




भारत और चीन के बीच पिछले कई वर्षों से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव की स्थिति बनी रही है। गलवान घाटी की झड़पों से लेकर पूर्वी लद्दाख में हुई सैन्य गतिविधियों तक, दोनों देशों के संबंध कई बार कठिन दौर से गुज़रे हैं। लेकिन अब कूटनीति की नई बयार बह रही है। हाल ही में हुई उच्च-स्तरीय वार्ता में दोनों देशों ने सीमा पर शांति स्थापित करने और सहयोग बढ़ाने की पहल की है।
बैठक का मुख्य उद्देश्य
दिल्ली और बीजिंग के प्रतिनिधियों के बीच हुई इस वार्ता का प्रमुख एजेंडा LAC पर स्थिरता और विश्वास बहाली रहा।
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दोनों देशों ने मिलकर एक संयुक्त विशेषज्ञ समूह (Joint Expert Group) बनाने का निर्णय लिया है, जो सीमा पर सैन्य गतिविधियों और गश्त को नियंत्रित करेगा।
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यह समूह संवाद और समन्वय के माध्यम से तनाव की स्थिति को रोकने और गलतफहमी से बचने का काम करेगा।
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खास बात यह रही कि वार्ता केवल सैन्य स्तर तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसमें आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों को भी शामिल किया गया।
LAC पर शांति की दिशा में पहल
भारत-चीन के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है। कई बार बातचीत के बावजूद स्थायी समाधान निकलना मुश्किल साबित हुआ। लेकिन इस बार के संकेत कुछ अलग हैं:
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दोनों देशों ने तय किया कि सीमा पर हॉटलाइन और तेज़ संवाद तंत्र को और सक्रिय किया जाएगा।
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सैन्य स्तर पर फ्लैग मीटिंग्स की संख्या बढ़ाई जाएगी ताकि किसी भी छोटे विवाद को बड़ा बनने से रोका जा सके।
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गश्त के दौरान सैनिकों के बीच दूरी बनाए रखने और “नो आर्म्स” (हथियार न लाने) की पुरानी सहमति को और सख्ती से लागू करने की बात कही गई।
आर्थिक और कूटनीतिक सहयोग
वार्ता में केवल सीमा सुरक्षा ही नहीं, बल्कि आर्थिक संबंधों पर भी चर्चा हुई।
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भारत और चीन ने व्यापार को संतुलित करने और सप्लाई चेन को स्थिर रखने पर सहमति जताई।
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पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को फिर से शुरू करने का संकेत मिला।
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दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की बहाली पर भी विचार किया गया, जिससे लोगों और व्यापारिक समुदाय को राहत मिलेगी।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
भारत और चीन दोनों एशिया की बड़ी शक्तियाँ हैं और वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
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आने वाले ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन से पहले इस वार्ता को बेहद अहम माना जा रहा है।
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विश्लेषकों का मानना है कि दोनों देश यदि मिलकर सहयोग करते हैं तो यह न केवल एशिया बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्थिरता का संदेश देगा।
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अमेरिका और यूरोप की बदलती रणनीतियों के बीच एशिया में भारत-चीन का सहयोग एक नया समीकरण पैदा कर सकता है।
विशेषज्ञों की राय
विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि यह पहल “सावधानी भरा आशावाद” है।
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उनका मानना है कि दोनों देशों के बीच अविश्वास की दीवार अभी भी बनी हुई है, लेकिन बातचीत का सिलसिला सकारात्मक संकेत है।
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“यह सच है कि सीमा विवाद का स्थायी समाधान तुरंत संभव नहीं है, लेकिन संवाद की राह खुलना सबसे अहम है।”
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रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि यदि LAC पर स्थिरता आती है तो भारत अपनी ऊर्जा को आंतरिक विकास और अन्य रणनीतिक मोर्चों पर केंद्रित कर पाएगा।
चुनौतियाँ अब भी बाकी
जहां एक ओर वार्ता से उम्मीदें जगी हैं, वहीं चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं:
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सीमा पर चीन की सैन्य मौजूदगी अभी भी कई इलाकों में बनी हुई है।
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चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति और हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी सक्रियता भारत के लिए चिंता का विषय है।
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भारत में भी राजनीतिक स्तर पर चीन के साथ संबंधों को लेकर संदेह बना रहता है।
निष्कर्ष
भारत-चीन संबंधों में यह पहल निश्चित तौर पर सकारात्मक है। सीमा विवाद को हल करने की दिशा में छोटे-छोटे कदम भी भविष्य में बड़े बदलाव ला सकते हैं। LAC पर शांति कायम रहना न केवल दोनों देशों बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए जरूरी है।