम करने वाले दादासाहेब आज उसी कंपनी में IT सपोर्ट स्पेशलिस्ट के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर कई सॉफ्टवेयर ऑटोमेशन आइडिया दिए, जिन्हें कंपनी ने अपनाया और दक्षता में वृद्धि की।
उनकी सफलता की कहानी जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई, तो लोगों ने इसे “Real India Rising Story” कहा। दादासाहेब के संघर्ष ने हजारों युवाओं को यह संदेश दिया कि शिक्षा की डिग्री से बड़ी चीज़ है सीखने की ललक और कड़ी मेहनत।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में एक भाषण के दौरान उनका जिक्र किया। उन्होंने कहा —
“भारत की ताकत उन लोगों में है, जो सीमित संसाधनों में भी बड़े सपने देखते हैं। दादासाहेब भगत जैसे लोगों ने दिखाया है कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी व्यक्ति सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है।”
दादासाहेब भगत आज न केवल इंफोसिस के लिए एक प्रेरणादायक चेहरा हैं, बल्कि देश के उन युवाओं के लिए भी रोल मॉडल बन चुके हैं, जो सीमित साधनों के बावजूद सफलता के सपने देखते हैं। वे आज कई मोटिवेशनल सेमिनारों में जाते हैं, जहां वे युवाओं को बताते हैं कि “किसी भी काम को छोटा या बड़ा न समझो, क्योंकि वही काम आगे चलकर सफलता का आधार बन सकता है।”
उनकी जीवन यात्रा में एक और खास बात यह है कि उन्होंने कभी अपने अतीत को छिपाया नहीं। वे गर्व से बताते हैं कि उन्होंने सफाई की, फाइलें उठाईं, और उन्हीं दिनों ने उन्हें सिखाया कि काम में इमानदारी सबसे बड़ी ताकत होती है।
आज दादासाहेब भगत ने अपने गांव में एक डिजिटल ट्रेनिंग सेंटर खोला है, जहां वे गरीब और ग्रामीण युवाओं को मुफ्त में कंप्यूटर शिक्षा देते हैं। उनका उद्देश्य है कि कोई भी युवा अपने सपनों को अधूरा न छोड़े।
वे कहते हैं —
“जब मैं चपरासी था, तब भी मैंने सपने देखना नहीं छोड़ा। मेरे पास पैसा नहीं था, लेकिन हौसला था। मैं हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करता था और यही आदत मुझे यहां तक लाई।”
उनकी इस सोच ने उन्हें न सिर्फ आर्थिक रूप से सक्षम बनाया, बल्कि एक प्रेरक व्यक्तित्व में बदल दिया। उनके जीवन से यह साबित होता है कि संघर्ष, धैर्य और लगन से किसी भी परिस्थिति को बदला जा सकता है।
जहां एक ओर IIT और IIM जैसी संस्थाओं से निकले छात्र ऊंचे पदों पर काम करते हैं, वहीं दादासाहेब भगत ने यह दिखाया कि काबिलियत डिग्री की मोहताज नहीं होती। वे आज उन लाखों युवाओं के लिए उम्मीद की किरण हैं, जो किसी कारणवश उच्च शिक्षा नहीं ले सके।
दादासाहेब का संदेश सरल है —
“आप जहां से भी शुरुआत करें, अगर आप हार नहीं मानते तो मंज़िल एक दिन जरूर आपकी होगी।”
उनकी कहानी केवल सफलता की नहीं, बल्कि इंसान के भीतर छिपी असीम संभावनाओं की कहानी है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि जब कोई व्यक्ति अपने सपनों के प्रति सच्चा होता है, तो किस्मत भी उसके कदमों में झुक जाती है।