




धर्मनगरी मुंबई से लेकर मराठवाड़ा तक आसमान ने अपना कहर बरपा दिया है।
महाराष्ट्र के बीड, लातूर और नांदेड जिलों में पिछले 48 घंटों से हो रही मूसलधार बारिश ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। नांदेड में 206 मिमी तक वर्षा दर्ज की गई है, जिसके चलते कई निचले इलाके पूरी तरह पानी में डूब गए हैं। नदी-नालों में उफान आने से हालात और गंभीर हो गए हैं। प्रशासन ने आपदा प्रबंधन को अलर्ट पर रखा है और सेना तथा राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) की टीमें राहत-बचाव कार्यों में जुट गई हैं।
गांव-गांव जलमग्न, हजारों लोग प्रभावित
बारिश की वजह से बीड जिले के अंबेजोगाई और काजलापुर क्षेत्र में सैकड़ों घरों में पानी घुस गया है। लातूर जिले में मानर नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है, जिसके कारण दर्जनों गांवों को खाली कराया गया। वहीं नांदेड के मुखेड और भोकर तहसीलों में भी भारी जलभराव हुआ है। अनुमान है कि अब तक करीब 25,000 से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और 4,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया है।
सेना और NDRF की तैनाती
स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी। इसके बाद NDRF की तीन टीमें और सेना की दो कॉलम मौके पर भेजी गईं। नावों और हेलीकॉप्टर की मदद से लोगों को रेस्क्यू कर सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया जा रहा है। विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों को प्राथमिकता दी जा रही है। अब तक करीब 1,500 लोगों को बचाकर राहत शिविरों में ले जाया जा चुका है।
मुख्यमंत्री ने की समीक्षा बैठक
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आपात बैठक कर हालात की समीक्षा की और प्रभावित जिलों के अधिकारियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जानकारी ली। उन्होंने प्रशासन को निर्देश दिए कि किसी भी हालत में प्रभावित लोगों की सहायता में कमी न हो। मुख्यमंत्री ने कहा –
“राज्य सरकार हर प्रभावित परिवार तक मदद पहुँचाएगी। किसानों और गरीबों को नुकसान की भरपाई दी जाएगी।”
स्कूल और कॉलेज बंद, यातायात पर असर
बीड, लातूर और नांदेड में सभी स्कूल-कॉलेज दो दिन के लिए बंद कर दिए गए हैं। वहीं सड़क मार्ग पर यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कई जगह राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर पानी भर गया है। रेल और बस सेवाओं पर भी असर पड़ा है। महाराष्ट्र परिवहन निगम (MSRTC) की लगभग 120 बसों के चक्कर रद्द करने पड़े हैं।
किसानों पर दोहरी मार
खरीफ की फसल तैयार होने को थी, लेकिन इस बारिश और बाढ़ ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सोयाबीन, मूंगफली और कपास जैसी फसलें जलमग्न हो गई हैं। कृषि विभाग के शुरुआती अनुमान के मुताबिक, केवल इन तीन जिलों में करीब 12,000 हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचा है। किसानों ने सरकार से मुआवजा देने की मांग की है।
लोगों की दिक्कतें और प्रशासन की चुनौतियां
गांवों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई है। पीने के पानी की समस्या बढ़ गई है। कई जगह संचार सेवाएं बाधित हो गई हैं। प्रशासन ने राहत शिविरों में खाने-पीने और दवाओं की व्यवस्था की है, लेकिन लगातार बारिश और कटे हुए सड़क मार्ग राहत कार्यों में बड़ी बाधा बन रहे हैं।
राजनीतिक दलों की सक्रियता
विपक्षी दल कांग्रेस और एनसीपी ने भी इस आपदा पर चिंता जताई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और शरद पवार ने मुख्यमंत्री से फोन पर बात कर राहत कार्यों की जानकारी ली और केंद्र सरकार से भी अधिक NDRF टीमें भेजने की मांग की।
स्थानीय लोगों की आवाज़
नांदेड के एक ग्रामीण ने बताया – “ऐसा पानी हमने पिछले 25 सालों में नहीं देखा। घर, खेत, मवेशी सब डूब गए हैं। हमें नहीं पता आगे कैसे जीएंगे।” वहीं बीड जिले की एक महिला ने कहा – “हम रात भर बच्चों को लेकर छत पर बैठे रहे, अब सेना हमें सुरक्षित स्थान पर ले गई है।”
भविष्य की तैयारी—विशेष टास्क फोर्स बनेगी
राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि इस बार की बाढ़ को देखते हुए एक स्थायी टास्क फोर्स बनाने की योजना है, जिसमें NDRF, SDRF और सेना की त्वरित इकाइयाँ शामिल होंगी। इसका मकसद आपदा आने पर तुरंत रेस्पॉन्स देना होगा।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र के बीड, लातूर और नांदेड जिलों में आई बाढ़ ने जनजीवन पर गहरा असर डाला है। हजारों लोग बेघर हो गए, किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं और प्रशासन राहत व बचाव कार्यों में पूरी ताकत झोंक रहा है। इस आपदा ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी आपदा प्रबंधन प्रणाली इतनी बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त तैयार है?