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गुजरात के राजकोट जिले के छोटे से गांव खोदापिपरिया के महेश पिपरिया ने पारंपरिक खेती को छोड़कर जैविक फूलों की खेती शुरू की और “गोकुल वाड़ी ऑर्गेनिक फार्म” के माध्यम से 22 एकड़ में देसी गुलाब, गेंदा, व्हीटग्रास और चुकंदर उगाकर सूखे फूलों की पंखुड़ियों का निर्यात शुरू किया। उनकी इस पहल से न केवल उन्होंने विदेशी बाजारों में भारतीय खुशबू पहुंचाई, बल्कि सालाना ₹50 लाख से अधिक की आय भी अर्जित की।
परिवार की पारंपरिक खेती से जैविक फूलों की खेती तक
महेश पिपरिया का परिवार पारंपरिक खेती करता था, जिसमें मूंगफली, कपास और गेहूं जैसी फसलें शामिल थीं। हालांकि, इन पारंपरिक फसलों से होने वाली आय सीमित थी और बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही थी। लगभग 14 वर्ष पहले, महेश ने खेती के इस पारंपरिक ढांचे को बदलने का निर्णय लिया। उन्होंने जैविक खेती की ओर रुख किया और छोटे पैमाने पर प्रयोग शुरू किया। सकारात्मक परिणामों को देखकर, उन्होंने इस दिशा में और प्रयास किए।
गोकुल वाड़ी ऑर्गेनिक फार्म की स्थापना
महेश ने “गोकुल वाड़ी ऑर्गेनिक फार्म” की स्थापना की, जो अब 22 एकड़ में फैला हुआ है। यहां वे देसी गुलाब, गेंदा, व्हीटग्रास और चुकंदर जैसी फसलें उगाते हैं। विशेष रूप से, देसी गुलाब की खेती महेश के फार्म का मुख्य आकर्षण है। उन्होंने इन फूलों की पंखुड़ियों को सूखा कर, उन्हें हर्बल चाय और वेलनेस उत्पादों के रूप में तैयार किया और अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में निर्यात किया।
गेंदा की खेती और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सफलता
महेश के फार्म में गेंदा की खेती भी प्रमुख है। वे हर साल लगभग एक टन गेंदा की पंखुड़ियां उगाते हैं, जिन्हें लंदन और अन्य यूरोपीय देशों में निर्यात किया जाता है। इस निर्यात से उन्हें महत्वपूर्ण आय होती है और भारतीय फूलों की गुणवत्ता का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार होता है।
व्हीटग्रास और चुकंदर की जैविक खेती
महेश ने व्हीटग्रास और चुकंदर जैसी स्वास्थ्यवर्धक फसलों की भी जैविक खेती शुरू की है। व्हीटग्रास में विटामिन A, C, E, आयरन, कैल्शियम और क्लोरोफिल की उच्च मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। चुकंदर भी पोषण से भरपूर होता है। इन फसलों की जैविक खेती से महेश को स्थिर और बढ़ती हुई मांग मिल रही है, न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी।
सिंचाई और आधुनिक तकनीकों का उपयोग
गुजरात में जल की कमी को देखते हुए, महेश ने फार्म में ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग किया है, जिससे जल का संरक्षण होता है और फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है। इसके अलावा, उन्होंने आधुनिक पौधारोपण, कटाई और पैकेजिंग उपकरणों का उपयोग किया है, जो निर्यात मानकों के अनुरूप उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं।
ब्रांडिंग और विपणन रणनीति
महेश का मानना है कि अच्छे उत्पाद के साथ-साथ प्रभावी ब्रांडिंग और विपणन भी आवश्यक है। उन्होंने अपने उत्पादों की गुणवत्ता, पैकेजिंग और समय पर डिलीवरी पर विशेष ध्यान दिया है, जिससे उनके ग्राहकों के बीच विश्वास बना है। इसके परिणामस्वरूप, उनके उत्पादों की मांग बढ़ी है और वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर पा रहे हैं।
आय और रोजगार सृजन
महेश की जैविक फूलों की खेती से वार्षिक आय ₹50 लाख से अधिक हो रही है। इसके अलावा, उनके फार्म में स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार मिल रहा है, जिसमें पौधारोपण, सूखाई, पैकेजिंग और लॉजिस्टिक्स जैसे कार्य शामिल हैं। इस प्रकार, महेश ने न केवल अपनी आय बढ़ाई है, बल्कि अपने गांव में रोजगार के अवसर भी सृजित किए हैं।
भविष्य की दिशा और संदेश
महेश का अगला लक्ष्य अपनी आय को दोगुना करना और वार्षिक ₹1 करोड़ की आय अर्जित करना है। इसके लिए, वे नए फसलों की खेती और बुनियादी ढांचे के उन्नयन की योजना बना रहे हैं। उनका संदेश अन्य किसानों के लिए स्पष्ट है: “परिवर्तन से डरें नहीं। सीखें, प्रयोग करें और स्थायी प्रथाओं की ओर बढ़ें। जैविक खेती न केवल स्वास्थ्य और मृदा के लिए अच्छी है, बल्कि यदि समझदारी से की जाए तो यह एक लाभकारी व्यवसाय भी है।”
महेश पिपरिया की कहानी यह दर्शाती है कि पारंपरिक खेती से जैविक फूलों की खेती की ओर परिवर्तन करके, एक किसान न केवल अपनी आय बढ़ा सकता है, बल्कि भारतीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहचान भी दिला सकता है। उनकी यह पहल अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।








