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    नरेश मीणा का टिकट कटते ही सचिन पायलट के बयान से मची सियासी हलचल, समर्थकों में खलबली

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    राजस्थान की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है। अंता विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने नरेश मीणा का टिकट काटकर नया दांव खेला है, लेकिन इस फैसले के बाद पार्टी के भीतर हलचल मच गई है। टिकट कटते ही नरेश मीणा ने कांग्रेस नेतृत्व पर सीधा हमला बोला, जबकि इस पूरे घटनाक्रम के बीच सचिन पायलट के बयान ने सियासी सरगर्मी को और बढ़ा दिया है।

    अंता सीट पर कांग्रेस की ओर से अब प्रमोद जैन भाया को उम्मीदवार बनाया गया है। भाया को टिकट मिलते ही पार्टी के भीतर गुटबाजी के सुर तेज हो गए हैं। नरेश मीणा, जो लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय थे और पायलट गुट के करीबी माने जाते हैं, उन्हें टिकट न मिलना उनके समर्थकों के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है। इसी बीच पायलट के एक बयान ने आग में घी डालने का काम किया।

    सचिन पायलट ने टिकट वितरण के बाद मीडिया से बातचीत में कहा, “कांग्रेस में जो भी निर्णय लिए जाते हैं, वे सामूहिक विचार-विमर्श से होते हैं। पार्टी का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष को नहीं, बल्कि संगठन को मजबूत करना है।” हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि, “जो कार्यकर्ता लंबे समय से जनता के बीच काम कर रहे हैं, उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।”

    पायलट का यह बयान भले ही सामान्य लगे, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे नरेश मीणा के समर्थन के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पायलट गुट इस फैसले से नाराज है और अंता में संगठनात्मक स्तर पर असंतोष बढ़ सकता है।

    दूसरी ओर, प्रमोद जैन भाया को टिकट दिए जाने को गहलोत खेमे की जीत माना जा रहा है। भाया, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं, और यह फैसला एक बार फिर पार्टी के भीतर गुटबाजी की झलक दिखा रहा है। नरेश मीणा के समर्थक अब खुले तौर पर पार्टी से नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी “JusticeForNareshMeena” जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।

    अंता विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस के लिए बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि राज्य में यह चुनाव अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की स्थिति का परीक्षण करेगा। ऐसे में टिकट को लेकर असंतोष पार्टी की रणनीति को कमजोर कर सकता है।

    राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह विवाद सिर्फ एक टिकट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के भीतर चल रहे पायलट-गहलोत खेमे के बीच सत्ता संतुलन की लड़ाई का हिस्सा है। पायलट पहले भी खुले तौर पर पार्टी नेतृत्व से नाराजगी जताते रहे हैं, खासकर तब जब उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में पीछे छोड़ दिया गया था। अब नरेश मीणा का मामला एक बार फिर इस पुरानी तनातनी को हवा देता दिख रहा है।

    नरेश मीणा ने टिकट कटने के बाद अपने बयान में कहा, “मैंने हमेशा पार्टी के हित में काम किया, लेकिन नेतृत्व ने मुझे नजरअंदाज किया। जनता सब देख रही है और आने वाले समय में इसका जवाब देगी।” उनके इस बयान से यह साफ संकेत मिलता है कि वह अब खुलकर पार्टी के खिलाफ जा सकते हैं या किसी और राजनीतिक विकल्प पर विचार कर सकते हैं।

    वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने मामले को शांत करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि टिकट वितरण पूरी तरह से रणनीतिक आधार पर किया गया है। डोटासरा ने कहा, “कांग्रेस में सभी कार्यकर्ता महत्वपूर्ण हैं, लेकिन टिकट हर बार हर किसी को नहीं मिल सकता। पार्टी के लिए जो सबसे उपयुक्त होगा, वही निर्णय लिया जाएगा।”

    हालांकि, अंदरखाने यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी आलाकमान इस विवाद से चिंतित है। सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान प्रभारी को स्थिति पर नजर रखने और दोनों खेमों के बीच संवाद बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।

    राजस्थान की राजनीति में पायलट और गहलोत के बीच खींचतान कोई नई बात नहीं है, लेकिन अंता उपचुनाव ने इस पुराने विवाद को फिर से ताजा कर दिया है। पायलट का बयान इस बात का संकेत है कि वह अब भी संगठन में अपने समर्थकों के लिए खड़े हैं, जबकि गहलोत खेमे की ओर से यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि टिकट चयन में व्यक्तिगत पसंद-नापसंद की जगह जीत की संभावना को प्राथमिकता दी गई है।

    अब देखना यह होगा कि अंता उपचुनाव में कांग्रेस इस अंदरूनी कलह को संभाल पाती है या नहीं। अगर पायलट गुट का असंतोष बढ़ता है, तो इसका असर न सिर्फ इस सीट पर, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकता है।

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