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    जालोर में बंदरों की रहस्यमयी मौत, पोस्टमार्टम से खुल सकता है मामला

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    राजस्थान के जालोर जिले के रानीवाड़ा क्षेत्र के आखराड़ गांव में एक बार फिर वन्यजीवों को लेकर चर्चा गरमाई हुई है। गांव में एक दर्जन से अधिक बंदरों की रहस्यमयी मौत ने स्थानीय लोगों और वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है। ग्रामीणों का आरोप है कि मौत का कारण जानबूझकर की गई कार्रवाई हो सकती है।

    स्थानीय सूत्रों के अनुसार, जोधपुर से एक टीम बुलाई गई थी, जिसने बंदरों को पकड़ने और नियंत्रण में रखने के लिए पिंजरे का उपयोग किया। हालांकि, आरोप है कि पिंजरे में क्षमता से अधिक बंदर ठूंस दिए गए। जानकारी के अनुसार, 10 बंदरों के लिए बनाए गए पिंजरे में 40 से अधिक बंदर रखे गए थे। इसके परिणामस्वरूप दम घुटने से कई बंदरों की मौत हो गई।

    ग्रामीणों के आरोप और चिंता
    कुछ ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि बंदरों को किसी विषाक्त पदार्थ के माध्यम से मारने का प्रयास किया गया। इस घटना के बाद ग्रामीणों में गुस्सा और चिंता दोनों ही व्याप्त हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बंदरों की मौत का कारण केवल अधिक संख्या में पिंजरे में रखना नहीं हो सकता, बल्कि इसमें किसी अन्य कारक की भी भूमिका हो सकती है।

    स्थानीय लोगों के अनुसार, बंदरों की मौत से गांव के पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर पड़ सकता है। बंदरों की अचानक मौत से कृषि क्षेत्र और आसपास के जंगलों में असंतुलन पैदा होने की संभावना है। ग्रामीणों ने वन विभाग से इस मामले में गंभीर जांच और जवाबदेही की मांग की है।

    वन विभाग की प्रतिक्रिया और कार्रवाई
    जालोर वन विभाग ने घटना को गंभीरता से लिया है और अब दफनाए गए बंदरों का पोस्टमार्टम कराने का निर्णय लिया है। पोस्टमार्टम से यह पता लगाया जाएगा कि बंदरों की मौत किस कारण से हुई—क्या यह दम घुटने के कारण हुई या किसी विषाक्त पदार्थ का उपयोग हुआ।

    वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही इस मामले में आगे की कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई तय की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि टीम की लापरवाही या किसी अवैध गतिविधि का पता चलता है तो जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

    वन्यजीव संरक्षण और सामाजिक प्रभाव
    जालोर में बंदरों की मौत न केवल वन्यजीव संरक्षण के दृष्टिकोण से गंभीर मुद्दा है, बल्कि इसके सामाजिक प्रभाव भी देखे जा सकते हैं। ग्रामीणों में वन्यजीवों के प्रति भय और नाराजगी बढ़ गई है। कई लोग सोशल मीडिया और स्थानीय मंचों पर अपनी चिंता और विरोध व्यक्त कर रहे हैं।

    वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बंदरों की अचानक मौत से इलाके में पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो सकता है। बंदर जैसे प्राणी पौधों के बीज फैलाने और जैविक चक्र बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में उनकी अचानक मृत्यु का प्रभाव स्थानीय जंगल और खेती पर भी पड़ सकता है।

    भविष्य की कार्रवाई और निगरानी
    पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद वन विभाग यह तय करेगा कि आगे किन उपायों की जरूरत है। इसके तहत पिंजरे में बंदरों की संख्या सीमित करने, सुरक्षित पकड़ने के उपाय अपनाने और किसी भी अवैध या जानबूझकर की गई कार्रवाई की जांच शामिल हो सकती है।

    स्थानीय लोगों ने इस घटना के बाद वन विभाग से लगातार निगरानी और पैट्रोल बढ़ाने की मांग की है ताकि इस तरह की घटनाएं भविष्य में न हों। ग्रामीणों और वन विभाग के बीच समन्वय से ही मामले को शांति और सुरक्षा के साथ सुलझाया जा सकेगा।

    जालोर के रानीवाड़ा के आखराड़ गांव में बंदरों की रहस्यमयी मौत ने स्थानीय समुदाय और वन्यजीव संरक्षण के लिए अलार्म बजा दिया है। अब दफनाए गए बंदरों का पोस्टमार्टम ही इस रहस्य को सुलझा सकता है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट होगा कि मौत प्राकृतिक कारणों से हुई या किसी मानवजनित कारण से। वन विभाग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई शुरू कर दी है, और ग्रामीणों की मांग है कि दोषियों को सजा मिले और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएँ।

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