




भारत अब वैश्विक पेट्रोकेमिकल उद्योग में अपनी बड़ी पहचान बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की हालिया रिपोर्ट में साफ संकेत दिया गया है कि आने वाले वर्षों में भारत इस क्षेत्र का प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2030 तक वैश्विक पेट्रोकेमिकल क्षमता वृद्धि में लगभग एक तिहाई योगदान देगा।
दरअसल, भारत की पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री में भारी निवेश की योजना बनाई जा रही है। आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस क्षेत्र में लगभग 37 अरब डॉलर का निवेश किया जाएगा। यह निवेश केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाने तक सीमित नहीं होगा, बल्कि इससे रोजगार, निर्यात और घरेलू आपूर्ति श्रृंखला को भी मजबूती मिलेगी।
एसएंडपी का मानना है कि भारत के इस कदम से एशिया के पेट्रोकेमिकल बाजार पर गहरा असर पड़ेगा। चीन पहले ही इस उद्योग में बड़ा खिलाड़ी रहा है, लेकिन अब भारत भी तेजी से प्रतिस्पर्धा के मैदान में उतर रहा है। 2030 तक भारत का योगदान न केवल घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उसकी स्थिति को मजबूत करेगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एशिया में पेट्रोकेमिकल की अधिक सप्लाई से निर्यातकों को चुनौती मिलेगी। खासकर वे देश, जो अभी तक चीन और मध्य-पूर्व पर निर्भर रहे हैं, उन्हें भारत की इस क्षमता वृद्धि से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। हालांकि, भारत की बढ़ती घरेलू मांग स्थानीय उत्पादकों के लिए एक बड़ा सहारा बनेगी। देश की आबादी और औद्योगिक जरूरतें इतनी अधिक हैं कि बड़े पैमाने पर उत्पादन भी बड़े हिस्से तक घरेलू बाजार में ही खप जाएगा।
पेट्रोकेमिकल उद्योग का सीधा संबंध प्लास्टिक, पैकेजिंग, फार्मा, ऑटोमोबाइल, कपड़ा और उपभोक्ता वस्तुओं जैसी उद्योगों से है। इन क्षेत्रों में भारत का बाजार लगातार तेजी से बढ़ रहा है। यही कारण है कि घरेलू मांग भारत के पेट्रोकेमिकल क्षेत्र को स्थिरता प्रदान करेगी और यह वैश्विक उतार-चढ़ाव के बावजूद मजबूती से खड़ा रहेगा।
आर्थिक जानकारों का कहना है कि यह निवेश भारत को ऊर्जा और रसायन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। अब तक भारत कई पेट्रोकेमिकल उत्पादों के लिए आयात पर निर्भर रहा है। लेकिन नई क्षमता के जुड़ने के बाद यह स्थिति बदल सकती है। इससे न केवल आयात बिल घटेगा बल्कि भारत निर्यातक देश के रूप में भी उभर सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इतनी बड़ी क्षमता वृद्धि एशिया के क्षेत्रीय निर्यातकों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगी। चीन और मध्य-पूर्व के देशों ने अब तक इस बाजार पर अपनी पकड़ बनाई हुई थी। लेकिन भारत का तेजी से उभरना बाजार की मौजूदा स्थिति को बदल देगा। इससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा और तीव्र हो जाएगी।
भारत सरकार पहले से ही पेट्रोकेमिकल सेक्टर को प्राथमिकता दे रही है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाएं इस दिशा में सहायक हैं। इसके अलावा पर्यावरण के लिहाज से टिकाऊ उत्पादन और ग्रीन टेक्नोलॉजी को भी महत्व दिया जा रहा है। भविष्य में भारत इस क्षेत्र में नई तकनीक के साथ वैश्विक निवेशकों को आकर्षित कर सकता है।
बाजार के जानकारों के अनुसार, भारत की जनसंख्या और खपत क्षमता इतनी बड़ी है कि पेट्रोकेमिकल उद्योग में बढ़ोतरी के बाद भी इसकी मांग बनी रहेगी। यही कारण है कि भारत की यह क्षमता केवल एक्सपोर्ट पर निर्भर नहीं होगी, बल्कि घरेलू उपभोग इसे मजबूती प्रदान करेगा।
कुल मिलाकर, एसएंडपी ग्लोबल की यह रिपोर्ट भारत की पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री के लिए भविष्य का रोडमैप दिखाती है। जहां पहले चीन इस उद्योग का बड़ा खिलाड़ी माना जाता था, अब भारत भी इस क्षेत्र में अपनी जगह मजबूत कर रहा है। 2030 तक भारत का योगदान वैश्विक स्तर पर संतुलन बदल सकता है।
भारत का यह कदम न केवल उद्योग जगत के लिए बल्कि समूची अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा बदलाव लेकर आएगा। रोजगार से लेकर निर्यात तक, हर स्तर पर भारत की स्थिति और मजबूत होगी। वैश्विक मंच पर भारत का पेट्रोकेमिकल उद्योग एक नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है।