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भारत की अर्थव्यवस्था लगातार नई ऊँचाइयों को छू रही है और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच पर देश की स्थिति और मजबूत होती जा रही है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आने वाले कुछ वर्षों में भारत जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन जब बात समुद्री ताकत की आती है, तो तस्वीर थोड़ी अलग नज़र आती है। आर्थिक रूप से महाबली बनने की ओर अग्रसर भारत अभी भी दुनिया के टॉप 10 नौसैनिक ताकतों में शामिल नहीं है। इस बीच चीन का दबदबा समुद्री क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है और यही कारण है कि भारत ने अब इस दिशा में अपनी रणनीति बदलने का फैसला किया है।
समंदर की ‘सुरसा’: सबसे बड़ी चुनौती
समुद्र को भारत की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए ‘सुरसा’ की तरह माना जा रहा है। यह इसलिए क्योंकि समुद्र में ताकतवर नौसेना के बिना भारत अपनी ऊर्जा आपूर्ति, व्यापार मार्ग और रणनीतिक हितों की रक्षा नहीं कर सकता। समुद्री शक्ति पर खर्चा भी कम नहीं है। जानकार बताते हैं कि समुद्री बेड़े और इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाला खर्च देश के डिफेंस बजट के बराबर बैठ सकता है। यही कारण है कि भारत को अब इस दिशा में बड़े निवेश और लंबी योजना की आवश्यकता है।
चीन का बढ़ता दबदबा
चीन ने पिछले दो दशकों में अपनी नौसैनिक शक्ति को विस्फोटक गति से बढ़ाया है। आज चीन दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का मालिक है जिसमें 350 से ज्यादा युद्धपोत, एयरक्राफ्ट कैरियर और आधुनिक पनडुब्बियां शामिल हैं। इसके मुकाबले भारत की नौसेना अपेक्षाकृत छोटी है और तकनीकी रूप से भी चीन से कई कदम पीछे है। चीन ने न केवल अपने समुद्री बेड़े को मजबूत किया है बल्कि अफ्रीका, हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक अड्डे और ठिकाने भी विकसित किए हैं। इससे उसका प्रभाव क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी तेजी से बढ़ा है।
भारत की नई दृष्टि और रणनीति
भारत ने अब इस कमी को समझते हुए अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव किया है। सरकार और रक्षा मंत्रालय ने नौसैनिक ताकत को राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम स्तंभ मानते हुए भविष्य के लिए बड़े लक्ष्य तय किए हैं। इनमें एयरक्राफ्ट कैरियर की संख्या बढ़ाना, आधुनिक पनडुब्बियों का निर्माण, लंबी दूरी के मिसाइल सिस्टम की तैनाती और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित निगरानी प्रणाली शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई मौकों पर कहा है कि भारत के लिए समुद्री सुरक्षा केवल रक्षा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारी अर्थव्यवस्था और व्यापार से भी सीधा जुड़ा हुआ है। हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) से गुजरने वाले समुद्री मार्गों पर भारत की निर्भरता बहुत अधिक है, और इन्हें सुरक्षित रखना राष्ट्रीय हित में है।
‘ब्लू इकोनॉमी’ और नौसैनिक महत्व
भारत की समुद्री शक्ति केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं है। विशेषज्ञ इसे ‘ब्लू इकोनॉमी’ का हिस्सा मानते हैं, जिसमें समुद्र से मिलने वाले संसाधन, मत्स्य पालन, ऊर्जा उत्पादन और व्यापार मार्गों का महत्व शामिल है। अगर भारत को वाकई तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है, तो उसे अपने समुद्री हितों को सुरक्षित रखना होगा। इस दृष्टिकोण से नौसैनिक शक्ति का विकास केवल रक्षा का नहीं, बल्कि आर्थिक मजबूती का भी सवाल है।
निवेश और भविष्य की योजनाएं
भारत ने आने वाले वर्षों में नौसैनिक बेड़े पर बड़े पैमाने पर निवेश का खाका तैयार किया है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अगले दशक में भारत को कम से कम दो और एयरक्राफ्ट कैरियर, दर्जनों अत्याधुनिक विध्वंसक जहाज और पनडुब्बियों की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, नौसैनिक ठिकानों के आधुनिकीकरण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूत करना होगा।
भारत अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मिलकर क्वाड (QUAD) समूह के तहत समुद्री सुरक्षा को लेकर सहयोग कर रहा है। यह सहयोग भारत को चीन जैसी महाशक्ति से मुकाबले में मदद कर सकता है।
भारत के लिए अब यह साफ हो चुका है कि आर्थिक महाशक्ति बनने की दौड़ में समुद्री ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जब तक भारत अपनी नौसैनिक शक्ति को मजबूत नहीं करेगा, तब तक चीन जैसी महाशक्ति से सीधा मुकाबला करना कठिन होगा। लेकिन सकारात्मक पहलू यह है कि भारत ने अब इस चुनौती को स्वीकार किया है और नए लक्ष्य तय कर लिए हैं।
समंदर की यह ‘सुरसा’ भारत को लगातार चुनौती दे रही है, लेकिन अगर योजनाओं को सही दिशा में लागू किया जाए तो आने वाले वर्षों में भारत नौसैनिक शक्ति के मामले में भी दुनिया की शीर्ष श्रेणी में शामिल हो सकता है। यही रणनीति आने वाले समय में भारत की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रभाव को और मजबूत करेगी।








