




बॉलीवुड की चर्चित युवा अभिनेत्री जाह्नवी कपूर, प्रतिभाशाली ईशान खट्टर और अभिनेता विशाल जेठवा की नई फिल्म ‘होमबाउंड’ (Homebound) भारत में रिलीज़ से पहले ही सुर्खियों में आ गई है। इसका कारण है सेंसर बोर्ड यानी CBFC (Central Board of Film Certification) द्वारा फिल्म में की गई 11 कटौतियाँ और बदलावों की मांग। यह वही फिल्म है जिसे भारत ने हाल ही में ऑस्कर 2026 के लिए Best International Feature Film श्रेणी में अपनी आधिकारिक एंट्री के रूप में नामांकित किया है।
‘Homebound’ का निर्देशन किया है नीरज घेवन ने, जो पहले भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी फिल्म ‘मसान’ और ‘घिल्ली पुल्ली’ जैसी फिल्मों के लिए सराहे जा चुके हैं। ‘होमबाउंड’ एक संवेदनशील सामाजिक कहानी है जो परिवार, विस्थापन, जाति और वर्ग भेद के विषयों को छूती है। फिल्म की सिनेमैटिक शैली और नैरेटिव ने इसे विश्व स्तर पर सराहना दिलाई है, लेकिन भारत में रिलीज से पहले सेंसर बोर्ड की कैंची चलने से विवाद खड़ा हो गया है।
सूत्रों के अनुसार CBFC ने फिल्म के कुछ संवादों और दृश्यों पर आपत्ति जताई है। बोर्ड ने फिल्म को ‘UA 16+’ सर्टिफिकेट देने से पहले इसमें 11 बदलावों की अनुशंसा की। इनमें कुछ प्रमुख संवादों को म्यूट करना, कुछ दृश्यों को पूरी तरह हटाना और कई सीन के ड्यूरेशन को कम करना शामिल है।
रिपोर्ट्स के अनुसार फिल्म में “ज्ञान” शब्द को म्यूट किया गया है, जबकि “आलू गोभी … खाते हैं” जैसे संवाद को हटाने की सलाह दी गई है। एक पूजा के दृश्य को दो सेकंड कम किया गया है, जबकि एक क्रिकेट मैच के दृश्य को लगभग 32 सेकंड काटा गया है। कुल मिलाकर फिल्म से लगभग 1 मिनट 17 सेकंड का कंटेंट हटाने की सिफारिश की गई है।
फिल्म के निर्देशक नीरज घेवन और निर्माता करण जौहर इस स्थिति से आंशिक रूप से असंतुष्ट हैं लेकिन उन्होंने CBFC के साथ सहयोगात्मक रुख अपनाया है ताकि फिल्म तय समय पर रिलीज हो सके। जान्हवी कपूर ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए कहा कि यह फिल्म उनके करियर की सबसे निजी और भावनात्मक परियोजना है और वे इस बात से बेहद गर्वित हैं कि यह फिल्म भारत की ऑस्कर एंट्री बनी है।
‘Homebound’ को पहले ही कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सराहा जा चुका है। इसे Cannes 2025 में ‘Un Certain Regard’ कैटेगरी में स्क्रीन किया गया था, जहां दर्शकों ने इसे 9 मिनट तक स्टैंडिंग ओवेशन दिया। इसके अलावा, यह फिल्म Toronto International Film Festival में भी दिखाई गई, जहाँ इसे International People’s Choice Award के लिए दूसरे स्थान पर रखा गया। इन मंचों पर मिली सराहना ने भारत के फिल्मजगत की रचनात्मकता और सामाजिक गहराई को नई पहचान दिलाई है।
लेकिन भारत में सेंसरशिप का यह मामला यह सवाल खड़ा करता है कि क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गई किसी फिल्म को घरेलू स्तर पर ‘कंट्रोल’ करना उचित है? क्या रचनात्मक स्वतंत्रता और संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ऐसे मामलों में सीमित नहीं किया जा रहा?
CBFC की इस कार्रवाई पर कई फिल्म समीक्षकों और दर्शकों ने आपत्ति जताई है। उनका मानना है कि फिल्म को बड़े दर्शक वर्ग तक पहुंचाने से पहले उसमें बदलाव करना सिर्फ रचनात्मक हस्तक्षेप ही नहीं, बल्कि समाज की चिंताओं और सच्चाइयों को छुपाने का प्रयास भी हो सकता है।
सेंसर बोर्ड का पक्ष यह है कि जिन हिस्सों पर आपत्ति जताई गई है, वे भारत की धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक संवेदनाओं को ठेस पहुँचा सकते हैं। ऐसे में यह आवश्यक था कि फिल्म की विषयवस्तु को संतुलित किया जाए ताकि वह किसी भी वर्ग विशेष के लिए आपत्तिजनक न हो।
फिल्म की टीम ने इन सभी कट्स को स्वीकार कर लिया है ताकि रिलीज में देरी न हो। अब यह फिल्म 26 सितंबर 2025 को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही है। यह वही दिन है जब भारतीय सिनेमा की एक सशक्त फिल्म देश में लोगों तक पहुँचेगी, भले ही उसमें कुछ हिस्सों की कमी महसूस की जाए।
‘Homebound’ का ऑस्कर तक पहुँचना भारतीय सिनेमा की एक उपलब्धि है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि रचनात्मकता और सेंसरशिप के बीच चल रही खींचतान अभी समाप्त नहीं हुई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत के दर्शक इस फिल्म को किस तरह से अपनाते हैं और क्या यह फिल्म ऑस्कर की दौड़ में अपनी छाप छोड़ पाती है।
एक ओर यह फिल्म आधुनिक भारत के सामाजिक संघर्षों की अंतरराष्ट्रीय झलक है, वहीं दूसरी ओर यह भारत के फिल्म तंत्र और उसके आंतरिक संघर्षों का भी प्रतीक बनती जा रही है।
‘होमबाउंड’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उस बहस का हिस्सा है जो कला, अभिव्यक्ति और संस्थागत नियंत्रण के बीच चलती आ रही है। एक ओर भारत अपने सिनेमा को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिला रहा है, तो दूसरी ओर उसकी आंतरिक नीतियाँ उन आवाज़ों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही हैं जो समाज का आइना दिखाती हैं।