




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में भारत की औद्योगिक और आर्थिक प्रगति की दिशा में एक नई रणनीति पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब भारत को केवल उपभोक्ता राष्ट्र नहीं रहना चाहिए, बल्कि उत्पादन और नवाचार का वैश्विक केंद्र बनना होगा। इसी दृष्टि से उन्होंने “चिप्स से शिप्स” (Chips to Ships) का विज़न प्रस्तुत किया।
यह विज़न सिर्फ़ एक नारा नहीं है, बल्कि भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, हार्डवेयर, चिप्स निर्माण और समुद्री उद्योग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने का रोडमैप है।
मेक इन इंडिया से आगे का कदम
2014 में शुरू हुई मेक इन इंडिया पहल ने भारत की औद्योगिक पहचान को बदलने का काम किया। इस अभियान के तहत कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में निवेश किया। मोबाइल फोन निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
अब सरकार का लक्ष्य और बड़ा है। मोदी ने कहा कि “हमें ‘चिप्स से शिप्स’ तक अपने देश में ही उत्पादन करना होगा।” इसका मतलब यह है कि माइक्रोचिप्स जैसे अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी उत्पादों से लेकर बड़े समुद्री जहाजों तक का निर्माण भारत में होना चाहिए।
क्यों ज़रूरी है ‘चिप्स से शिप्स’?
आज की दुनिया में चिप्स यानी सेमीकंडक्टर हर उपकरण का आधार हैं। चाहे वह मोबाइल फोन हो, लैपटॉप हो, कार हो या रक्षा उपकरण—सबमें चिप्स की भूमिका अहम है। कोरोना महामारी के दौरान वैश्विक चिप संकट ने यह साफ कर दिया कि किसी भी देश के लिए सेमीकंडक्टर उत्पादन आत्मनिर्भर होना कितना ज़रूरी है।
इसी तरह, शिपिंग और समुद्री उद्योग वैश्विक व्यापार की रीढ़ है। भारत एक समुद्री राष्ट्र है, जिसके पास लंबा तटीय क्षेत्र है। लेकिन जहाज निर्माण उद्योग में भारत का योगदान अभी भी सीमित है। यदि भारत अपने जहाज खुद बनाएगा, तो यह न केवल रोजगार बढ़ाएगा बल्कि विदेशी निर्भरता को भी कम करेगा।
सरकार की प्रमुख योजनाएँ
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सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग हब
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गुजरात और तमिलनाडु में सेमीकंडक्टर फैब परियोजनाएँ शुरू हो रही हैं।
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सरकार अरबों डॉलर के निवेश आकर्षित करने के लिए सब्सिडी और कर प्रोत्साहन दे रही है।
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इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर उत्पादन
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PLI (Production Linked Incentive) स्कीम के जरिए मोबाइल, लैपटॉप और अन्य हार्डवेयर निर्माण को बढ़ावा मिल रहा है।
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लक्ष्य है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में एशिया का बड़ा हब बने।
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समुद्री उद्योग और शिपबिल्डिंग
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सरकार ने ‘सागरमाला परियोजना’ के अंतर्गत बंदरगाहों का आधुनिकीकरण शुरू किया है।
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शिपबिल्डिंग उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए नए क्लस्टर बनाए जा रहे हैं।
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वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत
चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान पहले से ही चिप्स और जहाज निर्माण में बड़े खिलाड़ी हैं। भारत का लक्ष्य है कि अगले दशक में इन देशों के बराबर खड़ा हो सके।
मोदी सरकार का मानना है कि यदि भारत “डिजिटल हार्डवेयर से लेकर समुद्री जहाज” तक हर चीज़ का निर्माण अपने देश में करेगा, तो न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी, बल्कि भारत एक निर्यातक राष्ट्र भी बनेगा।
रोजगार और निवेश पर असर
‘चिप्स से शिप्स’ विज़न से आने वाले समय में लाखों रोजगार के अवसर बन सकते हैं।
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सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में हाई-स्किल्ड इंजीनियर्स की ज़रूरत होगी।
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शिपबिल्डिंग उद्योग में ब्लू-कॉलर वर्कर्स से लेकर डिजाइन इंजीनियर्स तक, बड़ी संख्या में लोग रोजगार पाएंगे।
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विदेशी निवेश बढ़ेगा और भारत के छोटे व मध्यम उद्योगों (SMEs) को भी फायदा होगा।
चुनौतियाँ भी हैं सामने
हालाँकि, यह सपना आसान नहीं है।
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सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए अरबों डॉलर का निवेश और तकनीकी विशेषज्ञता चाहिए।
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शिपबिल्डिंग उद्योग में भारत को लॉजिस्टिक्स और उच्च गुणवत्ता वाले स्टील जैसे संसाधनों की भी बड़ी आवश्यकता होगी।
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वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बहुत कठोर है। चीन और ताइवान जैसे देशों के मुकाबले भारत को लंबा सफर तय करना होगा।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा
मोदी सरकार ने “आत्मनिर्भर भारत” को अपनी नीतियों का आधार बनाया है। ‘चिप्स से शिप्स’ इसी सोच का हिस्सा है। यह योजना भारत को न केवल उपभोक्ता बाजार बल्कि वैश्विक निर्माण केंद्र बनाने की क्षमता रखती है।
यदि यह सपना साकार होता है, तो भारत दुनिया की नई मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस बनकर उभरेगा।
‘चिप्स से शिप्स’ विज़न केवल एक औद्योगिक योजना नहीं है। यह भारत की आर्थिक स्वतंत्रता, तकनीकी क्षमता और रोजगार वृद्धि का प्रतीक है। प्रधानमंत्री मोदी की यह पहल भारत को आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है।