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भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने लोकतांत्रिक और पारदर्शी व्यवस्था को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। आयोग ने 808 पंजीकृत लेकिन अप्रमाणित राजनीतिक दलों को अपनी सूची से डीलिस्ट (हटाने) का फैसला किया है। यह निर्णय राजनीतिक दलों की गतिविधियों की निगरानी और चुनावी सुधारों को लेकर चल रही पहल का हिस्सा बताया जा रहा है।
निर्वाचन आयोग की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि जिन 808 दलों को सूची से हटाया गया है, वे लंबे समय से गैर-सक्रिय, वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत करने में असफल या निर्वाचन संबंधी मानकों को पूरा करने में नाकाम रहे थे।
आयोग ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण सिर्फ कागज़ों पर न होकर सक्रिय रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में योगदान करना चाहिए।
इन दलों की डीलिस्टिंग के पीछे कई कारण बताए गए हैं:
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चुनावी गतिविधियों में भाग न लेना – कई दल पिछले चुनावों में सक्रिय नहीं रहे।
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वित्तीय पारदर्शिता का अभाव – वार्षिक लेखा-जोखा और दानदाताओं की जानकारी समय पर आयोग को नहीं दी।
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नियमों का उल्लंघन – राजनीतिक दल अधिनियम और निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया।
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सिर्फ नाम मात्र के अस्तित्व – बड़ी संख्या में दल केवल नाम के लिए पंजीकृत थे, जिनकी कोई जमीनी पकड़ नहीं थी।
भारत में फिलहाल 2,700 से अधिक पंजीकृत राजनीतिक दल हैं, जिनमें से केवल कुछ ही दल राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त हैं।
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इस कदम के बाद सक्रिय दलों की संख्या में स्पष्ट कमी आएगी।
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विशेषज्ञों का मानना है कि इससे “फर्जी या निष्क्रिय दलों” की छंटनी होगी और वास्तविक राजनीति करने वाले दलों की पहचान आसान होगी।
चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, आयोग का यह कदम चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और स्वच्छ बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
इस कदम पर विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ सामने आईं।
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सत्ताधारी दल के नेताओं ने कहा कि निर्वाचन आयोग का यह निर्णय “लोकतंत्र को मज़बूत करने वाला” है और इससे जनता का भरोसा बढ़ेगा।
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वहीं, कुछ विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रही और छोटे दलों को दबाने की कोशिश की गई।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि आयोग को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि डीलिस्टिंग की प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और गैर-पक्षपाती हो।
यह कदम निर्वाचन आयोग की उस कोशिश का हिस्सा है जिसमें वह “पारदर्शी चुनावी राजनीति” की नींव को मजबूत करना चाहता है।
हाल ही में आयोग ने दलों से वित्तीय दान की जानकारी, चुनावी खर्च का ब्यौरा और संगठनात्मक ढांचे को सार्वजनिक करने की अपील की थी।
साथ ही, आयोग यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि ई-वोटर कार्ड, पारदर्शी चंदा प्रणाली और राजनीतिक दलों की डिजिटल मॉनिटरिंग जैसी व्यवस्थाएँ भविष्य में और सख्ती से लागू की जाएं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसमें राजनीतिक दलों की भूमिका अहम है। लेकिन दलों की अधिकता और निष्क्रिय संगठनों की मौजूदगी से
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जनता में भ्रम की स्थिति पैदा होती है,
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चुनावी प्रक्रिया पर अव्यवस्था का खतरा बढ़ता है,
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और काले धन के इस्तेमाल की आशंका भी रहती है।
इसलिए निर्वाचन आयोग का यह कदम लोकतंत्र को अधिक जिम्मेदार और भरोसेमंद बनाने की दिशा में माना जा रहा है।
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 808 पंजीकृत लेकिन अप्रमाणित दलों को सूची से हटाना सिर्फ प्रशासनिक फैसला नहीं है, बल्कि यह “राजनीतिक सुधारों का मजबूत संदेश” है। यह कदम राजनीतिक दलों को जिम्मेदारी और पारदर्शिता की ओर प्रेरित करेगा।
अब देखना यह होगा कि इस कार्रवाई के बाद शेष बचे दल कितनी ईमानदारी से अपने संगठन और चुनावी गतिविधियों को जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं।








