




दृष्टिहीनता को कमजोरी नहीं, ताकत बनाकर UPSC में रच दिया इतिहास।
नई दिल्ली, 12 जून 2025: भारत में सिविल सेवा परीक्षा को सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है। यहां पहुंचने के लिए वर्षों की मेहनत, लगन और मानसिक दृढ़ता की जरूरत होती है। लेकिन अगर आंखों की रौशनी भी ना हो, तब…?
यह सोचकर रुक जाना आम है, लेकिन सतेंद्र सिंह जैसे जुझारू लोग न सिर्फ आगे बढ़ते हैं, बल्कि इतिहास रच देते हैं।
बचपन से ही संघर्षों की कहानी
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के एक छोटे से गांव में जन्मे सतेंद्र सिंह की आंखों की रोशनी सिर्फ दो साल की उम्र में निमोनिया की गंभीर बीमारी के कारण हमेशा के लिए चली गई। इलाज की व्यवस्था नहीं हो सकी क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। खेती-किसानी से गुजारा चलता था।
पढ़ाई बनी मजबूत हथियार
सतेंद्र ने ब्रेल लिपि को सीखने के बाद पढ़ाई को अपनी ताकत बना लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। इसके बाद जेएनयू से मास्टर्स, एमफिल और पीएचडी पूरी की।
इस दौरान वह दिल्ली विश्वविद्यालय के अरबिंदो कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर भी बन गए। लेकिन उनका सपना इससे कहीं आगे था — देश सेवा।
UPSC की परीक्षा और IAS बनने का सपना
साल 2018 में सतेंद्र सिंह ने पहली बार UPSC परीक्षा दी, जिसमें उन्होंने 714वीं रैंक हासिल की। हालांकि, वह यहां रुकने वाले नहीं थे। दोबारा प्रयास किया और 2021 में वह IAS अधिकारी बन गए।
आज हैं लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा
सतेंद्र सिंह की यह कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है, जो किसी न किसी चुनौती से जूझ रहे हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अंधेरा रास्ता नहीं रोक सकता, अगर आपके पास रोशनी है — हौसले की।
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