




वैश्विक राजनीति में एक नई हलचल पैदा हो गई है। अमेरिका ने रूस पर दबाव बनाने के उद्देश्य से भारत समेत कई देशों पर सेकेंडरी टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब रूस–यूक्रेन युद्ध जारी है और पश्चिमी देशों का रूस के खिलाफ मोर्चा और सख्त होता जा रहा है।
भारत और अमेरिका के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों में मज़बूत हुए हैं, लेकिन इस नए कदम ने द्विपक्षीय संबंधों में तनाव की आशंका को जन्म दे दिया है। अब सवाल यह है कि इन टैरिफ का असर भारत की अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और रूस–भारत व्यापार पर कैसा पड़ेगा।
सेकेंडरी टैरिफ क्या होते हैं?
सेकेंडरी टैरिफ ऐसे आर्थिक प्रतिबंध होते हैं, जिन्हें एक देश किसी तीसरे देश पर इसलिए लगाता है क्योंकि वह रूस जैसे टार्गेट देश के साथ व्यापारिक या वित्तीय संबंध रखता है।
सरल भाषा में कहें तो, अगर भारत रूस के साथ तेल, रक्षा या किसी अन्य क्षेत्र में व्यापार करता है, तो अमेरिका भारत पर आर्थिक दंड लगाएगा।
यह रणनीति अमेरिका के लिए नया नहीं है। ईरान पर लगे प्रतिबंधों के दौरान भी वॉशिंगटन ने इसी तरह सेकेंडरी टैरिफ का इस्तेमाल किया था।
भारत पर टैरिफ क्यों?
भारत पिछले कुछ वर्षों में रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद रूस भारत को डिस्काउंट पर तेल उपलब्ध करा रहा है।
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रूस से ऊर्जा आयात: भारत ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी कीं।
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डॉलर का विकल्प: कई बार यह व्यापार रुपये और रुपये–रूबल मैकेनिज्म पर भी आधारित रहा, जिससे अमेरिका की डॉलर डॉमिनेंस को चुनौती मिली।
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रूस की आर्थिक मदद: अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि भारत जैसे देश रूस की अर्थव्यवस्था को सहारा दे रहे हैं।
इसी कारण अमेरिका ने भारत पर सेकेंडरी टैरिफ लगाने का फैसला किया है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने हमेशा अपनी विदेश नीति में रणनीतिक स्वतंत्रता (Strategic Autonomy) की बात कही है। अमेरिका के इस फैसले पर भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने साफ किया कि भारत एक “न्यूट्रल बैलेंसर” की भूमिका निभा रहा है और रूस के साथ उसके रिश्ते ऐतिहासिक और गहरे हैं।
भारत ने यह भी संकेत दिया है कि यदि अमेरिका दबाव बनाता है, तो इससे दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
अमेरिका–भारत रिश्तों पर असर
पिछले एक दशक में अमेरिका और भारत के रिश्ते लगातार मज़बूत हुए हैं। रक्षा समझौते, तकनीकी सहयोग, क्वाड (QUAD) साझेदारी और इंडो–पैसिफिक स्ट्रेटेजी इसका उदाहरण हैं।
लेकिन सेकेंडरी टैरिफ का यह फैसला कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है:
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व्यापारिक तनाव – भारतीय निर्यातकों को अमेरिका के बाजार में मुश्किलें आ सकती हैं।
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कूटनीतिक दबाव – भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव और बढ़ेगा।
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रणनीतिक साझेदारी पर असर – अमेरिका और भारत की सैन्य साझेदारी में खटास आ सकती है।
रूस–भारत संबंधों की अहमियत
भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने हैं। रक्षा, ऊर्जा और विज्ञान–तकनीक में दोनों देशों की साझेदारी गहरी है।
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रक्षा क्षेत्र: भारत के लगभग 60–70% हथियार और रक्षा तकनीक रूस से जुड़े हुए हैं।
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ऊर्जा सुरक्षा: रूस भारत के लिए सस्ते कच्चे तेल का बड़ा स्रोत बन चुका है।
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रणनीतिक सहयोग: दोनों देशों ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक–दूसरे का साथ दिया है।
अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत रूस से दूरी बनाना नहीं चाहेगा।
वैश्विक राजनीति पर असर
यह टैरिफ सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक व्यापार और कूटनीति पर भी असर डालेगा।
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तेल बाजार में अस्थिरता – अगर भारत रूस से तेल खरीद कम करता है तो कीमतें बढ़ सकती हैं।
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ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ – यह मुद्दा भारत को ब्रिक्स और विकासशील देशों के साथ और करीब ला सकता है।
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अमेरिका की छवि – कई देश इसे “आर्थिक दबाव” की राजनीति मान सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका का यह कदम भारत को तुरंत प्रभावित नहीं करेगा, क्योंकि भारत अपनी अर्थव्यवस्था और कूटनीति में विविधता रखता है।
हालांकि, लंबे समय में यह टकराव भारत को अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाने के लिए मजबूर करेगा।
अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए सेकेंडरी टैरिफ वैश्विक राजनीति का नया मोड़ हैं। यह कदम न केवल भारत–US संबंधों की परीक्षा लेगा, बल्कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और ऊर्जा सुरक्षा को भी चुनौती देगा।
भारत के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह रूस और अमेरिका के बीच कैसे संतुलन बनाए रखे। एक ओर ऊर्जा और रक्षा सहयोग के लिए रूस ज़रूरी है, वहीं दूसरी ओर तकनीकी और कूटनीतिक साझेदारी के लिए अमेरिका अहम है।
भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत इस दबाव का सामना करते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम रहता है या फिर अमेरिका के साथ रिश्तों को बचाने के लिए कोई नई रणनीति अपनाता है।