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    सरकार के आकार में सुधार की कवायद: तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया ने पकड़ी रफ्तार

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         केंद्र सरकार ने अपने प्रशासनिक ढांचे को और अधिक तर्कसंगत और प्रभावी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। मौजूदा समय में जब सरकारी कामकाज को तेज और पारदर्शी बनाने की जरूरत लगातार महसूस की जा रही है, तब सरकार ने अपने आकार और संरचना की समीक्षा कर इसे सुधारने की प्रक्रिया शुरू की है।

    पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार लगातार यह महसूस कर रही थी कि मंत्रालयों और विभागों की संख्या तथा उनकी जिम्मेदारियाँ कई बार आपस में ओवरलैप करती हैं। इससे न केवल कामकाज में देरी होती है बल्कि संसाधनों का भी दुरुपयोग होता है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए अब सरकार ने मंत्रालयों और विभागों के तर्कसंगत पुनर्गठन की कवायद तेज कर दी है।

    सरकार का मानना है कि प्रशासनिक ढांचे को सुगम और व्यवस्थित बनाने से सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया में गति आएगी। जब मंत्रालयों की जिम्मेदारियों में स्पष्टता होगी, तब परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से लागू करना आसान होगा। इससे आम जनता को भी सीधा लाभ मिलेगा।

    इसके साथ ही, मंत्रालयों के बीच समन्वय बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है। डिजिटल प्रशासन और ई-गवर्नेंस की दिशा में उठाए गए कदम इसी सोच का हिस्सा हैं।

    प्रशासनिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश में सरकारी संरचना का सुचारु होना बेहद आवश्यक है। एक ही काम के लिए दो मंत्रालयों का अलग-अलग नीति बनाना न केवल भ्रम पैदा करता है बल्कि समय और संसाधन भी बर्बाद करता है।

    विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सरकार का यह कदम आने वाले वर्षों में न केवल दक्षता बढ़ाएगा बल्कि शासन व्यवस्था में जवाबदेही को भी और मजबूत करेगा।

    आम जनता की अपेक्षाएँ भी इसी दिशा में हैं। नागरिकों का मानना है कि जब सरकारी ढांचे में सुधार होगा, तो उनकी समस्याओं के समाधान की प्रक्रिया तेज होगी। छोटे व्यवसायी, किसान, छात्र और आम लोग चाहते हैं कि सरकारी योजनाओं का लाभ समय पर और सही तरीके से उन तक पहुँचे।

    इस प्रक्रिया को राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार यह कदम केवल दिखावे के लिए उठा रही है। उनके अनुसार, असली सुधार तभी होगा जब जमीनी स्तर पर प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।

    हालाँकि, सत्ता पक्ष का कहना है कि यह सुधार केवल मंत्रालयों के ढांचे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर देश की विकास गति पर भी पड़ेगा।

    दुनिया के कई देशों ने पहले ही अपने सरकारी ढांचे को तर्कसंगत बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं। यूरोपीय देशों में मंत्रालयों की संख्या सीमित कर उन्हें अधिक जिम्मेदारी दी गई है। एशियाई देशों में भी प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने के लिए मंत्रालयों का विलय और पुनर्गठन किया गया है। भारत का यह कदम उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।

    अगर यह सुधार प्रभावी तरीके से लागू होते हैं तो आने वाले समय में सरकार के कामकाज का चेहरा पूरी तरह बदल सकता है। योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी आएगी, फाइलों की लंबी प्रक्रिया से मुक्ति मिलेगी और डिजिटल साधनों के जरिए प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी।

    विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि आने वाले समय में सरकार मंत्रालयों के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (PSUs) और अन्य संस्थाओं को भी इसी प्रक्रिया के तहत तर्कसंगत बनाएगी।

    सरकार का ढांचा जितना छोटा और स्पष्ट होगा, शासन उतना ही पारदर्शी और प्रभावी बनेगा। केंद्र सरकार की यह पहल इस दिशा में एक महत्वपूर्ण और साहसिक कदम है। अब देखना यह होगा कि यह प्रक्रिया कितनी तेजी से और कितनी गहराई तक लागू होती है।

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