




मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में हाल ही में हुई कफ सिरप त्रासदी ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना में 20 से अधिक मासूम बच्चों की मौत ने प्रशासन से लेकर आमजन तक सभी को गहरी चिंता में डाल दिया। इसी त्रासदी के बीच एक पिता की दर्दनाक लेकिन प्रेरणादायक कहानी सामने आई — यासिन की कहानी, जिसने अपने बीमार बेटे के इलाज के लिए अपना ऑटो रिक्शा तक बेच दिया।
छिंदवाड़ा के एक गरीब परिवार से आने वाले यासिन की जिंदगी उस दिन बदल गई, जब उसके छोटे बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। लगातार खांसी और बुखार के बाद डॉक्टरों ने दवा दी, लेकिन किसे पता था कि वही कफ सिरप उसके बेटे के लिए जानलेवा साबित होगा। इलाज के दौरान हालत बिगड़ती गई और आर्थिक तंगी के कारण यासिन ने बेटे के बेहतर इलाज के लिए अपना ऑटो बेचने का फैसला किया।
गरीबी और मजबूरी के बीच पिता का संघर्ष
यासिन के पास आजीविका का एकमात्र साधन उसका ऑटो था। रोज की मेहनत-मजदूरी से वह घर चलाता था। जब बेटे की तबीयत खराब हुई तो उसने पहले स्थानीय डॉक्टरों से इलाज कराया, लेकिन सुधार न होते देख उसे जिला अस्पताल ले जाना पड़ा। वहीं डॉक्टरों ने कहा कि इलाज में लंबा समय और खर्च लगेगा। आर्थिक तंगी से जूझते यासिन ने अपने बेटे को बचाने के लिए वह कदम उठाया, जिसे कोई पिता कभी नहीं उठाना चाहता — उसने अपना ऑटो बेच दिया।
ऑटो बेचने के बाद यासिन के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं बचा। फिर भी, उसने उम्मीद नहीं छोड़ी। वह बेटे की जान बचाने के लिए हर दरवाज़े पर गया, मदद की गुहार लगाई, परंतु हालात इतने कठिन थे कि हर दिन निराशा का बोझ बढ़ता जा रहा था।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की मानवीय पहल
इस बीच जब यह खबर प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार तक पहुंची, तो उन्होंने तुरंत पहल की। उन्होंने न केवल यासिन से संपर्क साधा बल्कि उसके बेटे के इलाज और उसकी आजीविका के पुनर्निर्माण में सहायता का भरोसा दिया। उमंग सिंघार स्वयं यासिन के घर पहुंचे और उसकी स्थिति देखी। उन्होंने यासिन को आर्थिक सहायता के साथ नया ऑटो दिलवाने की घोषणा की, ताकि वह फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
उमंग सिंघार ने कहा, “यह केवल एक व्यक्ति की मदद नहीं है, बल्कि उन सभी गरीब परिवारों की आवाज है जो स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और प्रशासनिक लापरवाही का सामना कर रहे हैं। यासिन जैसे लोगों को समाज की संवेदना और सरकार की जिम्मेदारी दोनों की जरूरत है।”
आंसुओं के बीच लौटी मुस्कान
जब यासिन को पता चला कि नेता प्रतिपक्ष ने उसके लिए मदद का हाथ बढ़ाया है, तो उसकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। उसने कहा, “मैंने सोचा था कि सब खत्म हो गया है, अब न बेटा बचेगा, न घर चल पाएगा। लेकिन आज ऐसा लग रहा है कि खुदा ने किसी को मेरी मदद के लिए भेजा है।”
उसके चेहरे पर जो मुस्कान लौटी, वह केवल आर्थिक राहत की नहीं थी — वह एक पिता की उस उम्मीद की थी जिसने अपने बच्चे की जिंदगी के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया था।
छिंदवाड़ा त्रासदी का मानवीय पक्ष
छिंदवाड़ा कफ सिरप हादसे ने जहां शासन-प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाए हैं, वहीं यासिन की कहानी ने इस त्रासदी को मानवीय दृष्टिकोण से उजागर किया है। सरकारी जांच अभी जारी है, पर इस घटना ने दिखा दिया है कि गरीब तबका स्वास्थ्य प्रणाली की सबसे कमजोर कड़ी बन चुका है।
प्रदेश भर में लोगों ने सोशल मीडिया पर यासिन के हौसले और उमंग सिंघार की संवेदनशीलता की सराहना की है। कई लोगों ने कहा कि यह घटना एक मिसाल है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि जनता की सेवा और संवेदना का माध्यम भी हो सकती है।
मानवता की मिसाल और सबक
यासिन की कहानी हमें यह सिखाती है कि एक पिता अपने बच्चे के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, और जब समाज उसके साथ खड़ा हो जाए, तो कोई भी कठिनाई बड़ी नहीं होती। वहीं उमंग सिंघार की यह पहल दिखाती है कि राजनीति में भी इंसानियत अब भी जिंदा है।
सरकार ने भी घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं और कहा है कि पीड़ित परिवारों को हर संभव सहायता दी जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसी त्रासदियों को केवल मुआवज़े से खत्म किया जा सकता है, या हमें एक बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली और मानवीय दृष्टिकोण की जरूरत है?