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    रेपो रेट में नो-चेंज, लेकिन RBI ने बढ़ाया GDP ग्रोथ का अनुमान, महंगाई से भी मिलेगी राहत

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    भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के नतीजे घोषित कर दिए हैं, जिनमें सबसे अहम बात यह है कि रेपो रेट में इस बार भी कोई बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, आरबीआई ने भारत की आर्थिक विकास दर (GDP Growth Rate) का अनुमान बढ़ा दिया है और महंगाई (Inflation) में कुछ राहत मिलने की संभावना भी जताई है।

    आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने 29 सितंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठक के परिणामों का ऐलान करते हुए कहा कि मौजूदा रेपो रेट 6.50% पर बनी रहेगी। यह दर पिछले कई महीनों से स्थिर है और इस समय कोई बदलाव नहीं किया गया। इस निर्णय के साथ, आरबीआई ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत की आर्थिक वृद्धि के अनुमान को सुधारते हुए 2023-24 में इसे 6.5% तक रखने की संभावना जताई है। इससे पहले यह अनुमान 6.3% था।

    रेपो रेट वह दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक, बैंकों को अल्पकालिक कर्ज प्रदान करता है। जब रेपो रेट बढ़ती है, तो बैंकों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है, और वह ग्राहकों से अधिक ब्याज लेते हैं। वहीं, अगर रेपो रेट घटती है, तो बैंकों के लिए कर्ज सस्ता हो जाता है और इसका लाभ ग्राहकों को मिलता है। हालांकि, इस बार भी रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया, जिससे लोन और ईएमआई पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

    आरबीआई के इस फैसले से बैंकों और उधारकर्ताओं को स्थिरता मिली है, क्योंकि कर्ज की दरें पहले की तरह बनी रहेंगी। इसके साथ ही, उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी, क्योंकि महंगाई को काबू में रखने की प्रक्रिया अब भी जारी रहेगी।

    हालांकि इस बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया, लेकिन आरबीआई ने महंगाई की दर में मुलायम सुधार की उम्मीद जताई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई पिछले कुछ महीनों से एक महत्वपूर्ण चुनौती रही है, लेकिन आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा का कहना था कि मुद्रास्फीति अब कम होने की दिशा में है और इसे अगले कुछ महीनों में नियंत्रित किया जा सकता है।

    आरबीआई का अनुमान है कि 2023-24 के अंत तक महंगाई 4.7% तक रह सकती है। इसका मतलब है कि आने वाले समय में उपभोक्ताओं को सामानों और सेवाओं की कीमतों में स्थिरता देखने को मिल सकती है।

    भारत की आर्थिक वृद्धि (GDP Growth) के संदर्भ में, आरबीआई ने सकारात्मक संकेत दिए हैं। आरबीआई के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था इस साल 6.5% की दर से बढ़ सकती है, जो पहले के अनुमान 6.3% से अधिक है। यह आंकड़ा भारत के लिए एक अच्छा संकेत है, क्योंकि वैश्विक मंदी और कोविड-19 के प्रभावों के बाद अब देश आर्थिक सुधार की ओर बढ़ रहा है।

    आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) का कहना है कि उपभोक्ता खर्च और निवेश में बढ़ोतरी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में विकास हो रहा है। इसके साथ ही, सरकारी खर्च और बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की वजह से भी GDP ग्रोथ की दर बढ़ सकती है।

    आरबीआई ने अपनी मौद्रिक नीति के तहत कुछ अन्य महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए हैं, जिनका भारतीय बैंकिंग सिस्टम और अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।

    1. बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता: आरबीआई ने भारतीय बैंकों को और अधिक मजबूती देने के लिए बैंकिंग पर्यवेक्षण और संपत्ति-प्रबंधन पर ध्यान देने की बात कही है। इससे बैंकों को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPAs) के खतरे से बचाया जा सकेगा।

    2. आर्थिक सुधार के लिए योजनाएं: आरबीआई ने इस दौरान यह भी कहा कि वह सरकार के साथ मिलकर अर्थव्यवस्था को और अधिक सुधारने के लिए विभिन्न उपायों पर विचार करेगा। इनमें मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए आवश्यक कदम और लघु एवं मझोले उद्योगों (MSMEs) को मदद देने के उपाय भी शामिल हैं।

    3. क्रिप्टोकरेंसी पर कड़ी निगरानी: आरबीआई ने इस बार क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भी अपना रुख साफ किया है। आरबीआई ने चेतावनी दी कि क्रिप्टोकरेंसी के निवेशकों को उच्च जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है, और इसे नियंत्रित किया जाना चाहिए।

    हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था अब विकास की दिशा में है, लेकिन वैश्विक स्तर पर कुछ समस्याएं बनी हुई हैं। इन समस्याओं में तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला संकट, और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मंदी शामिल हैं। आरबीआई ने इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार और अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर काम करने की योजना बनाई है।

    इसके बावजूद, भारतीय रिजर्व बैंक का यह कहना है कि देश की आर्थिक वृद्धि स्थिर रहेगी और अगले कुछ महीनों में महंगाई पर काबू पाया जा सकता है।

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