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    अमेरिका में एशले टेलिस की गिरफ्तारी पर भारत में क्यों छिड़ा राजनीतिक संग्राम?

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    अमेरिका में एशले टेलिस की गिरफ्तारी ने अंतरराष्ट्रीय और भारतीय मीडिया में हलचल मचा दी है। मुंबई में जन्मे और शिकागो विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त टेलिस, अमेरिकी विदेश नीति और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते को आकार देने में अहम भूमिका निभाई, जिसने 2000 के दशक के मध्य में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को नए आयाम दिए।

    टेलिस की गिरफ्तारी की खबर भारत में आते ही राजनीतिक दलों के बीच बहस का विषय बन गई। कई राजनीतिक हस्तियों ने इसे भारत-अमेरिका संबंधों और भारतीय मूल नागरिकों की स्थिति पर सवाल उठाने के रूप में देखा। विपक्षी दलों ने सरकार से सवाल किए कि क्या भारत ने अपने नागरिकों और उनके हितों की रक्षा में पर्याप्त कदम उठाए हैं। वहीं कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि टेलिस की गिरफ्तारी केवल अमेरिकी कानूनी प्रणाली और वहां की घरेलू परिस्थितियों का परिणाम है, और इसे सीधे भारत की विदेश नीति से जोड़ना गलत होगा।

    एशले टेलिस का करियर रणनीतिक और नीति निर्माण में काफी प्रभावशाली रहा है। वे लेखक और रक्षा व एशिया नीति के सलाहकार भी रहे हैं। विशेषकर भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते में उनकी भूमिका को विशेषज्ञों ने ऐतिहासिक और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया है। इस समझौते ने दोनों देशों के बीच न केवल ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दिया, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक रणनीति में भी स्थायित्व लाया।

    टेलिस की गिरफ्तारी ने मीडिया में इस बात को उजागर किया कि वैश्विक स्तर पर नीति विशेषज्ञ और उनके कार्य कभी-कभी विवाद और कानूनी जटिलताओं का सामना कर सकते हैं। भारतीय राजनीति में भी इस मुद्दे पर चर्चा ने यह सवाल उठाया कि भारतीय मूल विशेषज्ञों की स्थिति पर क्या ध्यान दिया जा रहा है, और भारत किस हद तक अपने नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी सहायता सुनिश्चित कर रहा है।

    राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भारत में टेलिस की गिरफ्तारी पर बढ़ी चर्चा का कारण उनकी प्रतिष्ठा, इतिहास और अमेरिकी नीति में भूमिका है। टेलिस ने केवल भारत-अमेरिका परमाणु समझौते में ही नहीं, बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति और रक्षा नीतियों में भी अमेरिकी प्रशासन को सलाह दी। इस कारण उनके मामले को लेकर भारत में राजनीतिक प्रतिक्रिया इतनी तीव्र रही।

    कुछ विद्वानों ने यह भी बताया कि टेलिस की गिरफ्तारी से भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रत्यक्ष असर की संभावना कम है। हालांकि यह एक संवेदनशील विषय है, और राजनीतिक दल इसका उपयोग घरेलू राजनीति में कर सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कानूनी प्रक्रियाओं का सम्मान करना आवश्यक है, और इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से जोड़ने में सतर्कता बरतनी चाहिए।

    टेलिस की गिरफ्तारी के बाद मीडिया में उनके करियर और उपलब्धियों पर जोर दिया गया। उनका नाम भारत-अमेरिका संबंधों के ऐतिहासिक मोड़ के साथ जुड़ा है, विशेषकर 2005 में हुए असैन्य परमाणु समझौते में उनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। विशेषज्ञों ने इस समझौते के महत्व को बताते हुए कहा कि यह भारत को वैश्विक स्तर पर ऊर्जा और रक्षा सहयोग में सक्षम बनाने वाला समझौता था।

    राजनीतिक संग्राम के बीच विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि टेलिस की गिरफ्तारी और भारत में हुई राजनीतिक बहस यह दर्शाती है कि वैश्विक स्तर पर नीति निर्माण में भारतीय मूल व्यक्तियों की भूमिका कितनी संवेदनशील हो सकती है। इसका असर केवल टेलिस के करियर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के विदेश नीति विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में भाग लेने वाले नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़ा करता है।

    संक्षेप में कहा जाए तो एशले टेलिस की गिरफ्तारी केवल एक कानूनी मामला नहीं है, बल्कि यह भारत में राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से बहस का विषय बन गई है। उनके योगदान और प्रतिष्ठा के कारण भारत में राजनीतिक दल और विशेषज्ञ इस पर चर्चा कर रहे हैं। यह मामला यह भी दिखाता है कि वैश्विक नीति में सक्रिय भारतीय मूल नागरिक कभी-कभी विवाद और कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।

    टेलिस की गिरफ्तारी और भारत में हुई राजनीतिक प्रतिक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक रणनीति, नीति निर्माण और नागरिक सुरक्षा के मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं। भारतीय जनता, मीडिया और राजनीतिक दल इस मामले को लेकर जागरूक हैं और यह बहस आने वाले दिनों में भी जारी रहने की संभावना है।

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