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    सतना के नवयुवक और उनका चुनौतीपूर्ण ड्रोन प्रोजेक्ट: क्या ‘खड़ग’ व ‘शक्ति’ सेना के लिए बदलाव लाएंगे?

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    सतना के छोटे से गांव के 21 वर्षीय अंशुमान शुक्ला और उनके दो दोस्तों द्वारा विकसित किए गए दो ड्रोन प्लेटफॉर्म—‘खड़ग’ और ‘शक्ति’—ने हालिया दिनों में राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है। यह कहानी उस समय शुरू हुई जब दुनिया टीवी पर बड़े सैन्य संघर्षों को देख रही थी और तीनों युवाओं ने अपने कौशल और सीमित संसाधनों के साथ तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया। डेवलपर्स का कहना है कि उनका उद्देश्य देश की रक्षा के लिए सस्ता, स्मार्ट और उपयोगी उपकरण बनाना था। हालांकि, इस परियोजना को लेकर सुरक्षा, कानूनी और नैतिक चिंताएँ भी तेज हो गई हैं।

    अंशुमान और उनके साथियों ने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से प्रारूप तैयार किया और कहते हैं कि उनके पास दो अलग-अलग भूमिका वाले ड्रोन हैं। एक प्लेटफॉर्म को उन्होंने ‘खड़ग’ कहा, जिसे डेवलपर्स ने लक्षित हमले के साधन के रूप में वर्णित किया। इसके विपरीत, दूसरा प्लेटफॉर्म ‘शक्ति’ सर्विलांस और नुकसान आकलन का काम करने के लिए तैयार बताया गया है। युवाओं का दावा है कि दोनों प्रणालियाँ कीमत में कम और उपयोग में लचीली हैं, पर इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि उपलब्ध स्रोतों से अभी तक नहीं हो पाई है।

    स्थानीय ग्रामवासियों और अंशुमान के जान-पहचान वाले लोगों का कहना है कि वह बचपन से ही मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स में रुचि रखते थे। उनके परिवार और गाँव वाले इस उपलब्धि पर गर्व कर रहे हैं, पर साथ ही चिंतित भी हैं कि इन उपकरणों की सटीक प्रकृति और संभावित उपयोग का दायरा क्या होगा। कुछ नागरिकों ने सुरक्षा और कानूनी पहलुओं पर सवाल उठाए तो कुछ ने युवा प्रतिभा की तारीफ की।

    राज्य और केंद्र सरकार के रक्षा संबंधी निकायों से इस परियोजना पर औपचारिक प्रतिक्रिया के लिए स्पष्ट बयान अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं। विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि कोई नागरिक किसी तरह की हथियारनुमा प्रौद्योगिकी विकसित करता है, तो उससे जुड़ी कानूनी प्रक्रिया, लाइसेंस और सुरक्षा तंत्रों का पालन अनिवार्य है। साथ ही, किसी भी संवेदनशील रक्षा प्रौद्योगिकी की तैनाती और उपयोग केवल संगठित और मान्यता प्राप्त संस्थानों के माध्यम से ही होनी चाहिए।

    वहीं रक्षा विश्लेषक और नीति समीक्षक इस मामले को लेकर सावधानी बरतने का सुझाव देते हैं। उनके अनुसार, तकनीकी नवाचार की प्रशंसा उसी सीमा तक उचित है जहाँ वह शांति और सुरक्षा के नियमों के भीतर रहे। उन्होंने कहा कि सिविलियन-स्तर पर विकसित होने वाली रक्षा-सम्बन्धी तकनीकें सुरक्षा जोखिम और आतंकवाद के दुरुपयोग के नए रास्ते भी खोल सकती हैं, इसलिए मजबूत नियमन आवश्यक है। कुछ विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि सरकार और रक्षा अनुसंधान संस्थान (DRDO जैसे) ऐसे आविष्कारों को पहचान कर उन्हें अनुशासित रूप में शामिल करने के विकल्प तलाश सकते हैं — बशर्ते सभी कानूनी और सुरक्षा मानक पूरे हों।

    नैतिक दृष्टि से भी सवाल उठते हैं। एक युवा को देश के लिए कुछ करना प्रेरक लग सकता है, पर जब वह चीजें हिंसा से जुड़ी हों तो समाज को व्यापक विमर्श की आवश्यकता होती है। नागरिक समाज के कुछ प्रतिनिधियों ने कहा है कि टेक्नोलॉजी जितनी भी उपयोगी हो, उसकी जवाबदेही, पारदर्शिता और नियंत्रण संरचना पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए। यही नहीं, मीडिया और पब्लिक प्लेटफॉर्म पर ऐसे दावों की रिपोर्टिंग करते समय जिम्मेदारी से काम लेना भी जरूरी है ताकि किसी प्रकार की उन्मादी या गलत जानकारी न फैले।

    अंशुमान और उनके साथियों ने सार्वजनिक मंच पर कहा है कि उनका मकसद सिर्फ तकनीकी सक्षम करना है और वे चाहते हैं कि उनकी खोजें सरकार या रक्षा संगठनों के साथ मिलकर मानकीकृत रूप में उपयोग होँ। उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी अवैध गतिविधि का समर्थन नहीं करते और उनके पास ड्रोन की वास्तविक क्षमताओं के बारे में पारदर्शिता बनाए रखने की इरादा है। परंतु, पत्रकारों और शोधकर्ताओं ने नोट किया कि इन दावों की स्वतंत्र तकनीकी सत्यापन और आधिकारिक निगरानी की आवश्यकता है।

    कानूनी रूप से भारत में ड्रोन संचालन और रक्षा उपकरणों के निर्माण पर सख्त नियम हैं। मिसयूज़ रोकने के लिए ड्रोन पॉलिसी, आयुध नियम और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू होते हैं। इसलिए स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार या केंद्र सरकार की ओर से औपचारिक मंजूरी और सहयोग के बिना किसी भी सैन्य प्रयोजन वाली तकनीक का उपयोग संवेदनशील और संभावित रूप से अवैध हो सकता है। इसीलिए विशेषज्ञ और नीति निर्माता सुझाव दे रहे हैं कि ऐसे मामलों में पारदर्शिता, नियामक सहभागिता और सहायक प्रशिक्षण कार्यक्रम अनिवार्य होंगे।

    अंततः यह घटना दो तरह के प्रश्न खड़े करती है: पहली, यह कि देश की युवा प्रतिभा को उचित मार्गदर्शन और मान्यता कैसे मिले ताकि उनके सकारात्मक नवाचार राष्ट्रीय विकास में योगदान दें; और दूसरी, यह कि संवेदनशील तकनीक के मामले में सुरक्षा, कानून और नैतिकता की सीमाएँ कैसे सुनिश्चित की जाएँ। सतना का यह प्रोजेक्ट अगर सही तरीके से मानकीकृत और नियंत्रण के दायरे में लाया गया तो यह रक्षा अनुसंधान में स्थानीय प्रतिभा को सशक्त करने का उदाहरण बन सकता है। वरना, बिना निगरानी के किसी भी प्रकार का हथियारनुमा विकास जोखिमों और अनचाहे परिणामों को आमंत्रित कर सकता है।

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