




मेजर राधिका सेन की उपलब्धियां बदलाव लाने के लिए उनके समर्पण और कमिटमेंट को दर्शाती हैं. उनकी कहानी युवा भारतीयों के लिए एक प्रेरणा है.
मेजर राधिका सेन की जर्नी साहस, समर्पण और राष्ट्र की सेवा के जुनून की कहानी है. बायोटेक इंजीनियर की पढ़ाई के बाद उन्होंने हाई सैलरी वाली प्राइवेट नौकरी करने के बजाय भारतीय सेना में शामिल होकर एक अलग रास्ता चुना – कर्तव्य और सेवा का.
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सुंदरनगर में 1993 में जन्मी राधिका बचपन से ही एक होनहार स्टूडेंट रहीं। उन्होंने सुंदरनगर के सेंट मैरी स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और बाद में चंडीगढ़ के माउंट कार्मेल स्कूल में पढ़ाई की. एक मजबूत एकेडमिक रिकॉर्ड के साथ, उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की. हालांकि, प्राइवेट सेक्टर में करियर बनाने के बजाय, उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने के अपने बचपन के सपने को पूरा किया.
आठ साल पहले राधिका ने सशस्त्र बलों में भर्ती होने का साहसिक कदम उठाया था. आज, उन्होंने शांति स्थापना में अपने शानदार योगदान के लिए प्रतिष्ठित संयुक्त राष्ट्र जेंडर एडवोकेट पुरस्कार प्राप्त करके देश को गौरवान्वित किया है. मेजर सुमन गवानी के बाद यह सम्मान पाने वाली वह दूसरी भारतीय शांति सैनिक हैं.
उनके परिवार की शिक्षा-दीक्षा अच्छी रही है. उनके पिता ओमकार सेन एनआईटी हमीरपुर में काम करते थे, जबकि उनकी मां निर्मला सेन चौहार घाटी के कथोग स्कूल में प्रिंसिपल थीं. दोनों अब रिटायर हो चुके हैं. मेजर राधिका सेन की उपलब्धियां बदलाव लाने के लिए उनके समर्पण और कमिटमेंट को दर्शाती हैं. उनकी कहानी युवा भारतीयों के लिए एक प्रेरणा है, जो साबित करती है कि सच्ची सफलता अपने जुनून को फॉलो करने और ज्यादा अच्छे काम करने में ही है.