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अमेरिका ने रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए एक नया प्रस्ताव रखा है। वॉशिंगटन ने G7 देशों से अपील की है कि वे उन देशों पर टैरिफ (आयात शुल्क) लगाएँ जो अब भी रूस से कच्चा तेल खरीद रहे हैं। यह कदम रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने और यूक्रेन युद्ध के दौरान उसकी ऊर्जा से होने वाली आमदनी को कम करने के लिए उठाया गया है।
🔹 रूस-यूक्रेन युद्ध और ऊर्जा संकट
फरवरी 2022 से शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से ही अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। लेकिन रूस अब भी भारत, चीन और कुछ एशियाई देशों को तेल बेचकर राजस्व जुटा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसी तेल से रूस अपनी युद्ध मशीनरी को फंड करता है।
यूरोपियन यूनियन (EU) और G7 देशों ने पहले ही रूस के तेल पर प्राइस कैप (Price Cap) लगाया था, लेकिन कई देश इस पर सख्ती से अमल नहीं कर रहे। अमेरिका चाहता है कि अब उन देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाए ताकि रूस से तेल खरीदना महंगा और कम आकर्षक हो जाए।
🔹 अमेरिका का तर्क
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि—
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“रूस अपने तेल के जरिए हर महीने अरबों डॉलर कमा रहा है।
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यह पैसा सीधे तौर पर यूक्रेन युद्ध को फंड करने में इस्तेमाल हो रहा है।
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जब तक दुनिया रूस से तेल खरीदेगी, पुतिन की आक्रामक नीतियों पर रोक लगाना मुश्किल होगा।”
🔹 भारत और चीन पर निगाह
अमेरिका और G7 की सबसे बड़ी चिंता यह है कि भारत और चीन रूस के तेल के सबसे बड़े खरीदार बन चुके हैं।
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भारत रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदकर अपनी रिफाइनरियों में प्रोसेस करता है और फिर पेट्रोल-डीजल के रूप में निर्यात भी करता है।
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चीन भी रूस के कच्चे तेल का प्रमुख खरीदार है और उसकी अर्थव्यवस्था को सस्ते ऊर्जा स्रोतों से राहत मिलती है।
हालाँकि भारत लगातार यह कहता आया है कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए ही तेल आयात करता है।
🔹 G7 देशों में मतभेद
G7 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा) के बीच इस मुद्दे पर एक राय बनाना आसान नहीं है।
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कुछ देश टैरिफ लगाने के पक्ष में हैं,
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जबकि कुछ का मानना है कि इससे ऊर्जा की वैश्विक कीमतें और बढ़ जाएँगी, जिससे विकासशील देशों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
🔹 विशेषज्ञों की राय
ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि—
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यदि G7 देश रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर टैरिफ लगाते हैं तो यह वैश्विक ऊर्जा बाजार में बड़ा झटका साबित हो सकता है।
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तेल की कीमतों में अस्थिरता आएगी और कई देशों की अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर होगा।
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रूस शायद अपने खरीदारों को और ज्यादा छूट देकर आकर्षित करने की कोशिश करेगा।
अमेरिका का यह प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नए विवाद की शुरुआत कर सकता है।
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एक तरफ अमेरिका और यूरोप रूस की कमाई रोकने की कोशिश कर रहे हैं,
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वहीं दूसरी तरफ एशियाई देश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
अब देखना होगा कि G7 देश अमेरिका के इस सुझाव को मानते हैं या फिर रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर टैरिफ लगाने से बचते हैं।








