




उत्तराखंड की पवित्र भूमि पर भगवान भोलेनाथ के प्रमुख तीर्थस्थल केदारनाथ धाम तक पहुंचना अब पहले से कहीं आसान होने वाला है। श्रद्धालुओं को जल्द ही एक ऐसी सुविधा मिलने जा रही है, जिससे 8 से 9 घंटे की थकाऊ यात्रा अब मात्र 35 से 40 मिनट में पूरी की जा सकेगी। सरकार और प्रशासन की ओर से इस दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है — सोनप्रयाग से केदारनाथ तक 13 किलोमीटर लंबा रोपवे प्रोजेक्ट तेजी से बन रहा है, जो पूरा होने पर यात्रा अनुभव को पूरी तरह बदल देगा।
यह प्रोजेक्ट उत्तराखंड के पर्यटन और धार्मिक यात्रा ढांचे को नई ऊंचाई देने वाला माना जा रहा है। केदारनाथ धाम हर साल लाखों श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होता है। यहाँ तक पहुंचने के लिए तीर्थयात्री गौरीकुंड या सोनप्रयाग से पैदल या खच्चरों के सहारे चढ़ाई करते हैं। यह सफर कठिन, ठंडा और समय लेने वाला होता है, खासकर बुजुर्गों या शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिए। लेकिन इस रोपवे के निर्माण के बाद यह यात्रा बहुत सुगम, तेज और सुरक्षित बन जाएगी।
13 किलोमीटर लंबा यह रोपवे प्रोजेक्ट भारत के सबसे ऊँचे और चुनौतीपूर्ण रोपवे में से एक होगा। यह अत्याधुनिक तकनीक से तैयार किया जा रहा है, जिसकी मदद से यात्रियों को सिर्फ कुछ ही मिनटों में 11,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम तक पहुंचाया जाएगा। निर्माण एजेंसी के अनुसार, यह रोपवे लगभग 16 से 18 केबिनों के साथ तैयार किया जाएगा, जिनमें एक बार में 8 से 10 लोग बैठ सकेंगे। इससे एक घंटे में हजारों श्रद्धालु धाम तक पहुंच सकेंगे।
उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड और केंद्र सरकार के सहयोग से तैयार किए जा रहे इस “केदारनाथ रोपवे प्रोजेक्ट” की अनुमानित लागत लगभग 1,200 करोड़ रुपये बताई जा रही है। यह परियोजना राष्ट्रीय पर्वतारोहण एवं हिमालयन विकास मिशन के अंतर्गत पूरी की जा रही है। इसका संचालन और रखरखाव निजी कंपनियों के सहयोग से किया जाएगा ताकि श्रद्धालुओं को विश्वस्तरीय अनुभव मिल सके।
राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि यह प्रोजेक्ट न केवल तीर्थयात्रियों के लिए वरदान साबित होगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी रोजगार और आर्थिक विकास का बड़ा साधन बनेगा। उन्होंने कहा, “बाबा केदार के आशीर्वाद से यह ऐतिहासिक परियोजना तेजी से आकार ले रही है। इस रोपवे से श्रद्धालुओं को समय की बचत, सुरक्षा और सुविधा मिलेगी, साथ ही उत्तराखंड का पर्यटन जगत नई ऊंचाइयों को छूएगा।”
इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे यात्रा का पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होगा। अभी हजारों श्रद्धालु और घोड़े-खच्चर एक ही मार्ग से गुजरते हैं, जिससे कचरा और जैविक प्रदूषण बढ़ता है। रोपवे से यात्रा का दबाव कम होगा, और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
स्थानीय निवासियों का भी कहना है कि रोपवे से न सिर्फ तीर्थयात्रियों को राहत मिलेगी, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। होटल, भोजनालय, टैक्सी और स्थानीय व्यापारियों को अधिक ग्राहकों से फायदा पहुंचेगा। वहीं, आपातकालीन स्थितियों में भी रोपवे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा — जैसे अचानक मौसम खराब होने या स्वास्थ्य आपात स्थिति में यात्रियों को सुरक्षित नीचे लाने की सुविधा उपलब्ध होगी।
जानकारी के अनुसार, रोपवे के निर्माण कार्य में लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। यह प्रोजेक्ट पर्यावरण और तकनीकी परीक्षणों से गुजर रहा है ताकि सुरक्षा के उच्चतम मानकों का पालन किया जा सके। उम्मीद है कि यह परियोजना 2026 की यात्रा सीजन से पहले श्रद्धालुओं के लिए शुरू कर दी जाएगी।
यात्रा विशेषज्ञों के अनुसार, यह रोपवे न केवल केदारनाथ बल्कि पूरे चारधाम यात्रा मार्ग के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। अगर यह मॉडल सफल रहता है, तो भविष्य में बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री धामों के लिए भी इस तरह के आधुनिक परिवहन साधन शुरू किए जा सकते हैं।
इतिहास और आस्था से जुड़ा केदारनाथ धाम हिमालय की गोद में बसा हुआ है। यहाँ तक पहुंचना हमेशा एक तपस्या और श्रद्धा का प्रतीक माना गया है। लेकिन आधुनिक तकनीक की मदद से अब भक्त अपने भगवान के दर्शन और भी सुविधाजनक तरीके से कर सकेंगे, बिना श्रद्धा या भावना को कम किए।
सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में उत्तराखंड को भारत का सबसे उन्नत और पर्यावरण-अनुकूल धार्मिक पर्यटन राज्य बनाया जाए। केदारनाथ रोपवे प्रोजेक्ट इस दिशा में सबसे बड़ा कदम साबित होगा, जिससे न केवल यात्रा का समय घटेगा, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत अनुभव भी तैयार होगा।
अब श्रद्धालु जल्द ही वह दिन देखेंगे जब बाबा केदार के दर्शन के लिए 9 घंटे की चढ़ाई नहीं करनी पड़ेगी — सिर्फ 40 मिनट में भक्त केदारनाथ धाम पहुंचकर अपने आराध्य के चरणों में शीश झुका सकेंगे।