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    महाराष्ट्र के बाद जम्मू-कश्मीर में भी इंडिया गठबंधन में ‘दरार’… कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस को थमा दिया अल्टीमेटम

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    जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ समय से गहराते राजनीतिक तनावों के बीच कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के बीच गठबंधन में दरार स्पष्ट दिखने लगी है। पहले महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के बीच बीजेपी व अन्य घटकों की भूमिका को लेकर मतभेद देखने को मिले थे, अब जम्मू-कश्मीर में भी इंडिया ब्लॉक की शुरुआत से ही एकजुटता को लेकर संकट खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस को स्पष्ट अल्टीमेटम थमाया है कि यदि उन्हें जम्मू-कश्मीर में एक उपचुनाव की एक सीट नहीं दी गई, तो वह नेशनल कांफ्रेंस के साथ नहीं लड़ेंगी, बल्कि दोनों के खिलाफ मैदान में उतरेंगी।

    कांग्रेस नेतृत्व का आरोप है कि नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन की मूल भावना और साझेदारी को नजरअंदाज कर रही है। उनका कहना है कि अगर एनसी तुरंत इस मांग पर तैयार नहीं हुई, तो कांग्रेस इसके बाद अपना चुनाव रणनीति अलग बनाएगी। यह बयान राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाने वाला है, क्योंकि यह संकेत देता है कि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस अपनी स्वतंत्र ताकत को प्रयोग करने के लिए तैयार हो सकती है।

    इस विवाद की शुरुआत तब हुई, जब कांग्रेस को राज्य में प्रस्तावित उपचुनावों में एक सीट नहीं दी गई। कांग्रेस का दावा है कि नेशनल कांफ्रेंस ने मुफ्त में सत्ता को नियंत्रित कर लिया है और कांग्रेस को राजनीतिक भागीदारी में उपेक्षित किया जा रहा है। कांग्रेस राज्य अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने मीडिया से कहा कि यह वक्त है निर्णय लेने का — या तो गठबंधन की बातों को मानो या फिर अलग लड़ो। इस मंच पर यह साफ हो गया कि कांग्रेस अब सिर्फ गठबंधन का हिस्सा नहीं रहना चाहती है जब तक उसके हिस्से में उचित प्रतिनिधित्व न आए।

    नेशनल कांफ्रेंस की ओर से अभी कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं आयी है जो इस विवाद को शांत करे। लेकिन सूत्रों की मानें तो पार्टी अंदरूनी बैठकें कर रही है, जहां कांग्रेस की मांग और उसकी रणनीति को परखा जा रहा है। इसके अलावा, नेशनल कांफ्रेंस ने यह तय कर लिया है कि अगर कांग्रेस सहयोग के अनुरूप नहीं हुई, तो वे चार सीटों में से सभी राज्‍यसभा आराम क्षेत्रों पर उम्मीदवार उतारेंगे।

    राज्य में इस तरह की स्थिति कांग्रेस के लिए जोखिम भी है और अवसर भी। यदि कांग्रेस वास्तव में अलग लड़ने की राह अपनाती है, तो नेशनल कांफ्रेंस को अकेले चुनाव लड़ने की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन दूसरी ओर, कांग्रेस को यह देखना होगा कि क्या इसकी स्थिति राजनीतिक रूप से मजबूत है, और जनता इसे समर्थन देगी या नहीं।

    इस बीच, भारत के बड़े विपक्षी मंच इंडिया ब्लॉक (INDIA Alliance) पहले ही महाराष्ट्र में संकट में दिख चुका है, जहां एनसीपी (Sharad Pawar गुट) और कांग्रेस के बीच विवाद सामने आ चुके हैं। महाराष्ट्र में आरोप-प्रत्यारोप और झड़पों ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या इंडिया ब्लॉक की स्थिरता सिर्फ बड़े चुनावों तक सीमित है। अब जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-एनसी विवाद ने यह सवाल फिर से जिन्दा कर दिया है कि क्या राष्ट्रीय मोर्चे पर गठबंधन की ताकत राज्य स्तर पर टिक पाएगी।

    राजनीतिक विश्लेषक इस घटनाक्रम को इंडिया ब्लॉक की नाकामी के रूप में देख रहे हैं यदि इसे समय रहते सुलझाया नहीं गया। कुछ का मानना है कि कांग्रेस का यह कदम केवल एक रणनीतिक दबाव हो सकता है — नेशनल कांफ्रेंस को अपने दायित्वों की याद दिलाने का माध्यम। वहीं अन्य विशेषज्ञ इसे कांग्रेस की स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाने की एक कोशिश मानते हैं।

    जम्मू और कश्मीर विधानसभा उपचुनाव की मांग पर अब सबकी नजरें टिकी हुई हैं। यदि नेशनल कांफ्रेंस अंततः इस बात के लिए तैयार हो जाए कि कांग्रेस को उपचुनाव की सीट मिल जाए, तो विवाद को शांत किया जा सकता है। लेकिन अगर सहयोग के ढांचे में बदलाव लाया गया, तो जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया समीकरण बन सकता है, जहाँ कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस दोनों अलग-अलग मोर्चों पर लड़ेंगे और जनता को चुनाव में विकल्प मिलेगा।

    इस प्रकार, महाराष्ट्र के बाद जम्मू-कश्मीर में गठबंधन में दरार की कहानी यह संकेत देती है कि राजनीति के बड़े मंचों पर तनाव कहीं भी फूट सकता है — खासकर जब सत्ता और सीटों की बंटवारे की बात सामने आए। इंडिया ब्लॉक के लिए यह वक्त है यह तय करने का कि वह सिर्फ बड़े चुनावों के लिए गठबंधन है या हर स्तर पर साझेदारी का सम्मान करती है।

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