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देश में दलितों और आदिवासी समुदायों के खिलाफ अपराधों में बढ़ोतरी ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर नई बहस छेड़ दी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार की उपेक्षा और निष्क्रियता के कारण यह स्थिति बनी है।
खरगे ने राष्ट्रीय मीडिया से बात करते हुए कहा कि पिछले दस वर्षों में दलितों के खिलाफ अपराधों में 46% और आदिवासियों के खिलाफ 91% की बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने इस वृद्धि को गंभीर चुनौती बताया और कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि कमजोर और हाशिए पर खड़े समुदायों की सुरक्षा और न्याय प्रणाली पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं।
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार की अनदेखी न केवल सामाजिक न्याय के लिए खतरनाक है, बल्कि यह देश में जातिवाद और भेदभाव की स्थिति को और बढ़ावा देती है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाया कि वे इस संवेदनशील मुद्दे पर आंखें बंद किए हुए हैं और उचित कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि दलित और आदिवासी समुदायों पर बढ़ते हमले केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं हैं। इसके पीछे भूमि संघर्ष, सामाजिक भेदभाव, शिक्षा और रोजगार में असमानता जैसी गहरी समस्याएं भी मौजूद हैं। यही कारण है कि इन समुदायों पर हमलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा कि सरकार की उपेक्षा के कारण पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी होती है। उन्होंने मांग की कि सख्त कानून और प्रभावी निगरानी तंत्र लागू किया जाए ताकि कमजोर वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। उनके अनुसार, यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो सामाजिक तनाव और बढ़ सकता है।
खरगे ने पिछले कुछ सालों के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि दलित और आदिवासी समुदाय के खिलाफ अपराधों की रिपोर्ट में लगातार बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की परेशानियों और असुरक्षा का संकेत है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मल्लिकार्जुन खरगे की यह टिप्पणी न केवल प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव बनाने की रणनीति है, बल्कि यह समाज में बढ़ती सामाजिक असमानता और न्याय के प्रति असंतोष को भी उजागर करती है। उनका कहना है कि यदि सरकार समय पर हस्तक्षेप नहीं करती है, तो यह मुद्दा आगामी चुनावों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
खरगे ने स्पष्ट किया कि दलित और आदिवासी समुदाय को न्याय दिलाना सिर्फ राजनीतिक जरूरत नहीं, बल्कि समानता, मानवाधिकार और सामाजिक शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है। उन्होंने कहा कि देश की न्याय प्रणाली और सुरक्षा एजेंसियों को अधिक सक्रिय और जवाबदेह बनाना होगा।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि दलित और आदिवासी समुदाय पर हमलों के बढ़ते आंकड़े इस बात का संकेत हैं कि समान अवसर और सुरक्षा सुनिश्चित करना केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसके लिए जागरूकता, शिक्षा और समुदाय आधारित सुरक्षा पहल भी आवश्यक हैं।
मल्लिकार्जुन खरगे की यह टिप्पणी देश में राजनीतिक और सामाजिक बहस को फिर से शुरू कर सकती है। उनके अनुसार, यह समय सरकार के लिए गंभीर चेतावनी है कि यदि दलित और आदिवासी समुदायों की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित नहीं किया गया, तो देश में सामाजिक असंतोष और बढ़ सकता है।







