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    नाटो प्रमुख का बड़ा दावा: पीएम मोदी ने पुतिन से की यूक्रेन योजना की व्याख्या माँग, ट्रम्प ने भारत पर लगाया 50% शुल्क

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    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हाल ही में हुई उच्चस्तरीय वार्ता को लेकर नाटो के प्रमुख ने एक अहम बयान दिया है। नाटो प्रमुख के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन से यूक्रेन युद्ध को लेकर उनके अगले कदमों और रणनीति की स्पष्ट व्याख्या माँगी है। यह दावा ऐसे समय आया है जब वैश्विक मंच पर यूक्रेन संघर्ष को लेकर भारत की स्थिति को बारीकी से देखा जा रहा है।

    इस बातचीत का राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव सिर्फ भारत और रूस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अमेरिका ने इस घटनाक्रम के बाद भारत पर आर्थिक दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से आयातित वस्तुओं पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ यानी शुल्क बढ़ाने का एलान किया है। इस कदम को लेकर भारत सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे अनुचित, असंगत और अस्वीकार्य बताया है।

    बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन के बीच यह बातचीत अगस्त 2025 की शुरुआत में हुई थी, जिसमें भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक शांति के लिए जिम्मेदार भूमिका दोहराई। मोदी ने इस वार्ता में यह भी स्पष्ट किया कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का हल बातचीत और कूटनीति के ज़रिये चाहता है।

    पुतिन ने इस पर सहमति जताई और भारत की तटस्थ लेकिन शांति-पक्षधर भूमिका की सराहना की। भारत और रूस के बीच कई दशक पुराने सामरिक और रणनीतिक संबंध हैं, और इस संदर्भ में यह वार्ता बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

    इसी बीच अमेरिका ने भारत की रूस से तेल खरीद को लेकर चिंता जताई है। अमेरिका का तर्क है कि भारत की यह नीति रूस को अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक समर्थन देती है, जिससे युद्ध को लम्बा खींचा जा सकता है। इसी के मद्देनजर डोनाल्ड ट्रम्प ने 50 प्रतिशत शुल्क की घोषणा की, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव और गहरा हो गया है।

    ट्रम्प की इस नीति को व्हाइट हाउस के सलाहकारों ने “Modi’s War” जैसा करार देकर और भड़काऊ बना दिया। उन्होंने कहा कि भारत यदि रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करता, तो अमेरिका को और सख्त कदम उठाने पड़ सकते हैं। उनका यह भी कहना था कि भारत को रूस से दूरी बनानी चाहिए और अमेरिका के नेतृत्व में बनी वैश्विक रणनीति का समर्थन करना चाहिए।

    यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने भी ट्रम्प के इस निर्णय का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देशों पर शुल्क लगाना एक “सही विचार” है क्योंकि यह पुतिन पर आर्थिक दबाव बनाने में सहायक होगा। जेलेंस्की के अनुसार, युद्ध को समाप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर एकजुटता जरूरी है और भारत जैसे प्रभावशाली देश इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

    भारत ने इस पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट की है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि भारत तटस्थ नहीं है, बल्कि उसका रुख पूरी तरह से शांति का है। भारत किसी भी देश के पक्ष या विपक्ष में नहीं, बल्कि युद्ध का हल बातचीत से निकालने के पक्ष में है। मोदी ने यह भी दोहराया कि भारत की विदेश नीति आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है, न कि दबाव या धमकी पर।

    इस पूरे घटनाक्रम में नाटो प्रमुख का बयान और भी अधिक अहम हो गया है। उनका कहना है कि भारत अब सिर्फ एक दर्शक की भूमिका में नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है। उन्होंने संकेत दिया कि यदि भारत रूस से व्यापार जारी रखता है, तो अमेरिका और उसके सहयोगी देश उस पर और आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते हैं।

    इन सबके बीच रूस ने भारत की स्थिति की सराहना की है। राष्ट्रपति पुतिन ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि वह भारत और चीन जैसे देशों की शांति स्थापना की कोशिशों की “उच्च प्रशंसा” करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत पर आरोप लगाना या उसे युद्ध का समर्थनकर्ता कहना सरासर गलत है।

    इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि भारत अब वैश्विक राजनीति में एक अहम कड़ी बन चुका है। चाहे वह यूक्रेन युद्ध हो, वैश्विक ऊर्जा संकट या फिर व्यापारिक रणनीति — भारत की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

    ट्रम्प द्वारा लगाए गए 50% शुल्क का असर भारतीय निर्यात पर स्पष्ट दिखाई देने लगा है। टेक्सटाइल, फार्मास्युटिकल्स और कृषि आधारित उत्पादों के ऑर्डर पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है। हालांकि मोदी सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि भारत “बहुत भारी कीमत चुकाने को तैयार है”, लेकिन राष्ट्रीय हितों से पीछे नहीं हटेगा।

    अब सबकी निगाहें आने वाले महीनों पर हैं — क्या भारत अमेरिका से समझौता करेगा, रूस के साथ अपनी रणनीति फिर से परिभाषित करेगा या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ के रूप में एक नई भूमिका निभाएगा?

    एक बात तय है — भारत के लिए यह सिर्फ एक कूटनीतिक परीक्षा नहीं, बल्कि वैश्विक नेतृत्व की ओर एक बड़ा कदम भी हो सकता है।

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