




भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी. आर. गवई पर एक वकील द्वारा जूता फेंकने की कोशिश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि इस विषय को दोबारा उछालना “प्रसिद्धि‑लालची” लोगों को बढ़ावा दे सकता है। न्यायालय ने कहा कि इस घटना को न्यायिक संसाधनों की बर्बादी से बचने हेतु फिलहाल दबा देना अधिक उचित होगा।
हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस गंभीर घटना को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि की सहमति के बाद अब इस पर अवमानना याचिका दाखिल की जा चुकी है, जिसकी सुनवाई दिवाली के बाद की जाएगी।
6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता CJI गवई कर रहे थे, उस समय courtroom नंबर 1 में यह अप्रत्याशित घटना हुई। एक वकील, राकेश किशोर, ने अचानक से “सनातन का अपमान नहीं सहेगा भारत” जैसे नारे लगाते हुए CJI की ओर जूता फेंकने की कोशिश की।
सुरक्षा बलों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को कोर्ट रूम से बाहर कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम के बावजूद, CJI गवई ने शांति बनाए रखी और कोर्ट की कार्यवाही बिना किसी व्यवधान के आगे बढ़ाई। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “इस घटना को अनदेखा किया जाना चाहिए।” उन्होंने न केवल खुद को संयमित रखा, बल्कि अन्य न्यायाधीशों और बार के सदस्यों से भी आग्रह किया कि इसे तूल न दिया जाए।
इस घटना के बाद पूरे देश में न्यायपालिका की गरिमा पर बहस शुरू हो गई। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने तुरंत कार्रवाई करते हुए वकील राकेश किशोर का लाइसेंस अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। वहीं दिल्ली पुलिस ने वकील को हिरासत में लेकर प्रारंभिक जांच शुरू की, हालांकि FIR दर्ज करने में कोर्ट प्रशासन की अनुमति आवश्यक बताई गई।
सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची शामिल थे, ने कहा कि अदालत को यह तय करना है कि इस तरह की घटनाओं पर कितना न्यायिक समय और ऊर्जा खर्च की जाए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “CJI ने जिस प्रकार से उदारता दिखाई है, वह प्रशंसनीय है। उन्होंने घटना को तूल न देकर लोकतांत्रिक मर्यादा को और ऊँचा किया है।”
सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह बताया गया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इस घटना की वाहवाही की जा रही है और कुछ लोग इसे ‘वीरता’ के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। अदालत ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि यदि ऐसे कृत्यों को महिमामंडित किया जाता रहा, तो भविष्य में न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता पर और भी बड़े खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया कि ऐसे सोशल मीडिया पोस्ट पर रोक लगाने के लिए अदालत को “John Doe” आदेश जारी करना चाहिए, जिससे बिना नाम लिए सोशल मीडिया कंपनियों को कार्रवाई करने का आदेश दिया जा सके। कोर्ट ने यह मांग सुनी लेकिन इस पर अंतिम निर्णय दिवाली के बाद लेने का संकेत दिया।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अवमानना याचिका पर सुनवाई अब दिवाली के बाद होगी। इससे पहले सभी पक्षों को अपने जवाब दाखिल करने का समय मिलेगा। यह स्पष्ट है कि न्यायपालिका इस विषय में बेहद सतर्कता से आगे बढ़ रही है।
यह मामला केवल एक वकील द्वारा की गई अनुचित हरकत का नहीं, बल्कि न्यायपालिका की संरचना और उसकी गरिमा के भविष्य का प्रश्न बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस सूझबूझ और संतुलन के साथ प्रतिक्रिया दी है, वह न केवल संस्था की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि अदालतें अब भी तात्कालिक भावनाओं से ऊपर उठकर सोचती हैं।
CJI गवई की संयमित प्रतिक्रिया ने उन्हें एक संवैधानिक पदाधिकारी के रूप में और अधिक गरिमामयी बना दिया है। वहीं अदालत की यह सावधानी — कि कोई भी जल्दबाजी न हो — यह दिखाती है कि न्यायपालिका न तो उकसावे में आती है और न ही सामाजिक दबाव में निर्णय लेती है।
यह घटना भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक अहम मोड़ की तरह दर्ज हो सकती है। एक ओर जहां यह न्यायपालिका पर हो रहे सामाजिक और मानसिक हमलों की गवाही देती है, वहीं दूसरी ओर CJI गवई जैसे न्यायाधीशों की शांति, संयम और गरिमा आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बन सकते हैं।