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वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अमेरिकी डॉलर का दबदबा धीरे-धीरे कमजोर पड़ता दिख रहा है। इस साल डॉलर में लगभग 10% की गिरावट आई है, जो इसे सोना, चांदी और बिटकॉइन जैसे अन्य प्रमुख निवेश विकल्पों के मुकाबले कमजोर बनाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि डॉलर की इस गिरावट के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारक जिम्मेदार हैं, और इसका असर निवेशकों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर महसूस किया जा रहा है।
डॉलर की कमजोरी का पहला बड़ा कारण है संयुक्त राज्य अमेरिका में आर्थिक नीतियों और ब्याज दरों में बदलाव। पिछले कुछ महीनों में फेडरल रिजर्व ने अपनी मौद्रिक नीति में ढील दी है, जिससे डॉलर में स्थिरता कम हुई और निवेशकों ने अन्य विकल्पों की ओर रुख किया। वहीं, वैश्विक बाजारों में निवेशकों का भरोसा भी डॉलर पर थोड़ा कमजोर पड़ा है।
वहीं, सोना और चांदी जैसे कीमती धातु और बिटकॉइन जैसी डिजिटल करेंसी ने डॉलर की गिरावट का लाभ उठाया है। सोना और चांदी में निवेश ने निवेशकों को सुरक्षा और स्थिरता प्रदान की, जबकि बिटकॉइन ने उच्च लाभ के अवसर दिए। विशेषज्ञों का कहना है कि डॉलर कमजोर होने से अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिए नई रणनीतियां बनाना आवश्यक हो गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि डॉलर की गिरावट वैश्विक आर्थिक संतुलन और व्यापार पर भी असर डाल सकती है। कमजोर डॉलर के कारण अमेरिका से आयात महंगा हो सकता है, जबकि निर्यातकों के लिए यह लाभकारी भी हो सकता है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी डॉलर पर निर्भरता कम करके संपत्ति पोर्टफोलियो में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि, अमेरिकी डॉलर अभी भी वैश्विक रिजर्व करेंसी का प्रमुख माध्यम बना हुआ है, लेकिन इसकी स्थिरता में कमी ने वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता और बेचैनी बढ़ा दी है। निवेशकों के लिए अब यह चुनौतीपूर्ण समय है, क्योंकि डॉलर की गिरावट सीधे उनकी विदेशी संपत्ति और निवेश पर असर डाल सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि डॉलर की इस कमजोरी का असर केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है। एशिया, यूरोप और भारत जैसे देशों में डॉलर के मुकाबले उनकी स्थानीय मुद्राओं में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। भारत में भी विदेशी निवेशकों ने डॉलर की गिरावट के कारण अपने निवेश विकल्पों में बदलाव किया है।
अन्य मुद्राओं और क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में डॉलर की गिरावट निवेशकों को यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि कौन सा विकल्प सुरक्षित और लाभकारी रहेगा। बिटकॉइन और अन्य डिजिटल मुद्राओं में तेजी से बढ़ती लोकप्रियता का एक कारण यही भी है कि निवेशक अब पारंपरिक मुद्रा डॉलर के मुकाबले नए निवेश माध्यमों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि डॉलर की इस गिरावट का असर वैश्विक बाजारों, विदेशी निवेश और व्यापार रणनीतियों पर लंबे समय तक महसूस किया जाएगा। वे कहते हैं कि डॉलर की स्थिरता और उसकी विश्वसनीयता को बनाए रखना अमेरिका के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। वहीं, निवेशकों के लिए यह समय सावधानी और रणनीति अपनाने का है।
भारत और अन्य एशियाई देशों में डॉलर की गिरावट का सीधा असर इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट व्यापार पर भी पड़ रहा है। डॉलर कमजोर होने से अमेरिकी आयात महंगा हो सकता है, जबकि भारतीय निर्यातकों के लिए यह अवसर प्रदान करता है। इसके साथ ही, विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय बाजार में क्रय शक्ति और निवेश आकर्षण भी बदल सकता है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि निवेशकों को अब संपत्ति पोर्टफोलियो में विविधता लानी चाहिए। सोना, चांदी और बिटकॉइन जैसी संपत्तियों में निवेश करने से जोखिम कम हो सकता है और डॉलर की कमजोरी के असर को संतुलित किया जा सकता है।







