




बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सुप्रीमो मायावती एक बार फिर सुर्खियों में हैं। सत्ता से 13 साल दूर रहने के बावजूद मायावती की संपत्तियों और आर्थिक स्थिति को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की ओर से बसपा शासनकाल में लगी मूर्तियों और स्मारकों के खर्च पर हाल ही में की गई टिप्पणी के बाद उनकी संपत्ति पर नई बहस शुरू हो गई है।
मायावती ने गुरुवार को लखनऊ में एक विशाल रैली को संबोधित किया, जो बसपा की हाल के वर्षों में सबसे बड़ी रैलियों में से एक मानी जा रही है। इस रैली ने न सिर्फ राजनीतिक माहौल को गरमा दिया, बल्कि उनकी अचल संपत्तियों और वित्तीय स्थिति को भी सार्वजनिक बहस का केंद्र बना दिया।
मायावती का नाम हमेशा से ही भारतीय राजनीति की रहस्यमयी और प्रभावशाली हस्तियों में शामिल रहा है। सत्ता से बाहर होने के बावजूद उनकी संपत्ति में कोई खास कमी नहीं आई है। जानकारी के अनुसार, दिल्ली के लुटियंस जोन में मायावती के पास करोड़ों रुपये की संपत्ति है। यह क्षेत्र देश के सबसे महंगे और प्रतिष्ठित इलाकों में गिना जाता है, जहां शीर्ष नेता और केंद्रीय मंत्री रहते हैं।
रिपोर्टों के मुताबिक, मायावती के नाम पर गुरुद्वारा रकाबगंज रोड स्थित 12, 14 और 16 नंबर के तीन बंगलों को मिलाकर एक “सुपर बंगला” बनाया गया है। बताया जाता है कि इस बंगले का उपयोग मायावती अपने निवास-सह-कार्यालय के रूप में करती हैं। यही बंगला बसपा की राष्ट्रीय राजनीति का मुख्य केंद्र माना जाता है, जहां से वह दिल्ली की राजनीति और पार्टी की रणनीति पर नजर रखती हैं।
मायावती का राजनीतिक करियर हमेशा से सत्ता और संघर्ष के उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। वर्ष 2007 में उन्होंने पूर्ण बहुमत से यूपी में सरकार बनाई थी, जो दलित राजनीति के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई। इसी कार्यकाल के दौरान कांशीराम स्मारक और डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मारक जैसे कई भव्य प्रोजेक्ट बनाए गए, जिन पर विपक्ष ने हमेशा खर्च और पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं मूर्तियों और स्मारकों के खर्च पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “जनता के पैसे का उपयोग इस तरह के कार्यों में किया जाना एक गंभीर मामला है।” कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद से मायावती की संपत्ति और उनके शासनकाल के आर्थिक निर्णयों को लेकर राजनीतिक हलचल और तेज हो गई है।
वर्ष 2012 से 2018 तक मायावती राज्यसभा सदस्य रहीं। इस दौरान उन्होंने अपनी संपत्ति का विवरण चुनाव आयोग को सौंपा था। उस हलफनामे के अनुसार, उस समय मायावती के पास कुल ₹111 करोड़ 64 लाख 24 हजार 840 रुपये की संपत्ति थी, जबकि उनके ऊपर ₹87 लाख 68 हजार 724 रुपये की देनदारी दर्ज थी। इन आंकड़ों से यह साफ होता है कि उनकी आर्थिक स्थिति काफी मजबूत रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती की संपत्ति में तेजी से हुई वृद्धि 2007 के बाद के वर्षों में देखी गई, जब बसपा ने उत्तर प्रदेश में सत्ता संभाली थी। उनके शासनकाल में पार्टी संगठन को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया गया और समर्थकों से मिले दान और सहयोग से कई बड़े निर्माण कार्य हुए।
लखनऊ और दिल्ली दोनों में मायावती के आलीशान आवास बसपा की गतिविधियों के केंद्र माने जाते हैं। लखनऊ स्थित उनका बंगला माल एवेन्यू इलाके में है, जहां अक्सर बसपा के बड़े आयोजन और प्रेस कॉन्फ्रेंस होती हैं। वहीं, दिल्ली वाला बंगला राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की रणनीति तय करने का केंद्र बना रहता है।
मायावती के समर्थक उनका बचाव करते हुए कहते हैं कि उनकी संपत्ति पूरी तरह पारदर्शी और वैधानिक आय के स्रोतों से जुड़ी है। वहीं, विपक्षी दल उन्हें “ऐश्वर्यशाली नेता” के रूप में पेश कर राजनीतिक हमला करने से पीछे नहीं हटते।
बसपा सुप्रीमो की गुरुवार की रैली इस मायने में भी अहम रही कि उन्होंने आने वाले चुनावों के लिए अपने राजनीतिक इरादों का संकेत दिया। मायावती ने कहा, “हम सत्ता के लिए नहीं, समाज के सम्मान और समानता के लिए लड़ते हैं। बहुजन समाज पार्टी का आंदोलन विचारधारा पर चलता है, व्यक्ति पर नहीं।”
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मायावती एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी पुनर्स्थापना की कोशिश कर रही हैं। उनका आर्थिक सामर्थ्य और मजबूत संगठनात्मक ढांचा अभी भी बसपा को प्रासंगिक बनाए रखे हुए है।
सत्ता से लंबे अंतराल के बावजूद मायावती का नाम आज भी यूपी की राजनीति में एक प्रभावशाली और निर्णायक शक्ति के रूप में देखा जाता है। चाहे दिल्ली का लुटियंस बंगला हो या लखनऊ का आलीशान आवास — मायावती की संपत्तियाँ उनके राजनीतिक प्रभाव और सामाजिक स्थिति का प्रतीक बनी हुई हैं।