




कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अडानी समूह द्वारा संचालित धीरौली कोयला खनन परियोजना की मंजूरी प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाया है। उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय पर संविधान की पाँचवीं अनुसूची और वनाधिकार कानून, 2006 का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
परियोजना का विवरण
धीरौली कोयला खदान मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में स्थित है, जो झारखंड की सीमा के पास है। यह परियोजना लगभग 3,500 एकड़ वन भूमि के अधिग्रहण से संबंधित है, जो पाँचवीं अनुसूची के तहत संरक्षित क्षेत्र में आती है। इस क्षेत्र में आदिवासी समुदायों की विशेष रूप से संवेदनशील जनजातियाँ निवास करती हैं।
जयराम रमेश के आरोप
जयराम रमेश ने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा:
“मैंने 12 सितंबर को मोदानी की धीरौली कोयला खनन परियोजना की मंजूरी प्रक्रिया में हुई भारी गड़बड़ियों का मुद्दा उठाया था। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने दावा किया कि खनन क्षेत्र संविधान की पाँचवीं अनुसूची में नहीं आता, लेकिन 9 अगस्त 2023 को कोयला मंत्रालय ने लोकसभा में स्पष्ट रूप से कहा था कि यह क्षेत्र पाँचवीं अनुसूची में आता है।”
उन्होंने आगे कहा कि वनाधिकार कानून, 2006 के तहत ग्राम सभाओं की मंजूरी आवश्यक है, लेकिन इस मामले में ग्राम सभाओं की अनुमति नहीं ली गई है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का स्पष्टीकरण
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जयराम रमेश के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि:
“धीरौली कोयला खदान के लिए स्टेज-II (अंतिम) मंजूरी 9 मई 2025 को जारी की गई थी। खनन क्षेत्र संविधान की पाँचवीं अनुसूची में नहीं आता, और वनाधिकार कानून के तहत सभी आवश्यक प्रक्रियाएँ पूरी की गई हैं।”
मंत्रालय ने यह भी कहा कि ग्राम सभा की मंजूरी आवश्यक नहीं थी, क्योंकि यह क्षेत्र पाँचवीं अनुसूची के तहत आता है।
अडानी समूह का पक्ष
अडानी समूह ने इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। हालांकि, कंपनी ने पहले कहा था कि उसे कोयला मंत्रालय से खनन संचालन शुरू करने की मंजूरी मिल गई है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को आदिवासी अधिकारों और पर्यावरणीय संरक्षण से जोड़ते हुए केंद्र सरकार पर हमला बोला है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अडानी समूह को लाभ पहुँचाने के लिए आदिवासी क्षेत्रों के अधिकारों की अनदेखी की है।
धीरौली कोयला खनन परियोजना को लेकर जारी विवाद ने केंद्र सरकार, कांग्रेस पार्टी, और अडानी समूह के बीच तीखे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप को जन्म दिया है। यह मामला आदिवासी अधिकारों, पर्यावरणीय संरक्षण, और निजीकरण के मुद्दों पर व्यापक बहस को प्रेरित कर रहा है।