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भारतीय सेना ने आधुनिक युद्ध की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक बड़ी पहल की है। सेना देशभर में अपने 19 प्रमुख सैन्य शिक्षण केंद्रों में ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर खोलने जा रही है।
यहां सैनिकों को सभी स्तर पर ड्रोन उड़ाने, संचालित करने और तकनीकी उपयोग की ट्रेनिंग दी जाएगी। यह कदम हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों के बाद उठाया गया है, जिसमें यह साफ हो गया कि भविष्य के युद्ध में ड्रोन की भूमिका निर्णायक होगी।
ड्रोन ट्रेनिंग की जरूरत क्यों?
आधुनिक युद्ध अब केवल जमीनी सैनिकों और पारंपरिक हथियारों तक सीमित नहीं रह गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य-पूर्व के संघर्षों में ड्रोन के इस्तेमाल ने युद्ध का स्वरूप बदल दिया है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना ने भी देखा कि ड्रोन निगरानी, खुफिया जानकारी जुटाने और सटीक हमलों के लिए बेहद कारगर हैं। इसी कारण भारतीय सेना अब अपने सैनिकों को बड़े पैमाने पर ड्रोन ट्रेनिंग देने की योजना पर काम कर रही है।
19 बड़े सैन्य केंद्रों में होंगे ड्रोन सेंटर
भारतीय सेना देशभर के 19 प्रमुख सैन्य शिक्षण केंद्रों में अत्याधुनिक ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर खोलेगी। इन केंद्रों पर अफसरों, जेसीओ (Junior Commissioned Officers) और अन्य रैंकों के सैनिकों को अलग-अलग स्तर की ट्रेनिंग दी जाएगी। ट्रेनिंग में ड्रोन असेंबल करना, ऑपरेट करना, निगरानी मिशन, दुश्मन की गतिविधियों का पता लगाना और युद्ध में इस्तेमाल करना सिखाया जाएगा।
ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीख
हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को एहसास हुआ कि ड्रोन की मदद से दुश्मन की गतिविधियों पर रियल-टाइम नजर रखी जा सकती है। ड्रोन के जरिए दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले और आपूर्ति लाइन तोड़ना आसान हो जाता है। पारंपरिक युद्ध की तुलना में ड्रोन से होने वाला खर्च भी कम है और इसकी कुशलता ज्यादा है।
इसी अनुभव के बाद सेना ने ड्रोन ट्रेनिंग को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया।
सैनिकों की ट्रेनिंग का ढांचा
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बेसिक ट्रेनिंग: छोटे निगरानी ड्रोन उड़ाने और डेटा जुटाने की ट्रेनिंग।
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एडवांस ट्रेनिंग: बड़े और हाई-टेक कॉम्बैट ड्रोन के इस्तेमाल की ट्रेनिंग।
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स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग: दुश्मन की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और ड्रोन से काउंटर-अटैक करने की तकनीक।
इस ट्रेनिंग में आर्मी के अलावा एयरफोर्स और नेवी के अफसरों को भी शामिल किए जाने की संभावना है।
भारत की रक्षा रणनीति में बदलाव
भारतीय सेना के इस कदम को भारत की रक्षा रणनीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। अब तक भारतीय सेना ने ड्रोन का इस्तेमाल सीमित रूप से किया था, लेकिन अब इसे व्यापक स्तर पर लागू किया जाएगा। ड्रोन ट्रेनिंग से सेना को सीमा पर निगरानी, आतंकवाद विरोधी अभियानों और दुश्मन की गतिविधियों पर रोकथाम में मदद मिलेगी। यह कदम भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल का मुकाबला करने में भी सक्षम बनाएगा।
रक्षा विशेषज्ञों की राय
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सेना का यह कदम समय की मांग है। आधुनिक युद्ध में ड्रोन का इस्तेमाल केवल निगरानी तक सीमित नहीं है, बल्कि सटीक हमलों और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट तक बढ़ गया है। भविष्य में भारतीय सेना को स्वदेशी ड्रोन तकनीक विकसित करने और उसे युद्ध में इस्तेमाल करने पर जोर देना होगा।
स्वदेशी ड्रोन का महत्व
भारत पहले से ही स्वदेशी ड्रोन तकनीक पर काम कर रहा है। HAL, DRDO और निजी कंपनियां मिलकर कॉम्बैट और निगरानी ड्रोन विकसित कर रही हैं। ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर बनने से इन स्वदेशी तकनीकों को बेहतर तरीके से सेना में लागू किया जा सकेगा। इससे भारत की आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी बल मिलेगा।
भारतीय सेना का यह निर्णय कि वह अपने 19 बड़े सैन्य केंद्रों में ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर खोलेगी, एक दूरदर्शी और ऐतिहासिक कदम है।
ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों ने साबित कर दिया कि आने वाले समय में युद्ध का स्वरूप ड्रोन-केंद्रित होगा। इस पहल से न केवल भारतीय सेना की लड़ाकू क्षमता और निगरानी तंत्र मजबूत होगा, बल्कि यह भारत को आधुनिक युद्ध तकनीक में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी भी बनाएगा।








