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    रूस बना भारत का नया तेल साझेदार, पर मध्य पूर्व अब भी अहम

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    भारत की ऊर्जा सुरक्षा का नक्शा पिछले कुछ वर्षों में पूरी तरह बदल गया है। परंपरागत रूप से इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे मध्य-पूर्वी देश भारत के सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ता रहे हैं, लेकिन रूस के डिस्काउंटेड कच्चे तेल ने इस संतुलन को गहराई से प्रभावित किया है। 2021 तक जो रूस भारत का केवल तीसरा सबसे बड़ा सप्लायर था, वह 2025 आते-आते सबसे आगे निकल चुका है।

    रूस का उभरता दबदबा

    1. तेज़ी से बढ़ती सप्लाई
      वर्ष 2021 में रूस से भारत को मात्र 1 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल की आपूर्ति हो रही थी। लेकिन अक्टूबर 2023 तक यह आंकड़ा इराक और सऊदी अरब को पीछे छोड़ते हुए सबसे ऊपर पहुँच गया। 2025 की शुरुआत तक रूस औसतन 1.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति कर रहा है, जो भारत के कुल तेल आयात का लगभग 35–38% है।

    2. रियायती दाम और रुपये में भुगतान
      रूस भारतीय आयातकों को 5–7% तक की छूट दे रहा है। साथ ही रुपये में भुगतान का विकल्प उपलब्ध कराया गया है। इससे न केवल विदेशी मुद्रा पर दबाव घटा है बल्कि कंपनियों की लागत भी कम हुई है।

    यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इसके बावजूद रूस ने भारत को तेल सप्लाई जारी रखने के लिए “स्पेशल मैकेनिज्म” बनाया। इसमें शिपिंग, बीमा और वित्तीय लेनदेन के वैकल्पिक रास्ते शामिल थे। इस व्यवस्था की बदौलत रूस और भारत के बीच व्यापार में लगभग 10% वार्षिक वृद्धि देखी गई।

    मध्य-पूर्व की स्थिर स्थिति

    रूस के बढ़ते दबदबे के बावजूद मध्य-पूर्वी देशों की भूमिका कमजोर नहीं हुई है।

    1. इराक – 2021 से अब तक भारत को इराक से होने वाली आपूर्ति में केवल 5% की मामूली गिरावट दर्ज हुई है।

    2. सऊदी अरब – लगभग स्थिर स्थिति में बना हुआ है और भारत के लिए एक विश्वसनीय दीर्घकालिक सप्लायर है।

    3. UAE (संयुक्त अरब अमीरात) – 3% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो यह दर्शाती है कि भारत अब भी इन देशों को रणनीतिक संतुलन के रूप में देख रहा है।

    यह तथ्य भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से अहम है, क्योंकि इन देशों के साथ लंबी अवधि के अनुबंध भारत को स्थिरता और भरोसेमंद आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं।

    छोटे आपूर्तिकर्ताओं की स्थिति

    रूस की सस्ती आपूर्ति ने अमेरिका, अफ्रीकी देशों और अन्य छोटे आपूर्तिकर्ताओं को भारतीय बाजार से काफी हद तक पीछे धकेल दिया है।

    1. अमेरिका – भारत को होने वाली आपूर्ति में लगभग 33% की गिरावट आई है।

    2. नाइजीरिया और कुवैत – लगभग 50% तक की कमी।

    3. ओमान और मैक्सिको – इन देशों की आपूर्ति में 80% से अधिक की गिरावट दर्ज हुई है।

    इस गिरावट का सीधा कारण रूस से मिलने वाली छूट और अपेक्षाकृत कम ट्रांसपोर्टेशन लागत है।

    अमेरिकी दबाव और व्यापारिक चुनौतियाँ

    रूस पर बढ़ती निर्भरता को लेकर अमेरिका नाखुश है।

    1. टैरिफ की धमकी – अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाते हुए 50% तक के टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है। इसका उद्देश्य भारत को रूस पर अत्यधिक निर्भर होने से रोकना है।

    2. रिलायंस और निजी रिफाइनर्स की रणनीति – अमेरिकी दबाव के चलते रिलायंस इंडस्ट्रीज और अन्य निजी रिफाइनर्स धीरे-धीरे फिर से मध्य-पूर्वी सप्लायर्स की ओर ध्यान दे रहे हैं।

    रणनीतिक जोखिम और वास्तविकता

    भारत की ऊर्जा ज़रूरतें प्रतिदिन बढ़ रही हैं, और इसके लिए स्थिर और विविधतापूर्ण सप्लाई जरूरी है।

    1. लघु अवधि में लाभ – रूस से मिलने वाली छूट और रुपये में भुगतान भारत के लिए किफायती सौदा है।

    2. दीर्घकालिक जोखिम – पश्चिमी प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के चलते केवल रूस पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है।

    3. धीरे-धीरे बदलाव – जनवरी-जून 2025 में रूस से आयात में मामूली गिरावट आई है, जबकि मध्य-पूर्वी स्रोतों की ओर भारत का झुकाव बढ़ता दिखाई दे रहा है।

    निष्कर्ष: नया ऊर्जा मानचित्र

    भारत का तेल आयात परिदृश्य बदल चुका है।

    1. रूस अब भारत का सबसे बड़ा और किफायती सप्लायर है, जिसने भारत की आयात संरचना को नया रूप दिया है।

    2. मध्य-पूर्वी देश अब भी भारत की ऊर्जा सुरक्षा का आधार हैं और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।

    3. छोटे आपूर्तिकर्ता अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रतिस्पर्धा और रूस के डिस्काउंट के कारण पीछे हट गए हैं।

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