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पुणे। महाराष्ट्र के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में शुमार ससून जनरल अस्पताल (Sassoon General Hospital) में मरीजों के इलाज के लिए लगाई गई अत्याधुनिक PET-CT स्कैन मशीन महीनों से बंद पड़ी है। यह वही मशीन है जो कैंसर, न्यूरोलॉजिकल और कार्डियक बीमारियों की पहचान में अहम भूमिका निभाती है। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता और तकनीकी खामियों के चलते यह “लाइफ-सेविंग मशीन” अब सिर्फ एक शोपीस बनकर रह गई है।
जानकारी के अनुसार, यह मशीन लगभग 10 करोड़ रुपये की लागत से कुछ साल पहले ससून अस्पताल में लगाई गई थी। इसका उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद मरीजों को अत्याधुनिक निदान सुविधाएं सस्ती दरों पर उपलब्ध कराना था। लेकिन अफसोस की बात है कि यह मशीन कई महीनों से निष्क्रिय है और अब तक अस्पताल प्रशासन इसकी मरम्मत या पुनःसंचालन के लिए ठोस कदम नहीं उठा पाया है।
अस्पताल सूत्रों ने बताया कि मशीन में तकनीकी खराबी आने के बाद इसे बंद कर दिया गया था। इस मशीन के मेंटेनेंस के लिए जिस निजी एजेंसी को जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उसने समय पर सर्विसिंग नहीं की। परिणामस्वरूप, अब यह उपकरण पूरी तरह ठप पड़ा है और मरीजों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
PET-CT स्कैन एक अत्याधुनिक जांच है, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की सटीक स्थिति का पता लगाने में मदद करती है। खासकर, यह जांच यह जानने में मदद करती है कि बीमारी शरीर में किस हद तक फैल चुकी है। ससून अस्पताल जैसे सरकारी संस्थान में यह सुविधा गरीब तबके के मरीजों के लिए बहुत राहत भरी थी, क्योंकि निजी अस्पतालों में एक PET-CT स्कैन की कीमत 15,000 से 25,000 रुपये तक होती है। लेकिन अब इस मशीन के ठप होने से उन्हें निजी केंद्रों का रुख करना पड़ रहा है, जिससे आर्थिक बोझ बढ़ गया है।
मरीजों और उनके परिजनों ने इस लापरवाही पर नाराज़गी जताई है। कैंसर से पीड़ित पुणे निवासी एक मरीज के परिजन ने कहा, “हमारे डॉक्टर ने PET स्कैन की सलाह दी थी, लेकिन ससून अस्पताल में मशीन बंद पड़ी है। निजी अस्पतालों में यह जांच करवाना हमारे बस की बात नहीं है। सरकार को तुरंत इस मशीन को शुरू कराना चाहिए।”
अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मशीन के पार्ट्स विदेश से आने हैं, और प्रक्रिया में समय लग रहा है। उन्होंने कहा, “हमने राज्य स्वास्थ्य विभाग को इसकी जानकारी दी है। मरम्मत का प्रस्ताव भेजा गया है, लेकिन बजट स्वीकृति और पार्ट्स की सप्लाई में देरी हो रही है।”
हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह देरी “प्रशासनिक लापरवाही” का नतीजा है। पुणे के एक ऑन्कोलॉजिस्ट ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में तकनीकी उपकरणों का निष्क्रिय रहना आम बात बन गई है। “यह केवल तकनीकी समस्या नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रणालीगत विफलता है जो सीधे तौर पर मरीजों की जिंदगी पर असर डाल रही है,” उन्होंने कहा।
राज्य स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार, सरकार अब अस्पतालों में उपयोग होने वाले महंगे मेडिकल उपकरणों के रखरखाव के लिए एक नई नीति पर विचार कर रही है। इस नीति के तहत, उपकरणों की नियमित सर्विसिंग और समय-समय पर ऑडिट की व्यवस्था की जाएगी ताकि भविष्य में इस तरह की स्थिति दोबारा न बने।
ससून अस्पताल में हर साल हजारों मरीज कैंसर, हृदय रोग और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं। लेकिन PET-CT जैसी मशीन के बंद रहने से उनका इलाज अधूरा रह जाता है या फिर उन्हें निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। कई बार मरीज समय पर जांच न करा पाने के कारण गंभीर अवस्था में पहुंच जाते हैं।
स्थानीय सामाजिक संगठनों ने भी इस मुद्दे को लेकर आवाज उठाई है। उनका कहना है कि सरकारी खर्च से खरीदे गए महंगे उपकरणों को बेकार पड़ा रहना जनता के पैसे की बर्बादी है। “अगर मशीन खराब है, तो उसे ठीक कराना सरकार की जिम्मेदारी है। हर दिन मरीजों की जान पर बन रही है,” एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा।








