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रामनगरी अयोध्या में इस बार दिवाली का पर्व और भी भव्य होने जा रहा है। दीपोत्सव के अवसर पर न केवल लाखों दीप जलेंगे, बल्कि उनमें से करीब पांच लाख विशेष गोमय (गाय के गोबर से बने) और हर्बल दीपक होंगे, जिन्हें जयपुर से तैयार कर भेजा जा रहा है। इन दीपकों का उद्देश्य न केवल अयोध्या की दिवाली को अनोखा बनाना है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वदेशी परंपराओं को भी बढ़ावा देना है।
गोमय दीपक का महत्व
भारत की परंपरा में गाय का गोबर पवित्र और उपयोगी माना जाता है। इससे बने दीपक न केवल आसानी से नष्ट हो जाते हैं, बल्कि यह पर्यावरण को प्रदूषित भी नहीं करते। विशेषज्ञ बताते हैं कि जब गोमय दीपक जलते हैं तो उनमें से एक विशेष प्रकार की खुशबू निकलती है, जो हवा को शुद्ध करती है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सहायक होती है।
जयपुर के कारीगरों ने इन दीपकों को विशेष हर्बल कोटिंग के साथ तैयार किया है, ताकि ये लंबे समय तक जल सकें और अधिक रोशनी दें। साथ ही, इन्हें बनाने में नीम, तुलसी और गिलोय जैसे औषधीय तत्वों का प्रयोग किया गया है।
अयोध्या दीपोत्सव का अनोखा रंग
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार दीपोत्सव को ऐतिहासिक स्तर पर मनाने की योजना बनाई है। राम मंदिर के भव्य उद्घाटन के बाद यह पहला दीपावली पर्व है, जिससे उत्साह और बढ़ गया है। अयोध्या में सरयू तट से लेकर मंदिर परिसर तक लाखों दीपक जलाए जाएंगे, जिनमें जयपुर से आए गोमय दीपक आकर्षण का केंद्र होंगे।
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि इस बार अयोध्या की दिवाली पूरी दुनिया के लिए एक संदेश होगी कि परंपरा और आधुनिकता का संगम कैसे किया जा सकता है।
जयपुर के कारीगरों की मेहनत
इन दीपकों को तैयार करने में जयपुर के कई महिला स्व-सहायता समूहों और स्थानीय कारीगरों ने दिन-रात मेहनत की। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस प्रोजेक्ट के लिए करीब 500 से अधिक कारीगर लगातार काम कर रहे हैं।
इस पहल से ग्रामीण महिलाओं को रोजगार भी मिला है और उनकी आजीविका में सुधार हुआ है।
एक कारीगर ने बताया कि – “यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि हमारी बनाई हुई वस्तुएं अयोध्या जैसे पवित्र स्थल पर उपयोग की जाएंगी। हम सबने पूरी श्रद्धा और समर्पण से इन दीपकों को बनाया है।”
पर्यावरण संरक्षण और संदेश
गोमय दीपकों के उपयोग से यह भी संदेश जाएगा कि प्रदूषण मुक्त और टिकाऊ उत्सव भी संभव है। पिछले वर्षों में देखा गया है कि मोमबत्ती और प्लास्टिक आधारित सजावट से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। लेकिन इस बार का प्रयास यह दर्शाएगा कि भारतीय परंपरा में ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं जो आधुनिक समय में भी कारगर हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस प्रकार के प्रयोग अन्य शहरों और गांवों में भी शुरू हो जाएं, तो यह बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी पैदा कर सकता है और प्रदूषण को भी कम कर सकता है।
श्रद्धालुओं की उत्सुकता
राम मंदिर के दर्शन के साथ दिवाली मनाने अयोध्या आने वाले लाखों श्रद्धालु इस बार एक अलग ही दृश्य देखेंगे। सरयू तट पर पांच लाख गोमय दीपकों की लौ एक अनोखा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव देगी।
अयोध्या की दिवाली इस बार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होगी, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, रोजगार और परंपरा के सम्मान का भी उत्सव बनेगी। जयपुर से आए पांच लाख गोमय हर्बल दीपक आने वाले वर्षों में दिवाली उत्सव की दिशा बदलने का संकेत हैं।






