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    अमेरिका-चीन की तनातनी से भारत को बड़ा फायदा, कच्चे तेल के दाम गिरे; कैसे बैठे-बैठाए मिला आर्थिक “लड्डू”?

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    दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं — अमेरिका और चीन — के बीच चल रही व्यापारिक तनातनी ने एक बार फिर वैश्विक बाजारों को हिला दिया है। इस खींचतान के बीच जहां अधिकांश देश चिंतित हैं, वहीं भारत के लिए यह परिस्थिति “बैठे-बैठाए लड्डू हाथ लगने” जैसी साबित हो सकती है। वजह है — कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट।

    अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक रिश्तों में तनाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के हफ्तों में दोनों देशों के बीच शुल्क बढ़ोतरी, निर्यात पर प्रतिबंध और निवेश नियमों को लेकर बढ़ती खींचतान ने अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार को अस्थिर कर दिया है। निवेशकों में मांग घटने की आशंका के चलते ब्रेंट क्रूड की कीमतें 85 डॉलर प्रति बैरल से फिसलकर 78 डॉलर तक आ गई हैं।

    भारत जैसे देश के लिए, जो अपनी कुल तेल जरूरत का लगभग 85% हिस्सा आयात से पूरा करता है, यह गिरावट किसी राहत से कम नहीं। कच्चा तेल भारत के आयात बिल का सबसे बड़ा हिस्सा होता है। ऐसे में हर डॉलर की गिरावट से सरकार को अरबों रुपये की बचत होती है।

    कैसे हुआ भारत को फायदा?
    कच्चे तेल की कीमतें घटने से सबसे बड़ा असर भारत के चालू खाते के घाटे (Current Account Deficit) पर पड़ेगा। कम तेल मूल्य का मतलब है कि सरकार को विदेशी मुद्रा भंडार से कम खर्च करना पड़ेगा। इससे रुपया भी स्थिर रहेगा और डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा पर दबाव घटेगा।

    महंगाई (Inflation) पर नियंत्रण रखने में भी यह स्थिति वरदान साबित हो सकती है। तेल के दाम घटने से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट कम होती है, जिसका सीधा असर खाद्य पदार्थों और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर पड़ता है। इस तरह भारत की आम जनता को राहत मिलेगी और सरकार के लिए आर्थिक स्थिरता बनाए रखना आसान होगा।

    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, हर 10 डॉलर प्रति बैरल की कमी से भारत के चालू खाते के घाटे में लगभग 1 अरब डॉलर की राहत मिलती है। अगर तेल की कीमतें लंबे समय तक कम रहती हैं, तो भारत का वित्तीय संतुलन और मजबूत हो सकता है।

    सरकार और उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
    आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति का लाभ भारत को रणनीतिक रूप से उठाना चाहिए। सरकार को तेल की कम कीमतों से बचाए गए पैसे को अवसंरचना, हरित ऊर्जा और सामाजिक कल्याण योजनाओं में निवेश करना चाहिए। यह निवेश देश की आर्थिक गति को बढ़ाएगा और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा।

    भारतीय तेल विपणन कंपनियां (OMCs) भी इस समय राहत की सांस ले रही हैं। भारतीय ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी कंपनियों का मुनाफा बढ़ने की संभावना है, क्योंकि उन्हें सब्सिडी के दबाव से अस्थायी राहत मिलेगी।

    अमेरिका-चीन के बीच क्या चल रहा है?
    दरअसल, अमेरिका ने हाल ही में चीन से आयातित इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और स्टील उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की है। जवाब में चीन ने भी अमेरिकी कृषि और ऊर्जा उत्पादों पर प्रतिबंध बढ़ा दिए हैं। इससे वैश्विक मांग में कमी की आशंका बढ़ गई है। निवेशकों को डर है कि अगर यह व्यापारिक युद्ध और गहराया तो वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है।

    हालांकि, फिलहाल भारत इस स्थिति का फायदा उठा सकता है। तेल के सस्ते होने से जहां घरेलू उद्योगों को राहत मिलेगी, वहीं सरकार को राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी।

    क्या यह फायदा लंबे समय तक टिकेगा?
    आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह राहत अस्थायी भी हो सकती है। अगर अमेरिका और चीन के बीच विवाद सुलझ जाता है, तो तेल की कीमतें फिर से बढ़ सकती हैं। साथ ही, वैश्विक मंदी गहराने पर भारत के निर्यात को नुकसान हो सकता है, जिससे कुल आर्थिक संतुलन प्रभावित हो सकता है।

    दिलचस्प बात यह है कि भारत इस स्थिति का उपयोग अपनी ऊर्जा रणनीति को मजबूत करने के लिए कर सकता है। ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस समय सस्ते तेल का आयात बढ़ाकर अपने “स्ट्रेटेजिक ऑयल रिजर्व” भरने चाहिए। इससे भविष्य में किसी संकट के दौरान तेल की आपूर्ति बनी रहेगी।

    भारत लंबे समय से ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में काम कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार “एथेनॉल ब्लेंडिंग”, “बायोफ्यूल उत्पादन” और “ग्रीन हाइड्रोजन मिशन” जैसी पहलों को आगे बढ़ा रही है। ऐसे में सस्ते तेल की स्थिति देश के लिए संक्रमण काल में सहायक साबित हो सकती है।

    महंगाई पर सीधा असर
    हाल के महीनों में भारत में खाद्य मुद्रास्फीति (food inflation) लगातार बढ़ी है। प्याज, टमाटर, दाल और अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में उछाल देखा गया है। ऐसे में अगर पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रहती हैं, तो ट्रांसपोर्टेशन और वितरण लागत घटेगी, जिससे उपभोक्ताओं पर महंगाई का दबाव कम होगा।

    सरकार के लिए यह स्थिति राजनीतिक रूप से भी राहत भरी है, खासकर चुनावी मौसम में। सस्ते तेल से न केवल आम आदमी को राहत मिलेगी बल्कि सरकार को सब्सिडी का बोझ भी कम झेलना पड़ेगा।

    अर्थशास्त्रियों की राय
    आर्थिक विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि भारत को इस राहत को “स्थायी लाभ” मानकर आत्मसंतुष्ट नहीं होना चाहिए। वैश्विक परिदृश्य अस्थिर है, और अगर अमेरिका-चीन विवाद बढ़ा तो यह दुनिया भर में मांग घटा सकता है। इससे भारत के निर्यात पर असर पड़ेगा और औद्योगिक वृद्धि धीमी हो सकती है।

    RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक बार कहा था कि “भारत को वैश्विक परिस्थितियों के अनुकूल अपनी नीतियां गतिशील रखनी चाहिए। बाहरी कारकों पर अत्यधिक निर्भरता हमेशा जोखिम भरी होती है।”

    आगे की राह
    भारत को इस अवसर का उपयोग अपनी ऊर्जा नीति को और लचीला बनाने में करना चाहिए। नवीकरणीय ऊर्जा, घरेलू उत्पादन और रणनीतिक भंडारण के जरिए तेल पर निर्भरता कम करना आने वाले वर्षों में आर्थिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।

    वर्तमान परिस्थितियां भारत के लिए एक सुनहरा अवसर हैं — महंगाई पर लगाम, राजकोषीय अनुशासन और विकास निवेश की गति, तीनों को एक साथ संतुलित करने का मौका।

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