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भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिकाओं और उनकी शारीरिक क्षमता को लेकर नया अध्ययन चल रहा है। सेना के अधिकारियों ने खुलासा किया है कि महिला और पुरुष के फिजिकल टेस्ट पैरामीटर को मानकीकृत करने के लिए गहन अध्ययन किया जा रहा है। यह कदम केवल टेस्ट के स्तर को बराबर करने तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं को भविष्य में अधिक सक्रिय और महत्वपूर्ण भूमिकाओं में शामिल करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
अध्ययन का उद्देश्य
भारतीय सेना के इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य लिंग आधारित अंतर को कम करना और सैन्य भूमिका में महिला सैनिकों की संभावनाओं को बढ़ाना है। वर्तमान में पुरुष और महिला सैनिकों के लिए फिजिकल टेस्ट में विभिन्न मानक लागू होते हैं। पुरुषों के लिए कॉम्बेट और शारीरिक क्षमता के पैमानों को अधिक कठोर रखा जाता है। महिलाओं के लिए शारीरिक मानक अलग और कम सख्त होते हैं, जो मुकाबला और युद्धभूमि में उनकी भूमिकाओं को सीमित कर देता है।
इस अध्ययन के माध्यम से सेना यह जानने की कोशिश कर रही है कि जेंडर न्यूट्रल मानक लागू करने पर महिला सैनिक कितनी भूमिकाओं में सक्षम हो सकती हैं।
वैश्विक उदाहरण
दुनिया के कई देशों में कॉम्बेट रोल में महिलाओं के लिए जेंडर न्यूट्रल मानक अपनाए जा चुके हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में सेना ने महिला और पुरुष दोनों के लिए समान फिजिकल टेस्ट मानक लागू किए हैं। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी जेंडर न्यूट्रल स्टैंडर्ड के तहत महिला सैनिक कॉम्बेट और सपोर्ट रोल में काम कर सकती हैं।
भारतीय सेना इस वैश्विक दृष्टिकोण से प्रेरित होकर देख रही है कि कैसे मानक लिंग आधारित अंतर को समाप्त कर सकते हैं, और महिलाओं को बराबरी का मौका दे सकते हैं।
भारतीय संदर्भ
भारत में फिलहाल महिलाएं कॉम्बेट रोल में शामिल नहीं हैं, लेकिन तकनीकी और सपोर्ट रोल में उनकी भागीदारी लगातार बढ़ रही है।
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महिला सैनिक आज ड्रोन ऑपरेशन, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, लॉजिस्टिक्स और प्रशासनिक भूमिका निभा रही हैं।
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सेना का मानना है कि अगर भविष्य में महिलाओं को कॉम्बेट में शामिल किया गया, तो इसके लिए सख्त और वैज्ञानिक फिजिकल टेस्ट पैरामीटर जरूरी होंगे।
इस अध्ययन के अंतर्गत सेना यह देख रही है कि महिला सैनिकों की क्षमता और प्रशिक्षण पैटर्न पुरुष सैनिकों के समान या अलग किस तरह से तय किया जा सकता है।
संभावित बदलाव
सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह अध्ययन सफल होता है, तो सेना में कुछ प्रमुख बदलाव हो सकते हैं:
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जेंडर न्यूट्रल फिजिकल टेस्ट मानक: पुरुष और महिला सैनिकों के लिए समान टेस्ट पैमानों की स्थापना।
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कॉम्बेट रोल में महिलाओं की भागीदारी: भविष्य में महिला सैनिकों को वास्तविक युद्धभूमि और फ्रंटलाइन पर भेजने की संभावना।
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प्रशिक्षण और फिटनेस प्रोग्राम में सुधार: पुरुष और महिला सैनिकों की क्षमता के आधार पर वैज्ञानिक प्रशिक्षण।
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सेना की कार्यक्षमता में वृद्धि: अधिक लचीले और समावेशी मानक से सामरिक तैयारियों में सुधार।
विशेषज्ञों की राय
रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि यह पहल महिलाओं की सैन्य क्षमता को नए स्तर पर ले जाएगी।
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लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एस. के. सिंह ने कहा:
“महिला सैनिकों की भूमिका केवल सहायक या सपोर्ट तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। वैज्ञानिक और समान फिजिकल टेस्ट मानक लागू करने से उनके प्रदर्शन और सामरिक योगदान में वृद्धि होगी।” -
मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों का मानना है कि जेंडर न्यूट्रल स्टैंडर्ड से महिला सैनिकों का आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता भी बढ़ेगी।
भविष्य की दिशा
सेना की यह पहल भारतीय सुरक्षा और सामरिक नीति में महिला सशक्तिकरण की नई दिशा दे सकती है। महिला सैनिकों को नई भूमिकाओं में शामिल करने से सेना की क्षमता बढ़ेगी। यह कदम अन्य देशों के जेंडर न्यूट्रल मॉडल को अपनाने की दिशा में पहला बड़ा कदम माना जा रहा है। भविष्य में भारत की महिला सैनिकों की संख्या और उनकी फ्रंटलाइन भूमिकाएं बढ़ सकती हैं।
भारतीय सेना द्वारा महिला और पुरुष सैनिकों के फिजिकल टेस्ट पैरामीटर के मानकीकरण का अध्ययन एक ऐतिहासिक और महत्वाकांक्षी कदम है। इसका उद्देश्य केवल परीक्षण मानक बदलना नहीं, बल्कि सेना में महिलाओं की भूमिका, क्षमता और समानता को बढ़ावा देना है।
यदि यह स्टडी सफल होती है, तो आने वाले वर्षों में भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिकाएं न केवल तकनीकी और सपोर्ट बल्कि कॉम्बेट और सामरिक मिशनों तक विस्तारित हो सकती हैं।








