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बिहार विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान का बिगुल मिथिलांचल की धरती से फूंका है। समस्तीपुर से बेगूसराय तक का इलाका, जो मिथिलांचल के रूप में जाना जाता है, लंबे समय से राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता आया है। मोदी का यहां से अभियान शुरू करना सिर्फ एक प्रतीकात्मक कदम नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति और 36 प्रतिशत वोट बैंक का गणित छिपा हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैली के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की विरासत को याद किया। कर्पूरी ठाकुर को बिहार में “गरीबों का नेता” और EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) का बड़ा चेहरा माना जाता है। मोदी ने ठाकुर की नीतियों को अपने “सबका साथ, सबका विकास” के नारे से जोड़ते हुए सीधे EBC वर्ग को साधने की कोशिश की।
मिथिलांचल के अंदर लगभग 80 विधानसभा सीटें आती हैं, जिन पर EBC और पिछड़ा वर्ग का प्रभाव सबसे ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक, इस इलाके में EBC और OBC वर्ग की हिस्सेदारी करीब 36% है, जो किसी भी राजनीतिक दल की जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाता है। यही कारण है कि बीजेपी और एनडीए ने इस क्षेत्र को अपने चुनाव अभियान की शुरुआत के लिए चुना।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मोदी का मिथिलांचल से अभियान शुरू करना एक सामाजिक और सांस्कृतिक दोनों स्तरों पर सोची-समझी रणनीति है। मिथिला संस्कृति न केवल बिहार की पहचान है, बल्कि यहां के लोगों के दिल में भगवान सीता और जनकपुर की परंपरा गहराई से बसी हुई है। बीजेपी लंबे समय से इस सांस्कृतिक जुड़ाव को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रही है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक गौरव की भी बात की। उन्होंने कहा कि “बिहार की धरती से निकलने वाला हर व्यक्ति भारत के विकास में योगदान देता है।” मोदी ने मिथिलांचल की गौरवशाली परंपरा का उल्लेख करते हुए इस क्षेत्र के युवाओं, किसानों और महिलाओं से सीधे संवाद साधा। उन्होंने केंद्र सरकार की योजनाओं — जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि — का जिक्र कर बताया कि इनसे सबसे ज्यादा लाभ मिथिलांचल के परिवारों को मिला है।
वहीं, स्थानीय स्तर पर बीजेपी की रणनीति इस इलाके में एनडीए के पुराने जनाधार को और मजबूत करने की है। जेडीयू और बीजेपी के साझा गठबंधन के तहत एनडीए का फोकस खास तौर पर कायस्थ, ब्राह्मण, वैश्य, कुशवाहा और यादव मतदाताओं के बीच समरसता का संदेश देना है। मिथिलांचल की राजनीति में इन वर्गों का प्रभाव निर्णायक है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि 2025 का चुनाव जातीय समीकरणों से कहीं आगे जाकर “विकास बनाम पिछली सरकारों की विफलता” पर लड़ा जा सकता है। लेकिन जातीय राजनीति अब भी बिहार की आत्मा में गहराई से रची-बसी है। मोदी ने इस समीकरण को ध्यान में रखते हुए न केवल विकास की बात की, बल्कि जातीय आधार पर सामाजिक न्याय का भी संदेश दिया।
प्रधानमंत्री की यह रणनीति EBC वोट बैंक को साधने के साथ-साथ बीजेपी के पारंपरिक शहरी और मध्यमवर्गीय वोटरों को भी सक्रिय करने की है। मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, बेगूसराय और खगड़िया जैसे जिलों में मोदी की रैली का असर पूरे राज्य में चर्चा का विषय बना हुआ है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी की यह मुहिम सीधे ‘कर्पूरी मॉडल बनाम लालू मॉडल’ के बीच टकराव पैदा करेगी। एक तरफ एनडीए खुद को सामाजिक न्याय और विकास के प्रतीक के रूप में पेश कर रहा है, वहीं विपक्ष (राजद-कांग्रेस गठबंधन) इसे “राजनीतिक दिखावा” बताकर कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि एनडीए को उम्मीद है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में जो थोड़ी जमीन विपक्ष ने हासिल की थी, उसे इस बार मिथिलांचल में वापस पाया जा सकता है। बीजेपी ने यहां के बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत किया है और महिला वोटरों पर भी विशेष ध्यान दिया है।
दिलचस्प यह है कि मिथिलांचल को लेकर विपक्ष भी सक्रिय है। तेजस्वी यादव की रैलियां भी इसी इलाके में शुरू होने जा रही हैं। वह रोजगार, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को उठाकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं। मगर मोदी की एंट्री ने चुनावी फलक को पूरी तरह बदल दिया है।
राजनीतिक रूप से देखा जाए तो मोदी का यह अभियान नैरेटिव सेट करने की कवायद है। उन्होंने बिहार के उस क्षेत्र से शुरुआत की, जहां भावना, विरासत और गणित — तीनों का संतुलन है। इससे साफ संदेश गया है कि बीजेपी आने वाले दिनों में सिर्फ विकास नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक न्याय को भी बराबर तवज्जो देगी।
आने वाले कुछ हफ्तों में पीएम मोदी की कई और सभाएं बिहार के अलग-अलग इलाकों में होंगी, लेकिन मिथिलांचल से शुरुआत यह बताती है कि इस बार चुनाव की दिशा उत्तर बिहार के मैदानों से ही तय होने वाली है।








