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    जिंदगी का अंधेरा भी न रोक सका मनु गर्ग को, मां के साथ ने दिलाई IAS में सफलता

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    जीवन में संघर्ष और चुनौतियां हर किसी के सामने आती हैं। लेकिन कुछ लोग इन मुश्किलों को हराकर मिसाल बन जाते हैं। ऐसी ही प्रेरणादायी कहानी है मनु गर्ग की, जिन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खोने के बावजूद IAS बनने का सपना पूरा किया। इस सफलता के पीछे उनकी मां का तप, समर्पण और अथक प्रयास है।

    बचपन में खो गई रोशनी

    मनु गर्ग का बचपन सामान्य बच्चों की तरह ही शुरू हुआ। लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही लिखा था। जब वे 8वीं क्लास में पहुंचे तो उनकी बची-खुची रोशनी भी चली गई। एक छोटे से बच्चे के लिए यह झटका बेहद बड़ा था। अचानक अंधेरे में डूब चुकी जिंदगी अब और कठिन हो गई। लेकिन इस कठिन समय में उनकी मां ने उन्हें टूटने नहीं दिया।

    मां बनीं सबसे बड़ी ताकत

    मनु की मां ने सिर्फ एक मां का नहीं, बल्कि एक शिक्षक, मित्र और रीडर का भी किरदार निभाया। उन्होंने बेटे को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। किताबों को खुद पढ़कर सुनातीं। हर असाइनमेंट और हर पाठ को अपनी आवाज के जरिए मनु तक पहुंचातीं। मां ने बेटे को यह एहसास कभी नहीं होने दिया कि वह नेत्रहीन है। मां के इस तप और त्याग ने मनु की जिंदगी बदल दी।

    चुनौतियों के बीच शिक्षा

    नेत्रहीन होना मनु के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इसे हार मानने का कारण नहीं बनने दिया। उन्होंने पढ़ाई को ही अपना हथियार बनाया। कठिन विषयों को समझने के लिए बार-बार मां से मदद ली। तकनीक और ब्रेल जैसी सुविधाओं का भी सहारा लिया। धीरे-धीरे उन्होंने खुद को इतना मजबूत बना लिया कि वे प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की ओर बढ़ सके।

    IAS बनने की प्रेरणादायी यात्रा

    मनु गर्ग का सपना था कि वे सिविल सर्विसेज में जाएं। उन्होंने UPSC की कठिन परीक्षा दी और सफलता हासिल की। इस सफर में उनके साथ मां का हर कदम पर योगदान रहा। उनकी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति ने उन्हें IAS बनने का गौरव दिलाया।

    आज मनु गर्ग उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो संघर्षों से हार मान लेते हैं।

    समाज के लिए संदेश

    मनु गर्ग की कहानी हमें यह सिखाती है कि

    1. दृढ़ निश्चय और लगन से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।

    2. परिवार और विशेषकर मां का साथ सबसे बड़ी ताकत होता है।

    3. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, हार मानना कभी समाधान नहीं है।

    4. दिव्यांगजन भी अगर अवसर और सहयोग पाएं, तो किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं।

    मां-बेटे का अनोखा रिश्ता

    यह कहानी सिर्फ एक IAS अफसर की सफलता की गाथा नहीं है, बल्कि एक मां-बेटे के रिश्ते की अमर मिसाल है। जब जिंदगी अंधेरे में डूब गई थी, तब मां ही मनु की आंखें बन गईं। उन्होंने बेटे का हाथ थामकर न केवल पढ़ाई में, बल्कि आत्मविश्वास जगाने में भी मदद की। मां के तप और बेटे की मेहनत ने मिलकर इस सफलता को संभव बनाया।

    मनु गर्ग की सफलता यह दर्शाती है कि इंसान की असली ताकत उसकी इच्छाशक्ति और मेहनत में होती है। नेत्रहीन होते हुए भी IAS बनने की उनकी यात्रा हर किसी के लिए प्रेरणा है।

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