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    अमेरिकी प्रतिबंध प्रस्ताव के खिलाफ चीनी एयरलाइंस का विरोध, कहा- यह अंतरराष्ट्रीय उड्डयन के सिद्धांतों के खिलाफ

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    अमेरिका और चीन के बीच व्यापार और रणनीतिक तनाव का एक और अध्याय अब आसमान में उड़ रही उड़ानों को भी प्रभावित करने की कगार पर है। अमेरिका द्वारा चीनी एयरलाइनों को रूस के हवाई क्षेत्र का उपयोग करने से रोकने के प्रस्ताव पर चीन की छह प्रमुख एयरलाइंस ने गंभीर आपत्ति जताई है।

    इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी और चीनी एयरलाइनों के बीच “उड़ान मार्गों में समानता” को लेकर उठी असमानता को दूर करना बताया गया है, लेकिन चीन ने इसे एक राजनीति से प्रेरित कदम और व्यापारिक भेदभाव करार दिया है।

    रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद, अमेरिका और यूरोपीय देशों की एयरलाइंस को रूस के हवाई क्षेत्र से उड़ान भरने पर रोक लगाई गई थी। इसके कारण अमेरिका से एशिया के लिए सीधी उड़ानों की दूरी और लागत काफी बढ़ गई है।

    वहीं, चीनी एयरलाइंस अभी भी रूस के हवाई क्षेत्र का उपयोग कर रही हैं, जिससे उन्हें न केवल समय की बचत होती है बल्कि ईंधन लागत में भी भारी कमी आती है। इस असमानता के चलते अमेरिका ने प्रस्ताव दिया है कि चीनी एयरलाइनों को भी रूस के ऊपर उड़ने से प्रतिबंधित कर दिया जाए

    इस प्रस्ताव के विरोध में Air China, China Eastern, China Southern, और तीन अन्य चीनी एयरलाइनों ने अमेरिका के परिवहन विभाग में औपचारिक शिकायत दर्ज की है। उन्होंने इस कदम को यात्रियों के अधिकारों का हनन और व्यवसायिक असमानता बताया है।

    Air China ने अपने बयान में कहा:

    “यह प्रस्ताव न केवल प्रतिस्पर्धा को बाधित करेगा, बल्कि यात्रियों की सुविधा और सार्वजनिक हित को भी नुकसान पहुंचाएगा।”

    China Eastern Airlines ने इसे एकतरफा कार्रवाई बताते हुए कहा कि इससे विश्वस्तर पर हवाई यातायात की स्थिरता प्रभावित हो सकती है।

    अमेरिका का कहना है कि यह कदम अपने घरेलू विमानन उद्योग की रक्षा और प्रतिस्पर्धात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अमेरिकी एयरलाइंस को जब रूस के हवाई क्षेत्र से उड़ान की अनुमति नहीं है, तो चीनी एयरलाइंस को यह सुविधा देना अनुचित लाभ देना होगा।

    संयुक्त राज्य अमेरिका का तर्क है कि इस प्रस्ताव का उद्देश्य व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में पारदर्शिता और समानता लाना है।

    यदि यह प्रतिबंध लागू होता है, तो:

    • चीनी एयरलाइंस को लंबा मार्ग अपनाना पड़ेगा

    • उड़ान का समय औसतन 2 से 3 घंटे बढ़ जाएगा

    • ईंधन की खपत और टिकट की कीमतें दोनों बढ़ेंगी

    • यात्रियों को फ्लाइट कैंसलेशन या रीशेड्यूलिंग का सामना करना पड़ सकता है

    Air China का कहना है कि एक सप्ताह में ही लगभग 4,400 यात्रियों की यात्रा प्रभावित हो सकती है यदि यह प्रस्ताव लागू हो जाता है।

    चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के प्रस्ताव की आलोचना करते हुए इसे “राजनीतिक दखलअंदाजी” और “अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन समझौतों का उल्लंघन” बताया है।

    विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा:

    “ऐसे कदम दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को नुकसान पहुंचाते हैं और वैश्विक विमानन व्यवस्था को अस्थिर करते हैं।”

    इस प्रतिबंध का असर केवल हवाई मार्गों तक सीमित नहीं होगा। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव अंतरराष्ट्रीय व्यापार, पर्यटन और निवेश पर भी पड़ेगा। यदि एयरलाइंस को लागत बढ़ानी पड़ी, तो:

    • कंपनियाँ कम रूट्स पर ऑपरेट करेंगी

    • यात्रियों की संख्या घटेगी

    • यात्रा खर्च और भी महंगा होगा

    • वैश्विक पर्यटन और लॉजिस्टिक इंडस्ट्री को भी झटका लगेगा

    अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका इस प्रस्ताव को औपचारिक रूप से लागू करता है या नहीं। फिलहाल प्रस्ताव विचाराधीन है और इस पर जनता की राय, इंडस्ट्री इनपुट और कूटनीतिक बातचीत के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा।

    विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद आगे चलकर अमेरिका-चीन संबंधों में और तनाव का कारण बन सकता है।

    इस प्रस्ताव से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक हवाई मार्ग भी अब राजनीतिक और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनते जा रहे हैं।

    जहाँ एक ओर अमेरिका अपनी एयरलाइनों को बराबरी दिलाने की बात कर रहा है, वहीं चीन इसे विकासशील देशों के खिलाफ भेदभाव मान रहा है।

    यदि समय रहते संवाद और समाधान नहीं हुआ, तो इस विवाद का असर दुनिया भर के लाखों यात्रियों और एयरलाइंस पर पड़ सकता है।

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