




अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में BRICS देशों के खिलाफ अपनी व्यापारिक नीति को फिर से तूल देते हुए इसे अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने वाला बताया है। उनका कहना है कि BRICS का गठन अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने के उद्देश्य से किया गया था, और उनकी टैरिफ नीति के कारण कई देश इस समूह से बाहर हो गए हैं।
BRICS, जो पहले ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ शुरू हुआ था, अब 10 सदस्य देशों तक बढ़ चुका है। इनमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया शामिल हैं। ट्रंप का कहना है कि उनकी टैरिफ नीति ने इन देशों को BRICS से बाहर जाने के लिए मजबूर किया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि अब ये देश BRICS को लेकर कोई चर्चा नहीं करते।
ट्रंप की इस नीति का उद्देश्य अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को बनाए रखना है। उनका मानना है कि BRICS देशों का उद्देश्य डॉलर के स्थान पर अपनी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रचलित करना है, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।
हालांकि, BRICS देशों का कहना है कि उनका उद्देश्य केवल वैश्विक व्यापार में विविधता लाना है, न कि किसी एक मुद्रा के प्रभुत्व को चुनौती देना। उनका कहना है कि वे एक समान और निष्पक्ष वैश्विक व्यापार व्यवस्था की ओर अग्रसर हैं।
इस स्थिति में, भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत ने हमेशा से ही बहुपक्षीयता और समानता की बात की है। भारत का कहना है कि वह सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है और किसी भी एक देश के खिलाफ नहीं है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में इस संघर्ष का असर साफ देखा जा सकता है। ट्रंप की टैरिफ नीति ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता पैदा की है, जिससे निवेशकों में चिंता बढ़ी है। वहीं, BRICS देशों का प्रयास है कि वे एक समान और निष्पक्ष व्यापार व्यवस्था स्थापित करें, जो सभी के लिए लाभकारी हो।
इस स्थिति में, यह देखना होगा कि आगे चलकर BRICS देशों और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध कैसे विकसित होते हैं। क्या ट्रंप की टैरिफ नीति BRICS देशों को और अधिक एकजुट करेगी, या फिर यह वैश्विक व्यापार में और अधिक तनाव का कारण बनेगी? आने वाला समय ही बताएगा।