




केंद्रीय आयुष मंत्री, प्रतापराव गणपत राव जाधव ने हाल ही में आयुष और आलोपैथी चिकित्सा पद्धतियों के बीच सहयोग और समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इन दोनों चिकित्सा पद्धतियों को प्रतिस्पर्धी नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि वे एक-दूसरे के पूरक हैं। जाधव ने आयुष और आलोपैथी दोनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के महत्व पर बात करते हुए कहा कि सरकार दोनों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए काम कर रही है।
आयुष मंत्री ने यह बयान उस समय दिया जब उन्होंने The Hindu से बातचीत की, जिसमें उन्होंने आयुष के वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रभाव और भारत द्वारा किए जा रहे प्रयासों को साझा किया।
मंत्री ने बताया कि आयुष और आलोपैथी दोनों पद्धतियाँ भारत के स्वास्थ्य प्रणाली में अहम भूमिका निभाती हैं। आयुष पद्धतियाँ, जैसे आयुर्वेद, होम्योपैथी, और यूनानी, प्राकृतिक उपचारों पर आधारित हैं, जबकि आलोपैथी सटीक चिकित्सा और अनुसंधान के परिणामस्वरूप विकसित हुई है। उनका मानना है कि इन दोनों पद्धतियों को एक साथ लाने से चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार संभव है।
“आलोपैथी और आयुष दोनों की अपनी विशेषताएँ हैं, और हम दोनों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए हमें दोनों पद्धतियों के बीच बेहतर सहयोग और समन्वय की आवश्यकता है,” जाधव ने कहा।
प्रतापराव जाधव ने इस बात पर जोर दिया कि आयुष पद्धतियों की वैश्विक पहचान को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने प्रमाण आधारित शोध और उच्च गुणवत्ता वाले क्लिनिकल परीक्षणों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (CCRAS) और अन्य संस्थानों द्वारा किए जा रहे शोध के महत्व को बताया।
“आयुष का वैश्विक स्थान मजबूत करने के लिए हम प्रमाण आधारित शोध, अनुसंधान और क्लिनिकल परीक्षणों को बढ़ावा दे रहे हैं। हम चाहते हैं कि आयुष पद्धतियाँ केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में मान्यता प्राप्त करें,” जाधव ने कहा।
भारत सरकार ने आयुष को प्रमुख रूप से प्रचारित करने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं, जिनमें आयुष चिकित्सा के लाभों को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना शामिल है। जाधव ने कहा कि इन प्रयासों से आयुष की पद्धतियों को न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में अधिक पहचान मिलेगी।
आयुष मंत्री ने यह भी कहा कि आयुष पद्धतियाँ न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति भी प्रदान करती हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि आयुष और आलोपैथी का समन्वित उपयोग कई बीमारियों में अधिक प्रभावी हो सकता है।
उन्होंने बताया कि आयुष पद्धतियाँ विशेष रूप से उन बीमारियों में मदद कर सकती हैं जिनमें मानसिक तनाव, चिंता और अन्य विकार शामिल हैं। जबकि आलोपैथी पद्धतियाँ सटीक उपचार और आपातकालीन स्थिति में मदद करती हैं। दोनों पद्धतियाँ मिलकर अधिक प्रभावी इलाज प्रदान कर सकती हैं।
आयुष मंत्रालय का मुख्य उद्देश्य आयुष चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देना और उनके अनुसंधान को बढ़ावा देना है। जाधव ने बताया कि मंत्रालय आयुष पद्धतियों को दुनिया भर में पहचान दिलाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है।
उन्होंने कहा, “हमने आयुष पद्धतियों की साख को बढ़ाने के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शुरू किए हैं, जिनमें WHO और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी शामिल है। हमारा लक्ष्य यह है कि हम आयुष को एक वैश्विक धारा में शामिल करें और इसे सभी के लिए उपयोगी बनाएं।”
मंत्री ने यह भी बताया कि आयुष पद्धतियों के डॉक्टरों को आलोपैथी के सिद्धांतों से अवगत कराने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इससे आयुष चिकित्सक और आलोपैथी चिकित्सक एक-दूसरे के दृष्टिकोण को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे और मरीजों के लिए एक बेहतर उपचार प्रणाली तैयार कर सकेंगे।
“हमारे डॉक्टरों को आलोपैथी के बुनियादी सिद्धांतों से अवगत कराया जा रहा है ताकि दोनों पद्धतियों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके,” जाधव ने कहा।
केंद्रीय आयुष मंत्री प्रतापराव गणपत राव जाधव का यह बयान यह स्पष्ट करता है कि आयुष और आलोपैथी दोनों पद्धतियाँ अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं, और इन्हें प्रतिस्पर्धी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसके बजाय, इन दोनों पद्धतियों के बीच सहयोग और समन्वय बढ़ाकर भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को और भी मजबूत किया जा सकता है।
आयुष मंत्रालय के इन प्रयासों से न केवल देश में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी आयुष पद्धतियों की साख को बढ़ावा मिलेगा और इससे दुनिया भर के लोग प्राकृतिक उपचार के लाभों का लाभ उठा सकेंगे।