




दुनिया की अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) की पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री और वर्तमान में संस्थान की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर गीता गोपीनाथ ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी शेयर बाजार की तेज़ रफ्तार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित कंपनियों के शेयरों में हो रही रिकॉर्ड तोड़ निवेश से दुनिया $35 ट्रिलियन के संभावित वित्तीय संकट की ओर बढ़ रही है।
गोपीनाथ ने कहा कि विदेशी निवेशकों की भारी हिस्सेदारी ने अमेरिका के बाजारों को तो नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है, लेकिन इसने एक ऐसा बुलबुला तैयार कर दिया है जो किसी भी समय फट सकता है। उनका कहना है कि इस बार संकट का असर सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दुनियाभर के वित्तीय बाजारों, मुद्रा विनिमय दरों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर भी गहरा असर डालेगा।
अमेरिकी शेयर बाजारों में हाल ही में जबरदस्त तेजी देखी गई है। एआई सेक्टर की कंपनियों जैसे एनवीडिया, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, और मेटा के शेयरों ने पिछले एक साल में रिकॉर्ड तोड़ उछाल दर्ज किया है। इससे अमेरिका के प्रमुख सूचकांक डॉव जोन्स, नैस्डैक और एसएंडपी 500 अपने ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं। विदेशी निवेशकों ने भी इस वृद्धि में भारी निवेश किया है, जिससे विदेशी हिस्सेदारी अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है।
हालांकि, गीता गोपीनाथ ने आगाह किया है कि यह वृद्धि वास्तविक आर्थिक विकास पर आधारित नहीं है। उन्होंने कहा —
“जब किसी देश के शेयर बाजार में विदेशी निवेश रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाता है और उसका बड़ा हिस्सा टेक्नोलॉजी जैसे एक ही सेक्टर में केंद्रित होता है, तो यह वित्तीय अस्थिरता का संकेत है। एआई की चर्चा और उम्मीदों ने एक सट्टा बुलबुला बना दिया है, जो फूटने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोर सकता है।”
गोपीनाथ ने आगे कहा कि पिछले वित्तीय संकटों से दुनिया ने यही सीखा है कि जब एक ही परिसंपत्ति वर्ग में अत्यधिक निवेश होता है, तो गिरावट का असर पूरी अर्थव्यवस्था में फैल जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे 2008 में रियल एस्टेट बुलबुले के फटने से पूरी दुनिया में मंदी आ गई थी, वैसे ही इस बार टेक शेयरों का बुलबुला वैश्विक वित्तीय संकट की वजह बन सकता है।
उनका अनुमान है कि अगर अमेरिकी बाजार में गिरावट आती है, तो $35 ट्रिलियन से अधिक की वैल्यू विश्व स्तर पर मिट सकती है। इससे एशियाई बाजारों, विशेष रूप से भारत, चीन और दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्थाओं पर बड़ा असर पड़ेगा क्योंकि इन देशों में भी विदेशी फंड्स का प्रवाह अमेरिकी बाजारों की चाल पर निर्भर करता है।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को सतर्क रहना होगा। उन्होंने कहा —
“भारत की आर्थिक स्थिरता मजबूत है, लेकिन ग्लोबल फाइनेंशियल शॉक से बचना मुश्किल होगा। विदेशी पूंजी का अचानक बाहर जाना रुपये की कीमत और बाजार की स्थिरता पर असर डाल सकता है।”
गोपीनाथ ने इस संकट से बचने के लिए सरकारों और केंद्रीय बैंकों को सलाह दी है कि वे मुद्रास्फीति नियंत्रण, वित्तीय अनुशासन और डिजिटल सेक्टर की पारदर्शिता पर ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने कहा कि अब समय है जब वैश्विक संस्थानों को एआई निवेश से जुड़ी पारदर्शिता और जोखिम मूल्यांकन के लिए नए मानक तय करने चाहिए।
दूसरी ओर, कई अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का कहना है कि फिलहाल यह बुलबुला नहीं बल्कि तकनीकी परिवर्तन की नई लहर है। उनका तर्क है कि एआई और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन भविष्य की अर्थव्यवस्था को आकार देंगे। हालांकि, गीता गोपीनाथ का मानना है कि “विकास और सट्टेबाजी” के बीच की रेखा बहुत पतली है — और इसे पार करना खतरनाक साबित हो सकता है।
आईएमएफ की यह चेतावनी ऐसे समय आई है जब दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था पहले से ही महंगाई, ब्याज दरों में वृद्धि और भू-राजनीतिक तनावों से जूझ रही है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे आर्थिक मतभेदों ने भी वैश्विक सप्लाई चेन को कमजोर किया है, जिससे बाजारों में अस्थिरता और बढ़ी है।
गोपीनाथ के अनुसार, यदि सरकारें और निवेशक जल्द ही एहतियाती कदम नहीं उठाते, तो यह संभावित “एआई-ड्रिवन फाइनेंशियल बबल” आने वाले वर्षों में सबसे बड़ा आर्थिक संकट साबित हो सकता है।
कुल मिलाकर, गीता गोपीनाथ की यह चेतावनी दुनिया के वित्तीय जगत के लिए एक गहरी चिंता की घंटी है। एआई और तकनीकी शेयरों की चमक भले ही आज सुनहरी दिख रही हो, लेकिन अगर सावधानी नहीं बरती गई, तो यह चमक आने वाले समय में पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अंधेरा साबित हो सकती है।